गोनू झा और दो दोस्त

गोनू झा के पड़ोस के गांव में दो मित्र रहते थे। एक का नाम जंगलिया था और दूसरे का नाम मंगलिया। स्वभाव के अनुसार तो दोनों की मित्रता बेमेल थी। जहां जंगलिया जालसाज और रंगीला था, वहीं मंगलिया भोला-भाला किसान था। जंगलिया मेहनत से जी चुराता और मंगलिया दिन-रात खेतों में काम करता। जंगलिया गुल्ली-डंडा, पतंगबाजी आदि में प्रवीण था तो मंगलिया के हाथों मे खुरपा, फावड़ा और कुदाल सजते थे।

बचपन साथ गुजरा था तो मित्रता हो गई। जवान हुए तो मित्रता और भी प्रगाढ हो गई। पर एक बार ऎसा कुछ हुआ कि जंगलिया अपने मित्र मंगलिया से ईर्ष्या करने लगा।

हुआ यूं कि गांव में किसी रिश्तेदारी से एक लड़की वाला अपनी लड़की के लिए लड़का देखने आया। जंगलिया खूबसूरत था, जवान था और लड़की वाले ने उसे पसंद कर लिया। रिश्ता हो भी गया। पर गांव के किसी आदमी ने चुगली खाई और शादी टूट गई। जंगलिया को कोई दुख नहीं हुआ। वह तो समझता था कि उसकी शादी क्या बड़ी बात है।

पर उस वक्त वह मन ही मन किलस उठा जब उसने उसी लड़की की शादी मंगलिया से तय होती देखी। और उस वक्त तो उसके सीने पर सांप ही लोट गए जब उसने मंगलिया की पतुरिया (बीवी) को देखा। अप्सरा जैसी सुंदर और कामिनी लड़की मंगलिया जैसे गाबदी के साथ। वह अपने दिल से इस कसक को न निकाल सका। जब भी वह मंगलिया की बीवी को देखता तो उसके दिल कुछ दरकने लगता।

पर उस जालसाज ने कभी व्यवहार से जाहिर नहीं होने दिया कि उसके मन में कोई खोट है। वह तो किसी अवसर की प्रतीक्षा में था। किसी ऎसॆ अवसर की प्रतीक्षा में जब उसके अंदर का पुरुष अपने अपमान की आग में उस स्त्री को झुलसा सके। वह मंगलिया के घर जाता था और 'भाभी, भाभी' कहकर उससे खूब बतियाता।

एक दिन मंगलिया ने गंगा स्नान का मन बनाया और चल पड़ा।

रास्ते में गोनू झा से भेंट हो गई। वह भी गंगा स्नान को ही जा रहे थे। परिचय हुआ और साथ चलने को राजी हुए। गोनू झा उन दिनों कड़की में थे तो अपनी बुद्धि का प्रयोग करने से चूकते नहीं थे।

दोनों साथ चल रहे थे पर मौन थे। कोई वार्तालाप नहीं हो रहा था।

'पंडित जी, कुछ बातें करिए। ऎसे कहीं मार्ग कटता है।' मंगलिया बोला।

"भई, मैं तो बात करने के पैसे लेता हूं।"

"जी। क्या मतलब?"

'मतलब यह कि मैं एक बात बताता हूं तो दो रुपया लेता हूं।'

"कमाल है। मैंने पहली बार सुना है।"

"भाई, मैं ऎसी-वैसी बात नहीं बताता। काम की बात बताता हूं। मेरी दो रुपए की बात जीवन में एक बार काम जरूर आती है।'

"ऎसी बात है तो में आपसे दो-चार बातें खरीदनेको तैयार हूं।"

"फिलहाल दो ही खरीद लो। अगर काम आ जाएं तो भरौरा आ जाना। किसी से भी गोनू झा का नाम पूछना और दो-चार बातें पूछ आना।'

"ठीक है। अभी आप दो बातें बताओ।"

'निकालो चार रुपए।'

मंगलिया ने चार रुपए निकालकर दिए।

'सुन भई, गंगा स्नान करने जा रहे हो। उसका नियम है कि सदैव भीड़ से अलग जाकर एकांत में नहाओ। पहली बात।'

'और दूसरी बात!'

'कहीं कुछ आश्चर्य भरी चीज देखो तो देखकर भूल जाओ। उसके बारे में किसी से भी बात न करो। अपनी पत्नी से भी नहीं।'

मंगलिया को बातें तो साधारण लगी पर उसने याद कर लीं।

गंगातट पर पहुंचकर दोनों अलग हो गए।

मंगलिया स्नान करने चल पड़ा। बहुत भीड़ थी। अचानक उसे गोनू झा की पहली बात याद आ गई। वह भीड़ छोड़कर बहुत दूर एकांत में नहाने जा पहुंचा। सारे कपड़े उतारकर वह आनंद से नहाया। फिर नहा-धोकर कपड़े पहने और चल पड़ा घाट की ओर। वहां साज-सिंगार की बहुत-सी दुकानें देखकर पत्नी के लिए कुछ खरीदने का विचार बनाया। जैसे ही मंगलिया ने कुरते की जेब मे हाथ डाला तो सन्न रह गया । पैसे की थैली गायब थी । उसके चेहरे पर पसीना छलक उठा । उसकी जेब कट गई थी । अब क्या करे । अभी तक कुछ खाया-पीया भी न था ।

फिर उसे खयाल आया कि उस जगह जाकर देखें जहां स्नान किया था । दौड़ा-दौड़ा वहां पहुंचा तो जान मे जान आई । उसके रुपयों की थैली वहीं खुले मे पड़ी थी । जरूर कुरता पहनते वक्त जेब पलटने से थैली नीचे सरक गई थी । उसने गंगा मैया को धन्यवाद दिया और एक रुपया जल की धार में फेक दिया ।

अब उसे गोनू झा की पहली बात का खयाल आया । उसी की बात मानकर वह भीड़ से अलग नहाया था । यदी भीड़ मे कही थैली गिर जाती तो उसकी थैली मिलने वाली नही थी । एकांत में खुले मे पड़ी थैली भी किसी ने न उठाई थी क्योकि वहां कोई न गया था ।

मंगलिया को अपने दो रुपये वसूल होते लगे ।

उसने बाजार मे जाकर अपनी पत्नी के लिए ढेर सारा सौन्दर्य-प्रसाधन खरीदा और खुद जी भरकर कचौड़ी खाई । उसके बाद वह लौट पड़ा । उसे शाम तक घर पहुंच जाना था । भीषण गर्मी पड़ रही थी । कच्चा रास्ता था और अकेला मंगलिया बढा चला जा रहा था । अचानक उसे लघुशंका हुई । उसने आसपास देखा, कहीं कोइ नही था । फिर भी एक झाड़ी देखकर उसके पीछे जा बैठा । अचानक उसकी नजर एक विचित्र चीज पर पड़ी । वहां झाड़ी मे एक खरबूजा की बेल थी जिस पर एक बड़ा-सा खरबूजा लग रहा था ।

उसे आश्चर्य हुआ कि उस जंगल मे पानी का नामोनिशान नहीं था और वह खरबुजा फिर भी फल-फूल रहा है । उसे प्रकृति की उस कारीगरी पर बड़ा आश्चर्य था । वह वहां से चल पड़ा ।

शाम ढलते-ढलते ही वह घर आ गया था । उसकी पत्नी सुन्दरी ने अपने पति को बड़े लाड़-प्यार से पानी पिलाया । मंगलिया ने अपनी पत्नी को वह सारा सामान सौंपा जो खरीदकर लाया था । सुन्दरी खुश हो गई ।

"और बताइए क्या देखा मेले में ?" सुंदरी ने पूछा ।

मेले मे खास कुछ नही देखा । पर आज एक अजीब चीज देखी ।

क्या ?

मैने एक झाड़ी में खरबूजे की एक बेल पर तीन-चार कीलो का एक खरबूजा देखा । आश्चर्य तो यह है कि वहां पानी नहीं फिर भी खरबूजा वहां खूब फल-फूल रहा है । मंगलिया बोला ।

"ऎसा भी कहीं होता है भोले ।" तभी जंगलिया की आबाज आई - बिना पानी के कहीं फल फूलता है ।

यार मैने देखा है । मंगलिया बोला - आजा बैठ ।

भाभी, यह कोरी गप्प है । विश्वास मत करना । जंगलिया बोला ।

अब यह झूठ तो नहीं बोलेंगें ।

मुझे तो विश्वास नहीं । ऎसा होना असम्भव है । खैर, चल जरा, मेरे घर कीर्त्तन होने जा रहा है । चलकर कुछ काम देख ।

लल्ला, इन्होने अभी खाना नही खाया । सुंदरी बोली ।

भाभी अभी दस मिनट मे वापस आ रहा है ।

ठीक है । जल्दी आना जी ।

दोनो मित्र वहां से बाहर चले गये ।

मंगलिया, ऎसी गप्प क्यों हांकता है भाई तू । जंगलिया हंसकर बोला ।

यह गप्प नहीं है । तेरी कस्म, मैं सच कह रहा हूं ।

मैं नही मानता । मैं तो इस बात पर कोई भी शर्त लगाने को तैयार हूं ।

शर्त कैसी । मेरा भरोसा कर यार ।

कैसे करूं । यह असम्भब बात है भाइ । यदि तू मुझे उस खरबूजे को दिखा दे तो मैं वादा करता हूं कि तू मेरे घर मे जिस चीज पर हाथ रखेगा वह तेरी हो जाएगी । जंगलिया ने पासा फेंका ।

मंगलिया सीधा था पर गृहस्थ तो हो ही गया था। आवश्यकताएं बढ ही गई थीं। ऊपर से वह जानता था कि वह सही है। घर में दूध नहीं हो रहा था तो बहुत दिनों से जंगलिया की भैंस पर निगाह भी थी। सोचा कि इसको खरबूजा दिखा दूं तो यह हार जाएगा और शर्त के मुताबिक मैं इसकी भैंस पर हाथ रखकर उसे घर ले आऊंगा। सुंदरी खूब दूध पीएगी।

'देख ले, जुबान से मत फिर जाना।' मंगलिया ने दांव फेंका।

'नहीं फिरूंगा। पर तू भी याद रख कि यदि तू हार गया तो मैं भी तेरे घर में किसी एक चीज पर हाथ रखूंगा और वह मेरी हो जाएगी।' जंगलिया ने अपना जाल फेंक दिया।

'ठीक है। तू भी क्या याद रखेगा।"

दोनों ने शर्त लगा ली। जुबान का सौदा हो गया। उन दिनों जुबान की बहुत कीमत थी। प्राण जाए पर वचन न जाए। इसी जुबान की कीमत का लाभ उठाने का जंगलिया ने सोचा था। दोनों कीर्तन में जा बैठे। जंगलिया ने मौका देखा और सुन्दरी के पास पहुंचा।

"भाभी, आज बड़ी विचित्र बात सुनी। रेगिस्तान में खरबूजा। मेरा दिल तो उसे देखने को कर रहा है। पर मंगलिया मुझे उस जगह का नाम ही नहीं बता रहा। कृपा करके आप ही पूछकर बता दो।"

"ठीक है लल्ला। सुबह बता दूंगी।"

जंगलिया चला गया और भोर भये पहुंच गया भाभी के पास। मंगलिया उस समय दिशा-मैदान को गया था।

"भाभी, कुछ बताया उसने।"

'क्यों न बताते। गंगा के रास्ते में कहीं पीपल के चार पेड़ हैं। उनसे कुछ आगे चलकर एक पुराना मंदिर है। उसके सामने झाड़ी में ही वह खरबूजा लगा है।' सुंदरी ने बता दिया।

जंगलिया तत्काल चल पड़ा। थोड़ा कष्ट तो उठाया पर शीघ्र ही वह झाड़ी भी ढूंढ ली और खरबूजा भी। जालसाज ने बेल समेत खरबूजे को वहां से हटा दिया। अब खरबूजे का वहां कोई नामोनिशान नहीं था।

वह वहां से चल पड़ा और धूप चढते-चढते घर आ गया।

'कहां गया था भाई। मैं तुझे ढूंढ रहा था। रात की शर्त भूल गया।" मंगलिया ने कहा-"लगता है डर गया तू।"

"नहीं यार, मैं शर्त नहीं भूला। बस जरा इधर निकल गया था। अब हम दोनों चलते हैं। तू अपना खरबूज दिखा और जो चाहे ले।"

"चल फिर।" मंगलिया की आंखो में उसकी भैंस तैरी।

"चल। आज तू भी क्या याद करेगा कैसे रईस से पाला पड़ा।"

दोनों वहां से चल पड़े। मंगलिया आश्वस्त था कि उसने भैंस कमा ली। जंगलिया तो आज मन ही मन बड़ा खुश था। उसकी तो वह साध पूरी होने जा रही थी जिसने उसकी नींद उड़ाकर रख दी थी। सुंदरी का सुंदर चेहरा उसे रह-रहकर याद आ रहा था।

और उस स्थान पर पहुंचकर मंगलिया पर वज्रपात हो गया। झाड़ी में खरबूजा तो क्या बेल तक नहीं थी। यह और भी बड़ा करिश्मा था।

'तू हार गया यार। अब बोल क्या कहता है।" जंगलिया विजयी भाव से बोला।

"मेरे घर में कोई किमती चीज है ही नहीं।" मंगलिया फीकी हंसी हंसकर बोला-'पर यार, मैं खुद कल देखकर गया था।'

"सपना देखा होगा। जुबान का तो पक्का है न।"

'यह तो तू खुद जानता है।'

"फिर क्या है। घर चलते हैं। मैं तो भाभी पर हाथ रखूंगा।"

मंगलिया सन्न रह गया। मित्र अब घात करने पर तुला था। सारी कहानी शीशे की तरह साफ हो गई। सुंदरी से ब्याह न हुआ तो उसे हड़पने का मन बना लिया।

पर यह सवाल अपनी जगह था कि खरबूजा कहां गया। यह तो तय था कि वहां से बेल सहित उखाड़ गया है। पर किसे पता था कि यहां खरबूजा है। उसे खुद! और उसने अपनी बीवी को ही बताया था। तो क्या बीवी ने जंगलिया को बता दिया। यही बात थी।

तत्काल गोनू झा की दूसरी बात याद आ गई। उसने दूसरी बात न मानकर आज ऎसा संकट पैदा कर लिया था। अब तो गोनू झा ही इस संकट से पिंड छुड़ा सकता था। मंगलिया का हौसला बढा। राज में ही भरौरा जाकर उस विद्वान को आपबीती सुनाएगा।

'क्या बात है मंगलिया। तेरा तो दम निकल रहा है। जुबान की कोई कीमत समझता है कि नहीं।' जंगलिया बोला।

"अब तो तू जीता है भाई। जो करेगा तू करेगा।"

"मैं बहुत दिन से ऎसे अवसर की ताक में था।"

मित्र कहां था, वह तो आस्तीन का सांप था जो मौका मिलते ही डसने को तैयार था। दोनों घर पहुंचे।

मंगलिया उसी रात भरौरा पहुंच गया। गोनू झा का घर ढूढने में कोई परेशानी न हुई। मंगलिया ने रोते-रोते अपनी व्यथा बताई।

'घबराओ मत भाई।' गोनू झा ने कहा-'तुम बहुत भले और सीधे आदमी हो। तुम्हारा मित्र चालाक और जालसाज है। तुमने मेरी यह बात नहीं मानी की कुछ आश्चर्य भरा देखो तो उसकी चर्चा किसी से मत करो। तुमने अपनी पत्नी को बताया और उसके द्वारा तुम्हारे मित्र ने जानी। उसने तुमसे शर्त लगाई ही तब जब अपनी जीत का रास्ता बना लिया।"

'मुझसे गलती हो गई। पर अब मैं क्या करूं।'

'मुझे तेरे गांव आना होगा। तू आराम से जा, मैं सब ठीक कर दूंगा।'

मंगलिया अपने घर आ गया और सारी रात बेचैन रहा।

सवेरा हुआ तो पंचायत का बुलावा आ गया। वह घबरा गया। अभी कुछ सोच भी नहीं पाया था कि गोनू झा आते दिखाई पड़े। उसका मन खुश हो गया। गोनू झा ने आते ही सारी बात दोबारा सुनी और जंगलिया को सबक सिखाने की युक्ति सोचकर मंगलिया को बताई। फिर दोनों पंचायत में जा पहुंचे।

बहुत-से लोग गोनू झा को जानते थे। उसे पंचायत में आया देखकर लोगों ने उसे भी पंच बना दिया।

'अब यह तो पता चले कि पंचायत होने का कारण क्या है?' गोनू झा ने पूछा-'वादी कौन है और प्रतिवादी कौन।'

जंगलिया और मंगलिया सामने खड़े हो गए।

"पहले तुम अपना पक्ष रखो।" गोनू झा जंगलिया से बोले।

'पंच परमेश्वरो, मंगलिया मेरा बचपन का मित्र है। हम दोनों की मित्रता सारे गांव में मिसाल है। हम एक-दूसरे के सुख-दुख के साथी हैं। पर जुबान दोनों की अलग- अलग हैं। आप सब जानते हैं कि दुनिया में जितनी कीमत जुबान की है, उतनी किसी और चीज की नहीं है।'

"जंगलिया, यह बातें मिथिला का बच्चा-बच्चा जानता है। तुम कारण बताओ जिससे हम सब यहां इकट्ठे किए गए है।"

"वही बता रहा हूं जी। परसों मेरा मित्र गंगास्नान करके लौटा तो इसने एक सफेद झूठ बोला। इसने बताया कि इसने झाड़ी में एक बेल पर एक बड़ा-सा खरबूजा देखा था। यह बात मुझे नहीं जंची। ऎसा कहीं नहीं हो सकता। पर यह दावा कर रहा था। मैंने तैश में आकर शर्त लगाई कि यदि इसकी बात सच निकली तो यह मेरे घर में जिस महंगी से महंगी चीज पर हाथ रखेगा, वह इसकी हो जाएगी।"

'क्यों भई मंगलिया, यह ठीक कह रहा है?" पंचों ने पूछा।

"जी हां।" मंगलिया ने भी पुष्टि की- "साथ ही इसने यह शर्त भी रखी कि मेरी बात झूठ निकली तो यह मेरे घर की किसी एक चीज पर हाथ रखेगा और वह इसकी हो जाएगी।"

"तो तुम दोनों एक-दूसरे की शर्त मान गए।"

"जी हां।"

'पंच परमेश्वरो! मैं इसके साथ उस जगह गया जहां इसने वह खरबूजा बताया था। पर वहां कुछ भी नहीं था। यह शर्त हार गया है और मैं पंचायत से चाहता हूं कि मुझे शर्त के अनुसार इसके घर की किसी एक वस्तु पर हाथ रखने दिया जाए।' जंगलिया बोला।

"मुझे तो कोई आपत्ति नहीं है पंचो। मैं अपनी जुबान का पक्का हूं।" मंगलिया बोला-"इस पंचायत की तो कोई आवश्यकता ही नहीं थी। यह सीधा मेरे घर आकर जिस चीज पर हाथ रखता, वही मैं इसे दे देता।"

'नहीं जी। पंचायत में हुआ फैसला ठीक होता है।'

"पर श्रीमानगणो, मैं एक बार जरूर कहना चाहूंगा।" मंगलिया ने कहा- "मेरे घर चलकर जंगलिया जिस चीज पर हाथ रखे, वह मैं इसे दूंगा पर उसमें यह नहीं होगा कि इसे दोबारा किसी और चीज पर हाथ रखने दूं। एक बार यह हाथ रखेगा। बस एक बार।"

"मुझे मंजूर है।" जंगलिया मुदित मन से बोला।

पंचायत उठकर मंगलिया के घर की तरफ चल पड़ी। जंगलिया की मन की साध आज पूरी होने जा रही थी। वह वहां पहुंचे तो जंगलिया ने देखा कि सुंदरी छत पर खड़ी थी और छत पर चढने के लिए लकड़ी की सीढी लगी थी।

पंचों की आज्ञा लेकर जंगलिया आगे बढा और सीढी पर चढने लगा।

अभी वह सीढी के तीन डंडॆ ही चढ पाया था।

"ऎ जंगलिया, यह बेईमानी क्यों करता है?' गोनू झा ने फटकारा-"तूने एक चीज पर एक बार हाथ रखने को कहा था। तूने आते ही सीढी के पहले डंडे पर हाथ रखा, फिर दूसरे पर रखा, तीसरे पर भी रखा। अब क्या सारी सीढी लेकर जाएगा। वह पहला डंडा उखाड़ और अपने घर चलता बन।"

जंगलिया हक्का-बक्का रह गया।

"अब नीचे उतरता है या पंचायत की अवमानना में दंडित किया जाए।"

जंगलिया नीचे उतर आया। उसने हताश नजरों से सुंदरी को देखा। उसका दांव खाली गया था। उसे इतनी जालसाजी के बाद लकड़ी का एक डंडा ही हाथ आया और एक अच्छा मित्र खो दिया। वह अपना-सा मुंह लेकर वहां से चला गया। पंचायत भी घर गई।

और मंगलिया ने कृतज्ञतावश गोनू झा के पैर पकड़ लिए। यह गोनू झा ही तो थे जिन्होनें सुंदरी को सीढी लगाकर छत पर बैठने का उपाय बताया और दुष्ट जंगलिया की कुचेष्टा को निष्फल कर दिया। मंगलिया ने उसी दिन से गोनू झा को अपना गुरु बना लिया और अपनी सामर्थ्य के अनुसार उनकी आवभगत की। उन्हें घर छोड़ने आया तो एक बड़ी हंडिया में घी भरकर उपहार साथ लाया। ऎसे थे गोनू झा।