एक बार बादशाह ने देश के तमाम बड़े अफसरों, रईसों और बुद्धिमान लोगो को अपने यहाँ भोज पर आमंत्रित किया।
सभी लोग सज-धज कर बादशाह के यहाँ पहुंचे।
इन मेहमानों में खोजा नसरुद्दीन भी था।
बादशाह के निमंत्रण पर आए उन सभी लोगों में से किसी की भी समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि आखिर हमारे कंजूस बादशाह ने यह दावत दी तो क्यों दी ?
सबसे ज्यादा उलझन में था - खोजा।
बादशाह के यहाँ दावत पर पहुंचे सभी लोग यह देखकर हैरान थे कि बादशाह ने उन्हें बुलाया है तो शायद इसलिए कि वह उन्हें खिला-पिलाकर कई महीनों तक नए-नए बहानों से नए-नए टैक्स लगाकर
उनसे दावत की कीमत वसूल कर लेगा, लेकिन खोजा के पास तो एक गधे के अतिरिक्त और कोई पूंजी भी नहीं है,
वैसे भी बादशाह जिन दिनों बीमार चल रहा था, तब खोजा ने दूर की सोची थी, उसके बाद तो बादशाह को खोजा की शक्ल भी नहीं देखनी चाहिए थी।
खैर, दस्तरखान बिछे।
सबने छक कर भोजन किया, डकारें ली और रवानगी की तैयारियां करने लगे।
तभी देखते क्या हैं कि राजमहल के भीतर से कुछ राजकर्मचारी उपहारों के टोकरे लेकर आ रहे हैं।
पहले तो उन्हें यही लगा कि जो उपहार लेकर वे यहां आये थे और बादशाह की नजर किये थे वही उपहार वापस आ रहे हैं लेकिन जब तमाम टोकरों में एक जैसी चीजें ही नजर आईं तो उनका अंदाज गलत निकला।
बादशाह ने तमाम मेहमानों को कपड़ों का एक जोड़ा भेंट किया। सबसे अंत में बारी आई खोजा की।
उसे भी एक जोड़े कपड़ा भेंट किया गया। लेकिन खोजा को दिया गया जोड़ा बाकी तमाम जोड़ों से एकदम अलग था।
वह जोड़ा आदमी के पहनने वाले कपड़ें का न होकर गधे की पीठ पर रखे जाने वाले जामे का था।
खोजा ने जैसे ही उस जोड़े को खेल कर देखा, उसे समझते देर नहीं लगी कि उसे अपमानित करने के उद्देश्य से ही उसे इस दावत में आमंत्रित किया गया है।
सबके सामने बादशाह ने उसे यह जताने की कोशिश की है कि वह एक जोड़ी कपड़े के लायक भी नहीं है।
बादशाह की निगाह में मुझे ज्यादा औकात मेरे गधे की है।
फिर इससे पहले कि वहां मौजूद मेहमान खोजा की हंसी उड़ाएं खोजा ने हँसते हुए कहा, मेहरबानों, आप सब देख रहे हैं कि बादशाह हुजूर मुझे आप सबसे ज्यादा पसंद करते हैं।
इसीलिए उन्होंने आप सबको तो बाजार में मिलने वाले आम रेशम के कपड़े का जोड़ा दिया है, लेकिन मुझे तो उन्होंने स्वयं का जमा ही भेंट में दें दिया है।
खोजा की बात सुनकर वहां उपस्थित सभी मेहमान ठहाके लगाकर हंसने लगे, लेकिन बादशाह के चेहरे पर जैसे कालिख ही पुत गई।
वह मुंह फेरकर चुपचाप महल में चला गया।