एक बार खोजा और उसका दोस्त पिकनिक मनाने के लिए निकले।
शहर से दूर एक हरी-भरी जगह पर पहुंचकर उन्होंने डेरा जमाया।
गधे को चरने के लिए छोड़ा और स्वयं भी सैर-सपाटा करने निकल पड़े। थोड़ी देर सैर के बाद जब पेट में भूख से कुलबुले से उठने लगे तो अपने सामान के पास आए और पुलाव पकाने लगे।
जैसे ही खोजा ने सारा सामान फैलाया, उसका दोस्त बोला, खोजा!
मुझे न तो आग जलानी आती है और न ही सब्जी काटनी आती है और न आग पर देगची रखनी। मुझे दरसल कुछ नहीं आता।
यह कहकर वह एक पेड़ की छाया में चादर तान कर सो गया।
खोजा ने गाजर काटी, आग जलाई और उस पर देगची रख दी। फिर उसने आधे चावल देगची में डाले बाकी आधे पोटली में ही रखे छोड़ दिए और पोटली को हिफाजत से रख दिया।
पुलाव पकने में जितनी देर लगी, खोजा पुलाव का पकना एकटक देखता रहा।
जब पुलाव तैयार हो गया, तब उसे आग पर से उतारकर थोड़ा ठंडा होने के लिए जमीन पर रख छोड़ा।
पुलाव खूब स्वादिष्ट बना था। उसकी खुशबू से खोजा का गधा भी प्रभावित हुए बिना न रह सका। वह घास चरना छोड़ खोजा के पास आकर अपनी दम हिलाने लगा।
खोजा ने एक बार अपने सोए हुए दोस्त की और देखा, फिर अपने प्यारे गधे को।
अगले ही पल उसने कुछ पुलाव अपने सामने रखी थाली में परोस और शेष अपने गधे के सामने रख दिया। फिर एक-दूसरे के पूरक मालिक और सेवादार, यानी खोजा और उसका गधा पुलाव का आनंद लेने में मशगूल हो गए।
पुलाव वाकई जायकेदार बना था।
खाते-खाते खोजा के हाथ की बार थमे। उसने रह-रह कर अपने दोस्त की और देखा। उसके मन में बार-बार यह विचार आया कि उसे अपने दोस्त को जगा देना चाहिए, लेकिन हर बार उसने अपना इरादा त्याग दिया।
उसने तय किया कि ऐसे दोस्त को पुलाव का स्वाद चखाने की बजाय उसे मजा चखाना ही ज्यादा जरूरी है। देखते ही देखते खोजा और उसका गधा मिलकर सारा पुलाव चट कर गए।
जब खोजा बर्तन साफ़ कर रहा था, तो उसका दोस्त आँखे मलता हुआ उसके पास पहुंचा और झुंझला कर बोला, अरे खोजा! तुमने पूरा पुलाव अकेले ही कैसे खा लिया ?
मुझे क्यों नहीं जगाया ?
खोजा ने बड़े ही इत्मीनान से बताया, मेरे प्यारे दोस्त! क्या तुमने यह नहीं कहा था कि तुम्हें कुछ नहीं आता ?
मैंने सोचा, तुम्हें पुलाव खाना भी नहीं आता होगा। इसलिए मैंने तुम्हें नहीं जगाया।