गोनू झा और उजाले का पेड़

एक बार ईरान का एक व्यापारी मिथिला के दरबार में आया। वह बहुत धनी था और अभी भी बहुत लाभ कमाकर अपने देश को लौट रहा था। उसने मार्ग में कहीं सुना था कि मिथिला में विद्वानों की कमी नहीं है। व्यापारी भी विद्वानों की बहुत इज्जत करता था। उसने विचार किया कि यदि मिथिला दरबार का कोई विद्वान उसकी पहेली का उत्तर दे सका तो वह उसका सम्मान करते हुए उसे ढेर सारा पुरस्कार देकर जाएगा।

वह दरबार में पहुंचा तो उसके पास एक लकड़ी का बक्सा था। उसने महाराज को प्रणाम करके अपना परिचय दिया।

"जहांपनाह, मैं ईरान का ताजिर हबीबुल्लाह हूं। हिंदुस्तान से तिजारत करके लौट रहा था तो आपके दरबार की तारीफ सुनी। पता चला कि यहां एक से बढकर एक इल्मगीर और अक्लमंद है तो मैंने भी सोचा कि मैं भी तो परख करूं कि इस बात में कितनी सच्चाई है।"व्यापारी बोला।

'आप हमारे मेहमान हैं महोदय।' महाराज बोले-"आपकी इच्छा का सम्मान करना हमारा कर्त्तव्य है।"

"शुक्रिया! जहांपनाह, मेरे पास जो आप लकड़ी का बक्सा देख रहे हैं इसमें एक विचित्र चीज है। आपके दरबार में कोई अक्लमंद अगर यह बता सके कि वह चीज क्या है तो मैं उसे ढॆरों हीरे-जवाहरात पुरस्कार में दूंगा।" व्यापारी ने दरबार में नजर दौड़ाई।

"महोदय, उस चीज की विचित्रता क्या है?"

"वह एक अद्भुत है। उससे मैं बिना बीज, बिना पानी और बिना जमीन के पेड़ पैदा कर सकता हूं।"

सारे दरबारी हैरान रह गए। स्वयं महाराज भी हैरान रह गए।

'आश्चर्य! न देखा न सुना। बिना बीज के पेड़ कैसे सम्भव है। वह भी हो तो बिना जमीन और पानी के ऎसी कल्पना भी नही की जा सकती।"

"पर महाराज, मेरा दावा उतना ही सच है जितना सच यह है कि मैं आपके सामने खड़ा हूं। व्यापारी बोला-"अब मैं देखना चाहता हूं कि आपके दरबार में कौन ऎसा इल्मगीर है जो इस बक्से को खोले बिना इसमें बंद उस चीज की शिनाख्त कर सके।"

सारे दरबारी एक-दूसरे का मुंह देखने लगे। उस व्यापारी ने अजीब और कठिन पहेली पूछी थी। वह लोग क्या दिव्यदृष्टि रखते थे?

गोनू झा भी दरबार में थे और समझ गए थे कि उस व्यापारी की पहेली का अर्थ सरल नहीं था। दरबार के सारे विद्वान भी असमंजस में थे। तब गोनू झा ने उस स्थिति को सम्भाला।

"महोदय, जैसा कि महाराज ने कहा है कि आप हमारे मेहमान हैं।' गोनू झा ने विनयपूर्वक कहा-"अतः आज आप हमें मेहमाननवाजी का अवसर दें और कल आपके प्रश्न का उत्तर दे दिया जाएगा।"

"अच्छी बात है। लेकिन यह बक्सा मैं अपने पास ही रखूंगा ताकि इसे खोलकर कोई जान न ले कि इसमें क्या है।'

"महोदय, मैं तो यह भी चाहता हूं कि आज रात इस बक्से पर आपके ताले के अलावा शाही ताला भी होना चाहिए कि कहीं आप चीज बदल न दें।'

मिथिला नरेश समझ गए कि गोनू झा ने कोई युक्ति सोच ली है। उन्होंने भी उनकी बात का समर्थन किया। व्यापारी मान गया। राजसी ताला लगाकर उसकी चाबी स्वयं महाराज के पास रख दी गई।

"पंडित जी।' महाराज ने अगला आदेश दिया-'हम चाहते हैं कि शाही मेहमान की खातिरदारी की जिम्मेदारी आप ही उठाएं। याद रहे कि इन्हें किसी भी प्रकार का कष्ट न हो।"

"आज्ञा शिरोधार्य है महाराज ।"

फिर गोनू झा व्यापारी को लेकर अपने आवास पर आ गये । मिथिला मे उन्हे राज्य की ओर से भवन मिला हुआ था । वहाँ हर सुविधा थी और अन्य सुविधाओं के लिए बस सेवकों को आदेश देने की देर थी । गोनू झा ने व्यपारी के लिए शानदार भोजन की व्यवस्था कराई । हर पल उससे बतियाते रहे । व्यापारी क्योकी देश-विदेश की यात्रा करता रहता था तो वह भी बातों का बहुत शौकीन था । गोनू झा उसे पसंद आए । भोजन के पश्चात सोने के लिए गद्देदार पलंग थे । सोने से पहले भी दोनों आपस में बतिया ही रहे थे ।

"महोदय, ईरान मे तो तेल का अधिक व्यापार है ।" गोनू झा ने पूछा - "तो क्या आप भी देश-विदेशो में तेल ही वेचते हैं ।"

"नहीं जी । मैं तो वही पेंड़ बेचता हूं जिसका कोई बीज नही जिसे रोपने के लिए जमीन मे गड्ढा करने की आवश्यक्ता नहीं ।"

"तो आपके यह पेड़ क्या रात मे भी उगते हैं ।"

"सच पूछें तो यह पेड़ तो रात मे उगकर ही सुन्दर लगते हैं ।"

"अच्छा ! इनकी आयु तो कम ही होती होगी ।''

"हां जी । खैर, आप मुझे कुछ अधीक अक्लमंद दिख रहे हैं । आपको क्या लगता है की मेरे प्रश्न का कोई उत्तर दे सकेगा ।"

"महोदय, संसार मे बिना उत्तर का कोई प्रश्न ही नही होता । मैं आपके प्रश्न का उत्तर समझने का प्रयास कर रहा हू ।"

"मुश्किल है दोस्त । अच्छा, अब आराम करते हैं ।''

''ठीक है महोदय ।"

उस रात गोनू झा आराम से सोये क्योंकि वह जान चुके थे कि उस बक्से मे क्या है । वह उस पेड़ को जान गये थे जो बिना बीज के , जमीन के ऊपर और पानी के बिना पैदा होता है ।

सुबह हुई तो व्यापारी और गोनू झा ने नित्यकर्मों से निवृत्त होकर नाश्ता-पानी किया और दरबार को चल पड़े। व्यापारी ने अपना बक्सा अपने साथ ले लिया।

"तो पंडित जी, कुछ सूझा आपको?" व्यापारी ने हंसकर पूछा।

"अब दरबार में चलकर ही बताउंगा। हो सकता है कि मेरा उत्तर गलत हो। पहले यह तो देख लें कि शायद किसी और विद्वान ने आपका प्रश्न हल कर लिया हो।"

"वैसे मैं आपको एक सुझाव दे सकता हूं। इसमें हम दोनों का फायदा है।"

"आप व्यापारी हैं। फायदे की सोचना आपका धंधा है।"

"वही तो। ऎसा करते हैं कि मैं आपको अपने प्रश्न का उत्तर बता देता हूं। आप दरबार में बता दीजिए तो आपकी धाक जम जाएगी।"

"इससे आपका क्या फायदा होगा?"

"यह होगा कि मैं आपको जो मुंहमांगा पुरस्कार दूंगा, वह आप अधिक न मांगें। मेरा भी धन बच जाएगा।"

"महोदय, यह भारत की भूमि है। यहां पर बेईमानी नहीं चलती। यहां इल्म की कद्र है। आपका यह सुझाव मुझे थोड़ी प्रतिष्ठा और आपको जरा-सा धन लाभ अवश्य करा देगा पर इससे मैं तो स्वयं की नजरों में गिर जाऊंगा और मिथिला आपकी दृष्टि में ज्ञान हीन हो जाएगा। अच्छा यही है कि आपके प्रश्न का उत्तर बुद्धि से दिया जाए।"

"वाह, आप एक अच्छे इंसान हैं।" व्यापारी ने कहा-"आपके अंदर विद्वता भी है और अपनी मिट्टी से प्रेम भी। मुझे उम्मीद है कि मैं मिथिला से लौटूंगा तो आपको हमेशा याद करूंगा।"

इस प्रकार बातें करते-करते वे दोनों दरबार में पहुंच गए। दरबार सज चुका था। महाराज अपने सिंहासन पर विराजमान थे। व्यापारी ने जाते ही प्रणाम किया और अपने स्थान पर बैठ गया। गोनू झा ने भी मुस्कुराकर महाराज का अभिवादन किया तो महाराज का चेहरा खुशी से खिल उठा। वह समझ गए कि गोनू झा ने चतुराई से व्यापारी के प्रश्न का उत्तर खोज लिया है।

"जैसा कि कल दरबार में ईरान के व्यापारी महोदय ने एक पहेलीनुमा प्रश्न पूछा था। तो क्या मिथिला का कोई विद्वान उसका उत्तर जान पाया है।" महाराज ने सारे दरबारियों से पूछा।

सब दरबारी दाएं-बाएं झांकने लगे।

"तो क्या कोई नहीं बता सकेगा कि इनके बक्से में ऎसा क्या है जिससे यह बिना बीज का, बिना पानी के और जमीन में रोपे बिना पेड़ उगाते हैं।"

'अवश्य महाराज!" गोनू झा ने कहा-'आपकी कृपा से मैं समझ गया हूं कि इनके बक्से में क्या है। आपकी आज्ञा हो तो उत्तर दिया जाए।"

"अवश्य दिया जाए।"

"इससे पूर्व मैं व्यापारी महोदय से एक प्रश्न करना चाहूंगा। महोदय, आप वह विचित्र पेड़ रोज ही उगाते होंगे। तो क्या आप अपने पेड़ का नाम जानते हैं। अब आप यह न सोचें कि मैं आपसे नाम जानना चाहता हूं। मैं तो आपके पेड़ का नामकरण स्वयं कर रहा हूं। आपके पेड़ का नाम है 'उजाले का पेड़'। कहिए मेरी बात सत्य है।'

'मरहबा! आज तक मैं खुद इस पेड़ का इतना अच्छा नाम नहीं सोच पाया।"

"महाराज, इनके बक्से में आतिशबाजी का सामान है। जब यह उससे बनाए धमाके चलाते हैं तो आसमान में पेड़ की तरह उसकी झड़ियां बिखर जाती हैं और उजाला करती हैं। अब बक्से को खोलकर देखा जाए कि मेरा उत्तर ठीक है या गलत।"

"बिल्कुल ठीक!" व्यापारी बोला-"आप वाकई अक्लमंद हैं। मैं मान गया कि मिथिला के दरबार में इल्म की कमी नहीं है। आप जो चाहें पुरस्कार ले सकते हैं। मुझे बहुत खुशी होगी।"

"मैं पुरस्कार में मात्र एक आना रुपया मांगता हूं महोदय।" गोनू झा ने कहा।

व्यापारी हैरत में पड़ गया। गोनू झा ने उसे दिखा दिया था कि भारत की भूमि पर लालच का कोई काम नहीं। उसने एक आना तो दिया ही पर अपनी खुशी से गोनू झा को इतना इनाम दिया कि सारे दरबारियों के कलेजों पर सांप लोट गए।