पेड़ पर टॅंगा झोला

गोनू झा अकसर इनाम-बख्शीश पाते रहते थे। इस कारण उनके घर चोरों का उपद्रव बराबर होता रहता था।

वह सोने के लिए कमरे में गए तो कुछ आहटों के कारण कान खड़े हो गए। उन्होंने देखा कि घर में सेंध लगी हुई है। इधर-उधर नजरें दौड़ाईं तो कोठी-माँठ के पीछे कुछ मुंड भी दिख गए । अब तो विषय चिंता स्वाभाविक ही थी कि क्या किया जाए ? फिर भी झूठमूठ लेट गए। पत्नी को कुछ भी आभास नहीं होने दिया।

फिर पत्नी से पूछा, 'मेरी माँ ने आपको आभूषण दिया था; उसे कहाँ रख दिया है, पता है ?'

उन्होंने चिढते हुए कहा, जानें बूढी और आप ।'

गोनू झा ने सहजता का स्वाँग भरते हुए कहा, 'लेकिन मैंने आपके सारे गहनों को एक जगह सँभालकर रख दिया है।'

ओझाइन चौंकती उठ गईं और गुस्साती हुई बोलीं, 'मुझे कुछ कहे बगैर कहाँ रख दिया ?'

गोनू झा ने आश्वस्त करते हुए कहा, 'आप आभूषणों की चिंता छोड़िए; उन्हें सुरक्षित रख दिया है कि चोरों के बाप तक सूँघ नहीं पाएँगे ।'

ओझाइन ने विस्मय से कहा,लेकिन आपने आज तक बताया नहीं ।'

गोनू झा ने आहिस्ता बोलने का स्वाँग भरते हुए कहा, 'फुरसत हो तब, न! अभी बताता हूँ। कान इधर लाइए; रात में कोठी-माँठ के भी कान होते हैं ।'

और खुसुर-फुसुर करने लगे । ओझाइन ने झुँझलाते हुए कहा, 'आप तो इतना धीरे बोलते हैं कि जोर-जोर से सिर्फ साँसे ही सुनाई पड़ती हैं।'

तब गोनू झा ने स्पष्ट रुप से कहना शुरु किया, 'खैर आप सुनना ही चाहती हैं, तो ठीक से ही सुन लिजिए; गाँव में अभी चोरों का आतंक मचा रहता है, इसलिए आभूषणों को झोंले में रखकर पिछवा के अमरूद के पेड़ पर टाँग दिया है।'

पत्नी ने चिल्लाते हुए कहा, 'हाय रे दैव, आपने सत्यानाश कर दिया!

गोनू झा ने समझाते हुए कहा, 'वहाँ रखने पर अगर आपका मन नहीं मानता तो तड़के ही ला दूँगा; अभी साँप-बिच्छू का डर है।'

यह सुनते ही चोर दंपति के शीघ्र सोने का बेसब्री से इंतजार करने लगे। इधर गोनू झा पत्नी को चिंतामुक्त करने की भरपूर कोशिशें कर सो गए।

दंपति के सोते ही चोरों ने खिसकना शुरू किया और फौरन उस पेड़ पर पहुँच गए। वहाँ फुगनी पर बड़ी गठरी सदृश कुछ बॅंधा दिख रहा था।

चोर लपके; उस पर कसकर हाथ लगाते ही बाप-बाप कर दलदली गोबर के हौज में फचाक-फचाक गिरने लगे। चोरों ने जिसे बड़ा झोला समझकर झपटा, वह मधुमक्खियों का एक बड़ा छत्ता था।

पकड़े जाने के भय और शरीर पर चिपटी मधुमक्खियों से जान छुड़ाने की लाख कोशिशें कीं, किंतु असफल रहे। मधुम्खियों ने बेवक्त छेड़ने का भरपूर बदला सुबह तक लिया और फिर आराम फरमाने चली गईं।

सबेरे गोनू झा लोटा लेकर उधर से गुजरे और हौज में धॅंसे चोरों से चुटकी लेते हुए बोले, 'चोर भाइयो, मेरा झोला सुरक्षित है न? और चलते बने।

आगे जाकर गोनू झा ग्रामीणों को चोरों के बारे में बता-बताकर हौज की ओर भेजते जा रहे थे।

चोरों को सजा तो मिल ही चुकी थी, ऊपर से ग्रामीणॊं की ओर से 'विदाई' और भी मिलने लगी।