यदि जीवन का संतुलन बिगड़ा और थकान आई तो समझ लीजिए कि
बीमारी आई और यदि वापस ऊर्जा अर्जित करने के लिए विश्राम किया जा रहा है
तो ऐसी थकान वरदान भी साबित हो सकती है। इन दिनों जिस तरह की हमारी जीवन-शैली है,
इसमें असंतुलन बहुत अधिक है।
सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक शरीर की कुछ नियमित क्रियाएँ हैं।
आदमी उसे भूल गया है।
गौतम बुद्ध बहुत काम करते, पर कभी थकते नहीं थे।
आज भी कई साधु-संत उतना ही परिश्रम कर रहे हैं, जितना एक कॉपोरेट जगत् का सफल व्यक्ति करता है
और जब वे रात को सोते हैं तो पूरी बेफिक्री के साथ ।
बुद्ध से उनके शिष्यों ने एक बार पूछा था, “आप थकते नहीं?”
बुद्ध का उत्तर था, “जब मैं कुछ करता ही नहीं तो थकूँगा कैसे।"
बात सुनने में अजीब लगती है, लेकिन है बड़ी गहरी ।
अध्यात्म ने इसे ‘साक्षी भाव' कहा है—स्वयं को करते हुए देखना।
यह वह स्थिति होती है, जब तन सक्रिय और मन विश्राम की
मुद्रा में होता है। आज ज्यादातर लोग असमय, अकारण थक जाते हैं,
जिसका एक बड़ा कारण असंतुलित जीवन है।
एक होता है थकान को महसूस करना और दूसरा है स्वाभाविक थकान।
जिस समय आपकी रुचियों, इच्छाओं और मूल स्वभाव में धीमापन आने लगे, अकारण चिड़चिड़ाहट हो जाए,
समझ लें कि यह थकान बीमारी है।
इसलिए प्रतिदिन योग, प्राणायाम और ध्यान करें ।
ये क्रियाएँ अपने आप में एक विश्राम हैं।
करने वाला कोई और है। हम तो महज उसके हाथों की कठपुतली हैं।
यह मनोभाव भी थकान को मिटाएगा। क्या दिक्कत है ऐसा सोच लेने में।