बुद्ध का समत्व भाव

गौतम बुद्ध निर्जन जंगल में एक पहाड़ी पर बैठे ध्यान कर रहे थे। वहाँ

चारों ओर शांति थी। कहीं कोई शोर नहीं था ।

ध्यान करने के लिए इससे उपयुक्त स्थान और कहीं नहीं हो सकता,

यही सोचकर बुद्ध ने इसे चुना था।

अचानक इस नीरवता को एक कोलाहल ने भंग कर दिया।

कुछ दुश्चरित्र लोग एक वेश्या को लेकर वहाँ आमोद-प्रमोद के लिए आ धमके।

एक क्षण में वातावरण की पवित्रता भंग हो गई और शांति, अशांति में बदल गई।

उन लोगों ने मदिरापन शुरू कर दिया।

इसी बीच वेश्या अवसर पाकर भाग गई।

उन दुष्टों ने उसे वस्त्रविहीन कर दिया था।

जब मदिरा का नशा थोड़ा उतरा तो वे लोग उसे खोजने निकले।

थोड़ी दूर जाने पर उन्हें ध्यानस्थ बुद्ध दिखाई दिए।

उन्होंने बुद्ध का ध्यान भंग कर पूछा, “क्या तुमने यहाँ से किसी को जाते देखा?”

बुद्ध के 'नहीं' कहने पर उन्होंने फिर पूछा, “क्या तुमने एक सुंदर स्त्री को यहाँ से जाते देखा?"

बुद्ध द्वारा इनकार करने पर उन्होंने निर्लज्जता से पूछा, “क्या यहाँ से एक निर्वस्त्र स्त्री को भागकर जाते देखा?"

बुद्ध ने शांत भाव से उत्तर दिया, “यहाँ से कोई गया जरूर था,

किंतु वह स्त्री थी या पुरुष, मेरे लिए यह पहचान करना असंभव है।

जब तुम्हारा मन भी वासनाविहीन हो जाएगा तो वह भी स्त्री-पुरुष या वस्त्रधारी- निर्वस्त्रधारी का भेद करना भूल जाएगा।"

सभी दुष्ट अपनी भूल जान लज्जित होकर वहाँ से चले गए।

सार यह है कि साधुता विकार रहित और निरपेक्ष दृष्टि से देखती है।

वहाँ प्राणिमात्र में किसी प्रकार के भेद के लिए कोई स्थान नहीं होता।