एक दिन खोजा एक बड़ी-सी नदी के किनारे अकेला बैठा था।
इतने में दो मोटे-ताजे आदमी वहां आ पहुंचे। नदी पर पल नहीं था।
दोनों खोजा से प्रार्थना करने लगे। भाई हम दोनों राजधानी के बड़े सेठ हैं।
अगर आप हमें अपनी पीठ पर बैठा कर नदी पार करा दें तो हम आपको एक-एक रुपया देंगे।
खोजा बोला, नदी का बहाव बहुत तेज है। पानी काफी गहरा है। अगर मैं या आप दोनों बह गए तो क्या होगा ?
कोई बात नहीं भाई व्यापारियों के लिए जान से ज्यादा पैसों की कीमत है। एक सेठ ने कहा।
इस बात की चिंता मत करो भाई।
अगर हम नदी में बाह भी गए तो आपको दोषी नहीं ठहराएंगे। दूसरा सेठ पहले का समर्थन करता हुआ बोला।
खोजा कुछ सोच में पड़ गया। तभी पहला सेठ बोला और रहा आपको डूबने या बहने का सवाल तो भाई मेरे आप जैसे गरीब आदमी का जीना-मरना तो लगा ही रहता है।
बिना पैसे-धेले तो आप यों भी मरे हुए आदमी के समान ही हैं। हाँ हमें नदी पार करवाने में अगर आप कामयाब हो गए तो आपकी जेब में दो रूपये आ जायेंगे।
कल्पना करो इन दो रुपयों से तुम्हारा कितना काम निकलेगा ?
खोजा को उन सेठों की बातें सुनकर बड़ा दुःख पहुंचा उसने महसूस किया की दोनों सेठ महास्वार्थी हैं।
मुझसे मदद मांग रहे हैं पर मेरे मरने-जीने की इन्हें तनिक भी चिंता नहीं है।
खोजा ने पक्का इदारा कर लिया कि इन सेठों को सबक जरूर सिखाना चाहिए। इन्हें बता ही दूँ कि मरना कैसा होता है।
तब उसने सेठों से कहा, जब आप इतनी जिद कर रहे हैं तो ठीक है मैं आपको नदी पार करने के लिए तैयार हूँ।
उसने एक सेठ को नदी पार करा दी और उससे एक रुपया वसूल कर लिया। जब दूसरे सेठ को पीठ पर लाड कर मझधार में पहुंचा तो जानबूझ कर फिसल गया और नदी में गिर गया। सेठ भी नदी में बह गया।
यह देखकर उस पार खड़ा सेठ फूट-फूट कर रोने लगा। खोजा भी उस पार पहुंच कर रोने लगा और मातम मनाने लगा। यह देखकर सेठ चकित होकर उससे पूछा, मैं तो अपने साथी की मौत पर रो-रोकर मातम मना रहा हूँ। तुम क्यों रो रहे हो भाई।
खोजा बोला मैं तो अपने दूसरे रूपये का मातम मना रहा हूँ क्योंकि नदी में सेठ के साथ वह भी बाह गया है।
आप ही ने तो कहा था कि रूपये से बढ़कर दुनिया में और कोई चीज नहीं होती।