गोनू झा की शिकारी बिल्ली

मिथिला के दरबार में गोनू झा की धाक तो जम ही चुकी थी। यद्यपि उनका विरोधी दल अभी भी अवसर की तलाश में रहता था। पर भूखन मिश्रा जी का हश्र देखकर सब कतराने लगे थे। सबने फंदेबाजी सोचना भी बंद कर दिया था। फिर भी वे सब दिन-रात यही कामना करते कि किसी दिन गोनू झा महाराज की कोपदृष्टि और राजदंड के भागी बनें और उन्हें खुशी हो।

एक बार मिथिला नगरी में चूहों की संख्या इतनी बढ गई कि किसान वर्ग ही नहीं साधारण गृहस्थ भी परेशान हो गए। चूहे फसल तो खा रहे थे साथ में कपड़ो को कुतरने में भी आलस नहीं कर रहे थे। यहां तक कि राज्य के खाद्य-भंडार में भी सेंध लग गई थी।

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मिथिला नरेश को इस समस्या के बारे में पता चला तो वह चिंतित हो उठे। उन्होने आपातकालीन बैठक बुलाई और समस्या रखी।

"इस समस्या का कोई हल खोजिए।" महाराज ने कहा।

"चूहों से तो बिल्ली ही लड़ सकती है। बिल्ली ही चूहों की शत्रु है और कहते हैं कि जहां बिल्ली होती है, वहां दूर-दूर तक चूहे नहीं होते।' गोपलाल ने अपना सुझाव दिया-"एक बिल्ली हजार चूहों पर भारी है।'

"सुझाव तो उचित है ।" महाराज ने माना - "फिर तो यही आदेश जारी किया जाय कि प्रत्येक घर म्र बिल्ली पालना आवश्यक है ।"

"महाराज" गोनू झा बोले - "इतनी बिल्लियां कहाँ से आएंगी । सौ-पचास तो खैर प्रयास करने पर मिल भी जाएंगी ।"

"यह भी समस्या है । इसका भी हल सोचिए ।"

"महाराज, मेरे विचार से तो यह आदेश दरबारियों को दिया जाय । प्रत्येक दरबारी एक बिल्ली पाले और उसे प्रशिक्षित करे । फिर उसे अपने इलाके मे छोड़े । तब तो चूहों पर कुछ लगाम लग सकती है । प्रशिक्षण प्राप्त बिल्ली ही हमारे अभियान को सफल बना सकती है । साधारण बिल्ली तो अपना खाती है और सो जाती है ।"

"बिल्कुल उचित । ठीक है, सभी दरबारियों को हमारे ओर से यह आदेश दिया जाय कि वह एक-एक बिल्ली पालें और उसे निरन्तर शिकार के लिए प्रशिक्षित करें ।" महाराज ने कहा ।

"परंतु महाराज, ऎसी बिल्ली को पालने मे खर्च भी तो आएगा ।"

"उसे राजकोष वहन करेगा । क्या खर्च आएगा ।"

"खर्च क्या !" एक दरबारी बोला ।

"बिल्ली को चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए दूध की आवश्यक्ता होगी ।"

"ठीक है । राज्य की तरफ से प्रत्येक बिल्ली पालने वाले दरबारी को एक गाय दी जाएगी ।" महाराज ने घोषणा की ।

गोनू झा मुस्कुरा उठे । इस बहाने दूध पीने को एक गाय मिल जाएगी । वैसे भी गोनू झा के घर इस समय कोई दुधारू गाय-भैंस नही थी ।

"हम एक माह बाद हम बिल्लीयों का स्वयं निरीक्षण करेंगे । जिसकी बिल्ली भी कमजोर या कार्य के अनुरूप न पाई गई, वह दंड पाएगा ।" महाराज ने कहा ।

और इस आदेश के बाद दरबार के सवा सौ दरबारियों को एक-एक बिल्ली और गाय दे दी गई । गोगू झा तो गाय और बिल्ली लेकर अपने घर भरौरा चले आए । अब एक माह बाद ही जाना था बशर्ते की कोई सरकारी बुलावा न आ जाए ।

उधर जितने भी दरबारी बिल्ली पाल रहे थे सब दंड के भय से बिल्ली को अपने बेटे-बेटी की तरह पालने लगे । सारा दिन गाय की टहल चाकरी और बिल्ली की देख-रेख मे व्यतीत करने लगे । गाय का सारा दूध बिल्ली को पिलाया जाता । बिल्ली चुस्त तो नही तंदरुस्त होती जा रही थी । दूध पी-पीकर बिल्लियाँ मुटिया गई थीं । दिन भर सुस्त पड़ी रहती । चूहा उसके सामने नाचता गुजर जाता ।

'कैसी है मौसी ! भूख तो नही लगी ।' चूहा पूछता ।

'चल भाग । मैं चूहे खाऊंगी । राजसी बिल्ली हूँ । दूध पीती हूँ दूध ।' बिल्ली जबाव देती - अब जा आराम करने दे । आलस आ रहा है ।'

उधर गोनू झा की बिल्ली का हाल सुनिए ।

गोनू झा ने युक्ति सोच ली थी । वह गाय उस मुई बिल्ली के लिए नहीं लाए थे बल्कि भोनू के लिए लाए थे जो खेती मे परिश्रम करता था । उन्होने पहले ही दिन एक कटोरा दूध खौलाकर बिल्ली को पुचकारा ।

दूध देखकर बिल्ली दौड़ी आई पर गर्म दूध का आभास होते ही 'म्याउं' 'म्याउ' करने लगी । बिल्ली गोनू झा से शायद अपनी भाषा मे कह रही थी कि 'अरे, हम बिल्लियाँ इतना गरम दूध नही पीतीं ।'

"क्या म्याउं, म्याउं करती है । चल दूध पी ।" गोनू झा ने जबरन बिल्ली के मुँह को गर्म दूध से लगा दिया । बिल्ली छटपटाई और जरा सी ढील मिलते ही कूदकर दूर खड़ी हो गई । बितर-बितर दूध को देख रही थी । भूख से परेशान थी की एक चूहा निकलकर भागा । बिल्ली ने एक ही छलांग में दबोचा । 'अब तू भी पंजे से भागेगा ।' बिल्ली ने गुस्से से चूहे को उधेड़ डाला ।

गोनू झा का प्रयोग और प्रयोजन सफल हो गए और बिल्ली का प्रशिक्षण शुरु हो गया । गोनू झा ने चार-पाँच दिन यह प्रयोग किया । परिणाम यह हुआ कि बिल्ली को दूध देखते ही कंपकंपी छूटने लगती । अब वह दूध की तरफ झांकती भी नही थी । तमाम दिन चूहों को मारती रहती । चूहों की तो मानो शामत आ गैइ थी । ऎसी शीकारी बिल्ली उन्होने गाँव मे पहली वार देखी जो दूध रोटी आदि होने पर भी केवल चूहों को ही खाती थी ।

'मौसी, तेरे मालिक के घर मे तो दूध भी है । खाने की कई चीजें हैं । एक दिन उसके पंजे मे फसे चूहे ने पूछा - 'फिर तू सिर्फ मेरे पीछे क्यों पड़ी है ।"

'मैं दूध को तो हाथ कतई न लगाऊं ! दूध मुझे पसंद ही नहीं ।'

इस प्रकार एक माह का समय बीत गया । गोनू झा की बिल्ली बहूत दुबली-पतली थी पर चूहा दिखते ही उसकी छलांग और चपलता बड़ी दर्शनीय थी । गोनू झा ने बिना एक बूंद दूध पिलाए उसे पाला था ।

जब गोनू झा दरबार मे बिल्ली लेकर पहुंचे तो उसके बिल्ली के सेहत देखकर सारे दरबारी चकित हो उठे । उनकी अपनी बिल्लियाँ तो दस-दस किलो वजन की हो रही थी और उनकी गोद मे सो रही थी । विरोधी दल तो हर्षित हो उठा कि आज गोनू झा अपने आप फंस गए । उनकी बिल्ली की दयनीय स्थिति देखकर महाराज का क्रोध उन पर अवश्य टूटेगा और कोई दंड भी मिल जाए तो कोइ आश्चर्य की बात नहीं ।

"पंडित जी, लगता है सारा दूध खुद चट कर गए । बेचारी बिल्ली को तो दाल-भात ही खिलाते रहे लगते हैं ।" गोपलाल ने पूछा ।

"कुछ मत पूछिए गोपलाल जी ।" गोनू झा बोले - "इतना कुछ खाने-पीने के बाद भी यह ऎसी ही रही । शायद यह शिकारी वंश से है ।"

तभी महाराज ने दरबार में कदम रखा। सभी दरबारियों ने खड़े होकर सिर झुकाकर उन्हें प्रणाम किया। महाराज सिंहासन पर बैठे कि उनकी दृष्टि गोनू झा की गोद में मचल रही बिल्ली पर पड़ी।

"अरे पंडित जी, आपकी बिल्ली क्या बीमारी है जो ऎसी दिख रही है। अन्य बिल्लियां तो जैसे भारी-भरकम चीते का बच्चा लग रही हैं।"

'महाराज, यह बीमारी नहीं है। बस शिकारी वंश से है।"

"क्षमा चाहूंगा महाराज।" गोपलाल ने अवसर ताड़ा- "यह गोनू झा का बहाना भर है। आपकी कृपा का अनुचित लाभ उठाने का प्रयास है। इन्होंने इस बेजुबान बिल्ली को दूध की बूंद भी नहीं दिखाई है। सारा दूध खुद ही पी गए हैं। अन्य सबकी बिल्लियां तो देखें। जैसे कोई छोटा-मोटा चीता होता है, ऎसी दिख रही हैं। इनकी बिल्ली बेचारी तो जैसे अंतिम सांस ले रही है। कैसे जीभ बाहर निकाले हांफ रही है।'

"गोनू झा हमें तुमसे ऎसी आशा नहीं थी।" महाराज क्रोधित हो उठे-"तुमने हमारे आदेश का उल्लंघन किया है। जब हमने बिल्ली के लिए दूध की व्यवस्था एक गाय देकर की थी तो आपने इसे दूध क्यों नही पिलाया।"

"महाराज, मेरी बिल्ली दूध पीती ही नहीं।"

सारे दरबारी ठठाकर हंस परे। उनकी समझ में यह संसार का सबसे बड़ा चुटकुला जो था कि बिल्ली दूध नहीं पीती।

"देखा महाराज, कौन इस अनर्गल बात पर विश्वास कर सकता है।" गोपलाल बोला-"संसार की कौन बिल्ली होगी जो दूध न पिएगी।"

"हाथ कंगन को आरसी क्या महाराज! आप दूध मंगाकर देखिए। अगर यह एक बूंद भी पी ले तो जो दंड आप दें वह स्वीकार होगा।" गोनू झा ने कहा।

तत्काल कटोरा भरकर दूध लाया गया। गोनू झा बिल्ली को दूध के पास धकेलने लगे और वह पीछे को यूं हटने लगी जैसे सामने दूध नहीं कोई खूंखार कुत्ता खड़ा था। गोनू झा ने बहुत प्रयास किया। और लोगों ने भी बहुत प्रयास किया पर बिल्ली ने दूध में मुंह नहीं मारा।

सारे दरबारी आश्चर्यचकित थे कि यह क्या गोरखधंधा था। आपने देखा महाराज कि मेरी कोई गलती नहीं है।" गोनू झा बोले।

'बड़े आश्वर्य का विषय है पंडित जी।'

"महाराज, बिल्लियों की कुछ प्रजाति सिर्फ मांसाहारी होती हैं। उन्हें शिकार ही पसंद होता है। घने जंगलों की बिल्ली कहां दूध पीती है। वह तो सिर्फ चूहों का भक्षण करती है। मेरी बिल्ली भी उसी प्रजाति की है।"

"यह तो खैर हम भी जानते हैं। क्योंकि हमारी मूल समस्या तो राज्य में बढते जा रहे चूहें हैं।' महाराज ने स्वीकार किया।

'महाराज, यद्यपि मैं कहना नहीं चाहता, फिर भी अवसर ऎसा आ पड़ा है कि मुझे कहना होगा। मेरी बिल्ली का एक अवगुण सबको मेरी नीयत पर संदेह करा रहा है। परंतु आपने जिस उद्देश्य से बिल्ली पालने का आदेश दिया, उसमें किसकी बिल्ली खरी उतरती है, यह देखने का विषय है। मेरी बिल्ली का यह गुण मेरे कर्त्तव्यनिष्ठ होने का प्रमाण होगा। यदि मैं दंड का अधिकारी था तो पुरस्कार भी मुझे ही मिलेगा।"

"अवश्य! हम आपका मंतव्य समझ गए। कल शाही मैदान में इन बिल्लियों का प्रशिक्षण होगा। सैनिकों, आज पिंजरो में जितने अधिक चूहे पकड़े जा सकें, पकड़कर शाही मैदान में पहुंचा दो।" महाराज ने आदेश दिया-" जो बिल्ली चूहों के शिकार में अच्छा प्रदर्शन करेगी, उसे हम पुरस्कार देंगे।"

सब दरबारी सोच में पड़ गए। आज तक उनकी बिल्लियों ने चूहे के बच्चे का भी शिकार न किया था। शिकार तो तब करतीं जब दूध के कटोरे से उनका मुंह हटता। अब तो सब यही प्रार्थना कर रहे थे कि अपनी जन्मजात आदत के कारण उसकी बिल्ली अपने प्रिय भोजन को ज्यादा से ज्यादा शिकार करे।

खैर सवेरा हुआ। सब अपनी बिल्लियों को लेकर मैदान में आ पहुंचे। सैनिको ने सैकड़ो चूहे पिंजरो में बंद कतारों में रखे थे।

मिथिला नरेश का आगमन हुआ और उनके आदेश पर चूहों के पिंजड़े खोल दिए गए। चूहे मैदान में दौड़ पड़े। सबने अपनी-अपनी बिल्लियां छोड़ दी। चीते की तरह दिखने वाली बिल्लियां चूहों की ओर निहार भी नही रही थी। कुछ चूहे तो बड़ी बहादुरी दिखाते हुए उन बिल्लियों को लांघकर चले जा रहे थे। और गोनू झा की बिल्ली तो साक्षात् काल रूप धरकर चूहों को चुन-चुनकर उधेड़ रही थी। उसकी फुर्ती जैसे बिजली को भी मात करती थी। जैसे कोई रबर की गेंद उछल रही थी। उस अकेली बिल्ली ने पचास-साठ चूहों की लाशें बिछा दी थीं और अब आराम से भोजन कर रही थी।

निर्णय हो गया। पुरस्कार गोनू झा ने जीता।

"इन लोगों ने तो हमारा अभिमान ही चौपट कर दिया।' महाराज चिंतित होकर बोले-"अब एक अकेली आपकी बिल्ली तो सारी मिथिला के चूहों को समाप्त नही कर सकेगी।'

'यदि अन्य बिल्लियों को दूध मिलना बंद हो जाए तो यह चार दिन में ऎसी ही खुंखार हो जाएंगी जैसी मेरी बिल्ली है।' गोनू झा ने सुझाव दिया।

महाराज ने तत्काल आदेश देकर सबकी गायें वापस ले लीं। गोनू झा की गाय अभी भी भोनू झा का स्वास्थ्य बना रही थी।