एक बार चार मित्रों ने सूत का व्यापार शुरू किया।
उन्होंने हम्पी में एक गोदाम लेकर सूत के सभी बोरे उसमें भर दिये। बस एक ही चीज उन्हें परेशान कर रही थी - वो थी चूहों की कतार।
चूहे गोदाम में घुसकर उनके सूत को बर्बाद कर देते थे। काफी सोच-विचार कर चारों मित्र एक बिल्ली खरीद लाये ताकि वह उन चूहों को मार खा जाये। बिल्ली बहुत काम की निकली।
शीघ्र ही उसने गोदाम के सारे चूहे मार डाले। चारों मित्रों को उस बिल्ली से बेहद लगाव हो गया। उन्होंने उसके चारों पैर को आपस में बाँट लिया। हर मित्र ने अपने हिस्से वाले बिल्ली के पैर के लिए खूबसूरत सोने के घुँघरु बनवाये और उसे पहना दिये।
अब बिल्ली दिन रात गोदाम में छम-छम करती घूमती। हर मित्र अपने हिस्से वाले पैर का बहुत ध्यान रखता।
एक दिन बिल्ली एक चूहे के पीछे सूत के बोरे से कूदि। ऊपर से कूदने के कारण उसके एक पैर में चोट लग गयी और वह लगड़ाने लगी। मित्रों ने उसके पैर की मरहम लगा करके एक पट्टी बांध दी।
परन्तु वह पट्टी ढीली होकर खुल गयी और बिल्ली के पीछे लम्बी दूर तक घिसटने लगी।
अब बिल्ली को क्या पता कि उसके पीछे पट्टी घिसटती आ रही है। बिल्ली घूमते-घूमते पास ही जल रही आग के पास आयी और फिर पलट कर चल दी।
इसी बीच उसके पीछे लटकी पट्टी ने आग पकड़ ली।
आग देखकर बिल्ली घबरा गयी और सारे गोदाम में इधर-उधर भागने लगी। इससे सूत की सभी बोरियों ने आग पकड़ ली। शीघ्र ही पूरा गोदाम लपटों में घिर गया और उसमें रखा सारा माल जल कर राख हो गया।
चारों मित्रों ने बिल्ली का एक-एक पैर बाँट रखा था। जिसके हिस्से में बिल्ली का घायल पैर था, सारा इल्जाम उसी के सिर आ गया।
बाकी के तीनों मित्र उससे अपना हिस्सा मांगने लगे और नुकसान की भरपाई करने के लिए बहस करने लगे। बेचारे चौथे मित्र ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की पर वे तीनों कुछ सुनने को तैयार ही नहीं थे।
अंत में मामला राजा के पास पहुंचा। राजा कृष्णदेव राय ने दोनों पक्षों की बात बहुत ध्यान से सुनी पर मामला इतना पेचीदा था कि उन्हें कोई हल नहीं सुझा।
उन्होंने तेनालीराम को इशारा किया।
तेनालीराम कुछ देर सोचता रहा फिर बोला, बिल्ली के चोट खाये पैर का कोई कुसूर नहीं है, क्योंकि उसे गोदाम में बाकी के तीन स्वस्थ पैर लेकर गये थे।
इसलिए गोदाम में आग तीन स्वस्थ पैरों के कारण लगी है, न कि उस चोट वाले पैर के कारण। न्यायानुसार गोदाम में हुए नुकसान की भरपाई बिल्ली के तीन स्वस्थ पैरों के मालिकों को करनी चाहिए न कि चौथे चोट लगे पैर के मालिक को।
ऐसा आदेश सुनकर तीनों मित्रों की सिट्टी-पिट्टी गम हो गयी। साड़ी चालाकी भूल कर वे राजा से दया की भीख मांगने लगे।
राजा कृष्णदेव राय ने तेनाली के फैसले को सही ठहराते हुए तीनों मित्रों को कसकर डाँट लगायी और उन्हें चौथे मित्र से मांफी मांगने का आदेश दिया।