एक दिन कैलाश पर्वत पर शिव-पार्वती बैठे थे।
दोनों के मध्य पृथ्वीलोक के विषय में बातचीत चल रही थी।
दोनों ने पृथ्वी लोक भ्रमण करने का फैसला किया और फिर भ्रमण के लिए निकल पड़े। तभी एक नगर के ऊपर से गुजरते हुए मां पार्वती ने देखा कि एक वृद्ध दंपत्ति अपने पुत्र के साथ दयनीय हालत में भिक्षा मांग रहा है।
पार्वती दुखी हो गई। वे शंकर जी से बोली - प्रभु! आपकी बनाई दुनिया में कैसे गरीब लोग हैं ?
इनकी मदद कीजिए। शिव जी ने कहा - मैं इन्हें प्रसन्न नहीं कर सकता क्योंकि ये अपने मन की दुर्बलता व नकारात्मक सोच के कारण दुखी हैं।
परन्तु पार्वती जी का आग्रह जारी रहा। आखिर शिव जी को प्रणाम किया। शिव जी ने उन्हें वरदान मांगने को कहा। वृद्ध औरत बोली - देव आप मुझे 18 वर्ष की युवती बना दें।
शिव जी ने तथास्तु कह दिया। यह देख वृद्ध चिढ़कर बोला - दुष्टा! मुझे पता था कि अपने आसक्तियुक्त आचरण के कारण मुझे इस अवस्था में तू छोड़कर जाएगी।
शिव जी बोले - आप क्यों परेशान हो रहे हैं ?
आप भी वरदान मांग लें। वृद्ध ने कहा - आप इसे सुअरी बना दें।
भगवान शिव के तथास्तु कहते ही वह सुअरी बन गई।
माँ की दशा देखकर पुत्र रोने लगा। शिवजी ने उसे भी वरदान मांगने को कहा, तो वह बोला - भगवान! आप मेरी मान को उसके असली रूप में कर दें।
भगवान शिव के तथास्तु कहते ही वह फिर से वृद्ध स्त्री बन गई।
भगवान शिव ने कहा - आप लोगों ने अच्छा वरदान मांगने का अवसर खो दिया।
यह कहकर शिव गायब हो गए।
यह सब देख पार्वती ने शिव से कहा - प्रभु आपने सत्य कहा था। अच्छा वरदान मांगते कैसे ? आखिर मन की दुर्बलता ही बाहर आई। वस्तुतः असंयमी व असंतुष्ट लोग अच्छे अवसरों का लाभ नहीं उठा पाते और दुखी ही बने रहते हैं।