मुकेश दफ्तर में नये हैं, पहले वह दूसरे संस्थान में काम करते थे।
अपना काम तल्लीनता से करते हैं. लेकिन चेहरा बताता है कि मुकेश अपने काम से खुश नहीं हैं।
एक दिन इस बारे में पूछने पर उन्होंने कहा - जब काम में मन नहीं लगे, तो चेहरा उदास हो ही जाता है। काम में मन क्यों नहीं लग रहा है ?
यह पूछने पर उन्होंने कहा - अरे यह भी कोई काम है। इसके बाद उन्होंने ढेर सारे तथ्यों के साथ अपने काम को महत्वहीन बताने की कोशिश की।
उन्होंने यह भी कहा कि इस समय जो काम मेरे जिम्मे है, उसके आधार पर दूसरे संस्थान में नौकरी भी नहीं मिलेगी। इस बात को मुकेश के रिपोर्टिंग मैनेजर मिस्टर कुमार को बताया गया। वह सुलझे हुए इंसान हैं।
उन्होंने तरिके से मुकेश को समझाया कि उनका काम कैसे महत्वपूर्ण है। मिस्टर कुमार ने उनसे पूछा - मुकेश पहले अपने काम के बारे में बताइए।
मुकेश ने कहा - मेरा काम यह देखना है कि हमारी कम्पनी के प्रोडक्ट में कहाँ-कहाँ गड़बड़ी है। उसे कैसे दूर किया जा सकता था। आगे ऐसा क्या किया जाये जिससे पुरानी खामियां फिर से सामने नहीं आये।
मुकेश की बात खत्म होते ही मिस्टर कुमार ने कहा - यह जान कर अच्छा लगा की आपको अपने काम की अच्छी समझ है।
जैसा आपने कहा है उसके अनुसार आपका काम प्रोडक्ट को कैसे बेहतर बनाया जाये और उसके निर्माण के दौरान की खामियों को दूर करने से जुड़ा है।
मुकेश ने हाँ में सर हिलाया। इसके बाद मिस्टर कुमार ने पूछा - जब प्रोडक्ट को लेकर इतनी बड़ी जिम्मेदारी कंपनी ने आपको दी है तब आप अपने काम को महत्वहीन क्यों समझते हैं।
एक आम धारणा है कि जो लोग प्रोडक्ट के निर्माण से सीधे जुड़े हैं वही मेनस्ट्रीम में काम करते हैं। लेकिन हर काम मेनस्ट्रीम का होता है। अगर ऐसा नहीं होता तो कम्पनी आपके ऊपर खर्च नहीं करती।
कम्पनी को पता है कि आपके काम का परिणाम प्रोडक्ट पर दिखेगा। इसलिए इस बात को मन से निकालिए कि आप जो काम कर रहे हैं उसकी पूछ नहीं है। ध्यान से देखेंगे तो लगेगा कि आपका काम ही सबसे महत्वपूर्ण है।