एक बार अकबर ने बीरबल से कहा - मुझे परमात्मा दिखा दो । राजा का हुक्म था ।
बीरबल बहुत परेशान था कि परमात्मा को कैसे राजा को दिखाये ।
इसी विचार को लेकर बीरबल छुट्टी पर चला गया और उदास रहने लगा ।
एक दिन परिवार में चर्चा हुई, उदासी का कारण पूछा गया तो बीरबल ने बता दिया कि राजा ईश्वर के दर्शन करना चाहते हैं ।
बीरबल का बेटा बोला - कल सुबह मुझे आप साथ ले जायें । मैं अपने आप राजा को दर्शन करा दूंगा ।
दूसरे दिन सुबह बीरबल और लड़का दरबार में पहुँचे और राजा को कहा मेरा लड़का आपके प्रश्न के उत्तर का समाधान करेगा ।
राजा ने सोचा यह लड़का क्या समाधान करेगा ?
लड़का बोला - इस वक्त मैं आपका गुरु हूँ , मुझे उचित स्थान दिया जाये ।
राजा ने सोचा बात तो ठीक कह रहा है ।
मैंने तो प्रश्न किया है, समाधान करने वाला गुरु समान होता है ।
राजा ने लड़के के लिए अपने साथ थोड़ा ऊँचा स्थान दिया ।
लड़का बोला महाराज - एक दूध का कटोरा मंगाओ । राजा ने दूध का कटोरा मंगाया ।
लड़का बोला - महाराज इस दूध में घी है । राजा बोला - हाँ है ।
लड़का बोला - पहले मुझे आप उसका दर्शन कराओ ।
राजा बोला - तू मुर्ख है ।
घी के दर्शन ऐसे थोड़े होते हैं ।
पहले दूध को गर्म करना पड़ता है फिर उसकी दही जमाना पड़ता है । फिर उसको मघानी में रिड़का जाता है ।
फिर मक्खन निकलता है फिर उसे गर्म-गर्म कढाई में डाला जाता है । फिर उसकी मैल निकाली जाती है ।
तब जाकर घी के दर्शन होते हैं । ऐसे ही थोड़े दर्शन होते हैं ।
लड़का बोला - यही उत्तर है आपके प्रश्न का पहले इन्सान को तपना पड़ता है ।
फिर उसको जमना पड़ता है । फिर उसको साधना करनी पड़ती है । फिर उसको ज्ञान की अग्नि में तपना होता है ।
फिर उस ईश्वर के दर्शन होते हैं ।
अकबर समझ गया और बोला - तू वाकई ही मेरा गुरु है ।
ईश्वर को जानने के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है ।
वैसे हर आत्मा में ईश्वर का अंश है और उसी को ईश्वर का रूप समझना चाहिए तभी सुख की प्राप्ति होती है ।
यह भी संसार का एक नियम है ।