एक दिन तेनालीराम बाजार से गुजर रहा था। वहां उसने देखा कि मुर्गीखाने के सामने भीड़ लगी हुई है।
तेनाली ने वहां खड़े लोगों से पूछा कि वहाँ क्या हुआ है, जो इतनी भीड़ लगी है ? किसी ने तेनाली को बताया कि एक गरीब किसान गलती से जौ का भारी बोरा एक मुर्गी पर गिरा गया और मुर्गी मर गयी।
मुर्गी छोटी-सी थी। पांच सोने के सिक्कों से अधिक उसकी कीमत नहीं थी, पर मुर्गीखाने का मालिकada बैठा था कि वह उस किसान से पचास सोने के सिक्के लेकर ही उसे जाने देगा।
उसका कहना था कि अगर मरी न होती तो दो सालों में यही छोटी-सी मुर्गी पचास सिक्कों के बराबर की मोटी मुर्गी बन चुकी होती।
झगड़ा बढ़ता ही जा रहा था। तभी किसी की नजर राजा के अष्टदिग्गज दरबारी तेनालीराम पर पड़ी। लोगो ने हट कर तेनाली के लिए रास्ता बना दिया।
मुर्गी के मालिक ने तेनाली के आगे सिर झुकाया और अपनी दलील पेश करते हुए कहा, हुजूर! इस आदमी ने बेध्यानी में मेरी ऐसी मुर्गी को मार डाला, जो दो सालों में इतनी मोटी-ताज़ी हो जाती कि मैं उसे पचास सोने के सिक्कें में बेच सकता था।
तेनालीराम ने किसान की ओर देखा पर उसकी तो डर के मारे घिग्घी बंधी हुई थी।
तुम इस मुर्गी वाले को पचास सोने के सिक्के दे दो, क्योंकि तुमने इसकी मुर्गी मारी है, जिसकी कीमत यह पचास सिक्के बताता है। तेनाली ने किसान से कहा।
भीड़ में खड़े लोगों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं था। उन्हें लगा था कि तेनालीराम न्यायोचित बात करेगा, पर यह तो सरासर अन्याय था।
मुर्गी के मालिक की बाँछे खिल गयी। हुजूर! लोग ठीक कहते हैं कि आपका न्याय हमेशा सही होता है। मैं उनकी बात से पूर्णतया सहमत हूँ।
हाँ भाई, न्याय तो सही ही होता है। तेनालीराम मुस्कुराते हुए बोला, अच्छा यह बताओ की साल भर में तुम्हारी मुर्गी कितना दाना खा जाती है ?
हुजूर! करीब आधी बोरी तो खा ही जाती। मुर्गी का मालिक बोला। तो अगर यह मुर्गी जीवित होती, तो दो वर्षों में कम से कम एक बोरा दाना तो खा ही जाती। है न। तेनाली ने पूछा।
मुर्गी के मालिक ने सहमति में सर हिला दिया। तो तुम ऐसा करो कि वह एक बोरी दाना इस किसान को दे दो, क्योंकि उसे खाने के लिए तुम्हारी मुर्गी तो जिन्दा है नहीं। तेनाली ने मुर्गी के मालिक से कहा।
अब तो उसकी सिट्टी-पिट्टी गम हो गयी। दाने की एक बोरी की कीमत पचास सिक्कों से खिन ज्यादा थी।
इधर तेनालीराम के इस न्याय से किसान के चेहरे पर मुस्कान आ गयी। भीड़ में खड़े लोग भी ख़ुशी से चिल्लाने लगे। मुर्गीखाने का मालिक बुरी तरह झेंप गया।
उसने उस मुर्गी के एवेज में किसान एक भी पैसा लेने से इंकार कर दिया और झट से अपनी दुकान में घुस गया।