ख़ुशी का दिल

एक बार खोजा के मुल्क के बादशाह को अपनी प्रजा के बीच जाने की सनक लगी।

बादशाह की सनक का पता लगते ही सारे राजकर्मचारी इस चिंता में पद गए कि कहीं लोग बादशाह के सामने उनकी गुंडागर्दी की पोल न खोल दें।

उन्होंने तय किया कि बादशाह जहाँ-जहाँ भी ले जाया जाए,

वहां के लोगों को पहले ही सिखा-पढ़ा दिए जाये कि उन्हें बादशाह के आगे क्या कहना है और क्या नहीं कहना।

फिर क्या था। हर दिन वे किसी के भी घर, खेत-खलिहान पर जा धमकने लगे।

उन्हें डराते, धमकाते, उनकी जरूरी चीजें जब्त कर लेते और हिदायते देते कि जब बादशाह तुम्हारे घर आए तो तुम्हें यह कहना है, यह नहीं कहना है।

यदि तुमने कुछ और कहा तो तुम्हारी जब्त की गई चीजें कभी वापिस नहीं मिलेगी।

अलबत्ता राज कर्मचारी यह भी सोच रहे थे कि जल्द ही बादशाह की यह सनक उत्तर जाएगी और वह प्रजा के बीच जाने का विचार त्याग देंगे मगर वह सचमुच एक दिन महल से बाहर दिखाई दिया।

फिर दूसरे दिन, तीसरे दिन, चौथे दिन, पांचवे दिन, इस तरह से तकरीबन एक पखवाड़े तक बादशाह आम जनता के बीच गया।

उससे अगले दिन वह खुद महल से बाहर न आया अलबत्ता खोजा को महल में बुलवा लिया।

खोजा के पहुंचने पर बादशाह बोलै, खोजा पिछले एक पखवाड़े मैं अपनी प्रजा के बीच गया।

मुझे हर आदमी उदास, डरा-डरा नजर आया। मैं तुमसे यह जानना चाहता हूँ कि मेरी हुकूमत में एक भी आदमी खुश क्यों नहीं है।

तुम एक नेक दिल और हुनरमंद इंसान हो, तुम्हीं बताओ, वह कौन-सा दिन होगा जब मेरी प्रजा खुश नजर आएगी ?

खोजा तुरंत बोला, जहाँपनाह! जिस दिन आप यह एलान कर देंगे कि अब आप कभी राजमहल से बाहर नहीं निकलेंगे।

अचानक बादशाह ने खोजा को टोका, यह मेरे महल से निकलने न निकलने से जनता की ख़ुशी का क्या संबंध है ?

खोजा ने बताया, दरसअल आप जनता के बीच जाने वाले हैं यह जानते ही आपके मुलाजिमों ने

जनता को बेहिसाब सताना शुरू कर दिया था ताकि कोई भूल से भी आपके सामने अपनी माली हालत का सच्चा कच्चा चिट्ठा न खोल दे।

जैसे ही आप यह नया ऐलान कर देंगे, आपके मुलाजिम जनता को संतान कर कर देंगे।

उनकी जो जरूरी और कीमती चीजें जब्त कर ली गई हैं, वे उन्हें वापस कर देंगे। इस तरह जनता के चेहरे पर कुछ समय के लिए ही सही, ख़ुशी लौट आएगी।

जहाँ तक सच्ची ख़ुशी का मामला है वह तो उसी दिन नजर आएगी जिस दिन वह खुद इस मुल्क की बादशाह होगी,

यानि यहाँ लोकतंत्र कायम होगा।