एक दिन जब से बादशाह बाजार से लौटा था, तब से वह बेहद उदास था।
महल मुलाजिम हैरान थे कि वहां न तो कोई मनहूस मंजर देखने को मिला, न कोई फरियादी ही टकराया, फिर भी बादशाह जब से लौटा है, उदास क्यों है ?
बादशाह ने अपनी सभी वजीरों को बुलाकर अपनी उदासी की वजह बताई लेकिन किसी ने समाधान नहीं बताया।
महल के आम मुलाजिमें ने तो कुछ देर हैरान रहने के बाद यह सोचकर इस हैरानी को अपने से दूर पटक दिया कि बादशाहों का क्या है, वे तो जिस बात पर बेहद उदास होना चाहिए, उस पर बेसाख्ता खिलखिलाते हैं और जिस बात पर इन्साफ चाहिए, उस बात या वाकए पर मुंह लटका हैं।
अलबत्ता बादशाह के खुश या उदास रहने तक उन्हें भी वैसा ही चेहरा बनाए रखना होता था, सो सभी वही कर रहे थे।
उधर बादशाह था कि उसे अपनी उदासी और हैरानी को सुलझाए बिना चैन नहीं मिल रहा था।
इसीलिए बादशाह ने खोजा को बुलाने का आदेश दिया। वह कई बार आजमा कर देख चुका था कि अकेला खोजा ही है जो हर मामले की सही, वजह बताता है।
खोजा पर बादशाह ने उससे अपनी हैरानी और उदासी की वजह ब्यान की।
बादशाह बोला, खोजा! तुम्हें खबर होगी कि मैंने कुछ अरसे पहले इस हुक्म और छूट का ऐलान किया था कि राजधानी के तमाम बाजार आधी रात तक खुले रखे जा सकते हैं।
मैं यह मानता हूँ कि इससे व्यापारियों को लाभ ही होगा और वे ख़ुशी-ख़ुशी मेरे हुक्म का या इस छूट का लाभ उठा रहे होंगे। खोजा ने हामी भरी, जहाँपनाह! वह ऐलान मैंने भी सुना था। यह तो उनके फायदे की बात थी, तो ऐसा आपका योजना वाजिब ही था।
वही तो मैं जानता था, बादशाह बोला, पर आज जब मैं बाजार पहुंचा तो वहां एक भी दुकान खुली हुई नहीं मिली।
जबकि अभी आधी रात बीतना तो दूर, रात ठीक से शुरू भी नहीं हुई थी। मैं अपने तमाम वजीरों से पूछ चुका हूँ पर कोई भी इसकी वजह बता नहीं पा रहा है।
क्या तुम बता सकते हो कि हमारे व्यापारियों ने मेरे हुक्म का पालन क्यों नहीं किया ? हुक्म न मानने वालों को क्या सजा दी जाए ?
बादशाह की हैरानी जानकार खोजा हँसते हुए बोला, जहाँपनाह आपका कोई भी मुलाजिम आपको इसकी सही वजह नहीं बता सकता।
आप शायद नहीं जानते कि आपकी राजधानी में दिन-दहाड़े किसी का लुट जाना आम बात है। ऐसे में देर रात तक व्यापारी या खरीद-फरोख्त करने वालों की हिफाजत कौन करेगा ?
जिस पल हमारी राजधानी रात को अँधेरे में डूबी रहती है। फिर दुकानों में काम करने वालों को दुगुनी तनख्वाह कौन देगा ?
रहा सजा देने का सवाल, तो सजा व्यापारियों को नहीं, उस मुलाजिमों को दीजिए जिनका काम लोगों की अमन चैन मुहैया कराना है।
कहना न होगा, बादशाह को यह इल्म होते देर न लगी कि महल से फरमान जारी करने देने से कोई उसका फायदा नहीं उठाने लगता।