एक बार कई अक्लमंद आदमी एक साथ नदी के उस पार जाने के लिए नदी के तट पर पहुंचे।
उन्हें नदी के उस पार जाना था, लेकिन तब वहां कोई नाव न होने के कारण इन्तजार करने के अलावा उनके पास कोई और विकल्प नहीं था।
अभी उन्हें वहां पहुंचे कुछ ही देर हुई थी कि एक अक्लमंद आदमी को एक उलझन ने घेर लिए।
उसने अपने तमाम अक्लमंद साथियों के सामने अपनी उलझन बयान की - साथियों! यदि किसी दिन इस नदी में आग लग जाए तो इसमें रहने वाली मछलियां का क्या होगा ?
वे बेचारी कहाँ जाएंगी ?
उलझन सुनते ही सभी अक्लमंद इस उलझन का हल खोजने में जुट गए लेकिन हाल यह था कि उनमें से किसी के भी दिमाग में उस उलझन को सुलझाने का उपाय समझ में ही नहीं आ रहा था।
सभी उस उलझन का हल खोजने में इतने व्यस्त थे कि एक बार भी किसी नाव की तरफ देखा तक नहीं।
फिर दूसरा दिन गुजर गया, फिर तीसरा, चौथा, पांचवा। इस बीच न तो किसी अक्लमंद को कोई हल सूझा और न कोई वहां से टस से मस ही हुआ। वे सब अपनी-अपनी जगहों पर बैठे रहे।
तब कुछ लोगों ने बादशाह को यह खबर पहुंचाई कि पांच दिन से कुछ अक्लमंद जाने किस उधेड़-बुन में हैं।
यदि कुछ दिन यही हाल रहा तो सबके सब भूतपूर्व हो जायेंगे। तब मुल्क में एक ही अक्लमंद खोजा बचा रह जाएगा। इसलिए बादशाह को फ़िक्र करनी चाहिए।
बादशाह के आदेश पर वजीर अक़्लमंदों के पास गया और उनसे बातचीत की। वजीर के पूछने पर अक़्लमंदों ने उसे अपनी उलझन बताई।
वजीरे ने उन्हें सलाह दी, आप सबको तो अपनी उलझन का हल मिल नहीं रहा है।
इतने दिन तक नहीं मिला, इसका मतलब यह हुआ कि आगे भी नहीं मिलने वाला।
हमारा मुल्क एक साथ इतने अक़्लमंदों से हाथ नहीं धोना चाहता इसलिए मुल्क की और आपकी भलाई इसी में है कि अपनी जिद और गरूर छोड़कर आपमें से जो अक्लमंद हो, उसे खोजा के पास भेजिए।
हो सकता है वह कोई हल बता दे।
तब उन्होंने इस सवाल का जवाब जानने के लिए सबसे ज्यादा अक्लमंद आदमी को खोजा के पास भेजा।
खोजा ने सवाल सुनते ही फ़ौरन जवाब दिया, अरे भाई तुम इस मामूली से सवाल के बारे में इतने परेशान क्यों हो, अगर नदी में आग लग ही गई तो क्या मछलियां पेड़ पर नहीं चढ़ जाएंगी ?
खोजा से अपनी उलझन का हल जानकार वह अक्लमंद आदमी बेहद खुश हुआ।
वह फटाफट अपने साथियों के पास पहुंचा और उन्हें खोजा का उत्तर सुनाया। हल मिलते ही वे तमाम लोग ख़ुशी से झूमने लगे।