तेनालीराम ने हम्पी में नया घर लिया। पर कुछ ही दिनों में वह उस घर में परेशान हो गया।
घर के बाहर देर रात बच्चे शोर मचा-मचा कर खेलते रहते थे।
एक शाम, रोज की तरह बच्चे तेनाली के घर बाहर पिट्ठू का खेल खेल रहे थे। खूब शोर-शराब हो रहा था। तेनाली ने विचार किया।
तेनाली ने सभी बच्चों को बुलाया और बोला, मुझे बच्चों का खेलना बहुत पसंद है। छुपन-छुपाई, गिल्ली-डण्डा, कबड्डी और पिट्ठू आदि कुछ खेल हैं, जो मुझे अपने बचपन की याद दिलाते हैं।
अगर तुम लोग रोज रात को सड़क पर ये सभी खेल खेलोगे, तो मैं तुम्हें दस सोने के सिक्के दूंगा।
यह सुनकर बच्चे खुश हुए। नेकी और पूछ-पूछ। उन्हें तो अपने मनपसंद खेल खेलने को मिल रहे थे और ऊपर से खेलने के पैसे भी मिलने वाले थे।
पूरे सप्ताह बच्चे नियम से रोज रात को तेनाली के घर के बाहर सड़क पर खूब हल्ला मचाकर खेलते रहे। सप्ताहान्त में वे तेनाली के घर गये और सिक्के मांगे।
वादे के अनुसार तेनाली के घर के बाहर खेलते रहे और सप्ताहान्त में तेनाली से पैसे मांगने पहुंचे गये।
तेनाली ने कहा कि अभी उसके पास पूरे पैसे नहीं हैं, तो वे केवल सात सिक्कों से काम चलायें।
तीसरे सप्ताह भी बच्चों ने अपना वादा पूरा किया। परन्तु पैसे देने के समय तेनाली उन्हें केवल पांच सिक्के ही दे पाया, क्योंकि उसे तनख्वाह नहीं मिली थी।
बच्चे निराश हुए, पर क्या कर सकते थे।
वे पांच सिक्के ही लेकर आ गये। चौथे सप्ताह में तेनाली ने बच्चों से कहा कि वह उन्हें दस सिक्के तो नहीं दे सकेगा, परन्तु वह उन्हें दो सिक्के हर सप्ताह अवश्य देगा यदि वे उसके लिए सप्ताह भर खेलते रहे तो।
अब तक बच्चों के सब्र का घड़ा भर चुका था। आप चाहते हो कि हम सिर्फ दो सिक्कों के लिए सात दिन खेलें।
बच्चे एक साथ चिल्लाए कभी नहीं! भाड़ में जाओ।
गुस्से में भर कर सभी बच्चे वहाँ से चले गये और दूसरी सड़क पर खेलने लगे। उस दिन बाद बच्चे उस सड़क पर कभी नहीं खेले और तेनालीराम के नये घर के आसपास शांति हो गयी।