वरदान

गोनू झा बचपन से ही माँ काली के अनन्य भक्त थे। किंवदंती है कि उनके बालोचित-निष्कपट भक्ति-भाव से प्रसन्न होकर माँ काली ने दर्शन देने का निश्चय किया, किंतु काली का विकराल रूप देखकर गोनू झा डर न जाऍं, उन्होंने पहले स्वप्न में दर्शन कर जाँचना चाहा।

उन्होंने सपने में काली को देखकर ठहाका लगा दिया और नाक पोंछते हुए प्रणाम भी किया।

भगवती विस्मित रह गईं। उन्होंने चकित होते हुए कहा, 'गोनू , एक तो मेरा सामान्य रूप ही भयावह है; ऊपर से यह विकराल आडंबर; फिर भी तुम्हें डर नहीं लग रहा है?

गोनू झा ने निर्भयता से कहा, 'माता, बाघिन से सभी डरते हैं, पर उसका शावक उसके साथ ही खेलता-कूदता रहता है। माँ से बच्चों को कहीं डर हुआ है!'

उत्तर सुनकर देवी प्रसन्न हो गई। फिर सहज होते बोलीं, 'मुझे देखकर हॅंसी क्यों आई?

गोनू झा ने सहजता से कहा, 'काली माता, हम लोगों को एक मुँह और दो हाथ हैं। फिर भी सर्दी-जुकाम होने पर नाक पोंछते-पोंछते बेहाल हो जाते हैं और आपके तो इतने मुँह हैं पर हाथ दो ही हैं, फिर सर्दी-जुकाम होने पर नाक कैसे पोंछते होंगी?'

अब काली माता को हॅंसी आ गई। उन्होंने आशीर्वाद देते हुए कहा, 'वत्स, तुम्हें तर्कों में कोई नहीं हरा सकता है, इसलिए हर चुनौती को सहर्ष स्वीकार करना।'