माँ काली सहस्त्रमुखी बन कर अत्यन्त भयानक स्वरूप में प्रकट हुई थी।
परन्तु तेनाली को उनका भयानक रूप तनिक भी न डरा पाया। माँ काली को साक्षात समक्ष पाकर तेनाली ने उनके पाँव छुए और जोर से हंसने लगा।
तेनाली को हँसते देख माँ काली अचम्भित हुई और उन्होंने तेनाली से उसके इस प्रकार हंसने का कारण जानना चाहा।
ओ देवी माँ! इस प्रकार हंसने के लिए क्षमा चाहता हूँ। परन्तु ज्यों ही मैंने आपको देखा एक ख्याल मेरे दिमाग में आया।
जब मुझे सर्दी के कारण जुकाम हो जाता है और मेरी नाक बहने लगती है, तो मेरे लिए दो हाथों से एक बहती नाक को संभालना भारी हो जाता है।
मैं सोच रहा था कि अगर कभी आपको जुकाम हो गया और आपकी हजार नाकें बहने लगी, तो आप अपने दो हाथों से उन्हें कैसे संभालेंगी ?
बस यही सोच कर मुझे हंसी आ गयी। यदि मुझसे कोई गुस्ताखी हो गयी, तो कृपया मुझे क्षमा करें माँ।
ऐसा कह कर तेनालीराम काली के पैरों पर गिर पड़ा। वैसे यह दृश्य होगा तो बहुत मजेदार! देवी माँ ने मुस्कुराते हुए कहा, तुम एक चतुर एवं वाचाल बालक हो।
मैं तुम्हें लोगों को हंसाने की कला का वरदान देती हूँ। आज से तुम विकट कवि अर्थात विदूषक कहलाओगे और खूब नाम कमाओगे।
इसे दोनों और से पढ़ने पर समान प्रतीत होता है - वि-क-ट-क-वि। तेनाली कुछ सोच कर बोला, परन्तु देवी माँ! इससे मुझे कुछ हासिल नहीं होगा।
हुम्म्। ...... देवी माँ ने सिर हिलाते हुए कहा, ठीक है! मैं तुम्हें एक और वरदान देती हूँ। मेरे हाथ में दो मटकियाँ हैं।
मेरे दायें हाथ में सोने की मटकी है, जिसमें ज्ञान का दूध है और बायें हाथ में चाँदी की मटकी है जिसमें धन की दही है। तुम्हें दोनों में से एक मटकी चुननी है।
मुझे तो दोनों ही मटकियों की आवश्यकता है, क्योंकि एक के बिना दूसरी मटकी बेकार है।
तेनाली ने मन में सोचा। फिर ऐसे दिखाते हुए जैसे गहरी सोच में डूबा हो, वह अपना सिर खुजाने लगा।
अरे माँ ! बिना चखे मैं दोनों में से एक मटकी कैसे चुन सकता हूँ ?
उसने कहा। हाँ, यह तो है। देवी माँ ने तेनाली की बात पर अपनी सहमति देते हुए कहा और अपने दोनों हाथ आगे बढ़ा दिए।
पलक झपकते ही तेनाली ने दोनों मटकियों में भरे दूध और दही गटक लिये और मटकियाँ खाली कर दी।
यह देख कर देवी माँ नाराज हो गयी। वे समझ गयी कि तेनाली ने उनके साथ चालाकी की है। क्षमा करें माँ, तेनाली ने धीरे से कहा, परन्तु मुझे दोनों ही मटकियों की आवश्यकता थी।
आप ही बतायें बिना धन-दौलत के केवल ज्ञान का क्या लाभ ?
जो तुम कह रहे हो, वह सही है। पर तुम्हारी वाचालता और तुम्हारा ऐश्वर्य तुम्हारे लिए शत्रु व मित्र दोनों ही बनायेंगे।
इसलिए भविष्य में सावधान रहना। यह कहकर माँ काली ने तेनाली राम को आशीर्वाद दिया और वहाँ से अन्तर्धान हो गयी।
इस प्रकार तेनालीराम हर क्षेत्र में आगे निकला और हास्यकवि के रूप में प्रसिद्ध हुआ। उसने संस्कृत, तेलगु, मराठी, तमिल और कन्नड़ भाषाओं का गहन अध्ययन किया।
शीघ्र ही तेनाली को समझ में आ गया कि यदि जीवन में उन्नति करनी है, तो उसे छोटे से गाँव तेनाली से बाहर निकल कर हम्पी जाना होगा। हम्पी विजयनगर साम्राज्य की राजधानी थी।
तेनाली जानता था कि विजयनगर के महाराज कृष्णदेव राय के दरबार में विद्वानों का बहुत सम्मान किया जाता है।
एक बार विजयनगर के राजगुरु तथाचार्य सिरिगेरी आये जो तेनाली के समीप ही था।
तेनाली ने अपनी बेहतरीन कविताओं का पुलिंदा बनाया और राजगुरु से मिलने पहुंच गया। तेनाली की कविताएँ सुनकर राजगुरु अत्यन्त प्रभावित हुए और उन्होंने तेनाली को विजयनगर के राजदरबार में आने का निमंत्रण दिया।
मौके का फायदा उठाते हुए तेनाली ने अपने घर जमीन बेच दिया और अपनी पत्नी अग्रथा, छोटे भाई तेनाली अन्नया, छोटे पुत्र एवं वृद्ध माता के साथ विजयनगर की ओर चल पड़ा।
विजयनगर पहुंच कर तेनाली राजगुरु से मिलने गया परन्तु राजगुरु ने उसे पहचानने से भी इनकार कर दिया।
तेनालीराम ने उन्हें याद दिलाने की कोशिश की, तो सैनिक ने उसे बाहर निकाल दिया और दोबारा राज दरबार में घुसने या महाराज से मिलने से रोक लगा दी।
तेनाली ने हिम्मत नहीं हारी और अंत में महाराज कृष्णदेव राय से मिल कर ही रहा। तेनाली की वाचालता और बुद्धिमानी ने महाराज का दिल जीत लिया और शीघ्र ही उसके लिए राजदरबार के द्वार खुल गए।
इस पहले कदम के बाद तेनाली को सफलता की सीढियाँ चढ़ने से कोई न रोक सका।
तेनालीराम ने अपनी जीवनयात्रा चीथड़ों से प्रारम्भ की और एक दिन दुनिया का हर ऐशो आराम उसके कदमों में था।
इस प्रकार एक छोटे से गाँव के एक छोटे से लड़के का सफर विजयनगर के राजदरबार में अष्टदिग्गज बनने पर समाप्त हुआ।
तेनाली की लगन, विश्वास और मेहनत ने साबित कर दिया कि सफलता का मूलमंत्र है - स्वयं में विश्वास।