गोनू झा लोगों को ठगने की कला में माहिर थे। उनके एक नौकर का नाम बिपता था।
वह भी गोनू झा के साथ रहते-रहते उनकी चतुरपन-कला में उन्नीस न रहा।
एक बार बातों ही बातों में बिपता ने हॅंसते हुए कहा, 'मालिक, मैं भी साथ रहते-रहते आपकी कला में उस्ताद हो चुका हूँ, इसलिए अब मुझे भी कोई ठग नही सकता है।
गोनू झा ने उसकी चुनौती अनमने भाव से स्वीकार करते हुए कहा, 'ठीक है बच्चू! कभी परीक्षा ले लूँगा।'
गोनू झा का हलवाहा कहीं चला गया था, अतः बिपता को ही हल जोतने के लिए तैयार किया और प्रलोभन देते हुए कहा, 'बिपता, अगर खूब अच्छी तरह खेत जोतेगा तो स्वादिष्ट हलवा खिलाऊँगा।
बिपता खूब मनोयोग से हल जोतता जा रहा था और इच्छा-भर हलवा खाने का मनसूबा बाँध रहा था।
उसने बहुत देर बाद गोनू झा को एक मिट्टी का कोहा सिर पर उठाए और लड़खड़ाते खेत की ओर आते देखा। बिपता खुशी से उत्साहित होकर और मन लगाकर हल जोतने लगा। वह सोचता जा रहा था कि 'देर से आया तो क्या हुआ, हलवा तो अघाकर खाएगा।'
गोनू झा को धीरे-धीरे आते देख बिपता के मन में और लावा फूटता जा रहा था-आह, मालिक को उतना भारी कोहा उठाकर लाना पड़ रहा है; इसी कारण ठीक से चल नहीं पा रहे हैं।
गोनू झा भरसक देरी कर खेत पर पहुँचे और बिपता को भली भाँति जुता देखकर खुश हो गए। आह्लादित होते हुए कहा, 'बिपत, अब खा लो।'
वह मुँह-हाथ धोकर आया और अँगोछा उठाकर कोहा में हाथ डाला। यह क्या? हाथ तो अंदर तक चला गया, जहाँ थोड़ा सा हलवा रखा था।
भूख से तिलमिलाता बिपता आकाश से गिरा। उसने झुँझलाते हुए कहा, 'मालिक, आपने यह क्या किया? कहा था कि हलवा खिलाऊँगा!
गोनू झा ने झपटते हुए कहा, 'कहा तो था, किंतु यह कहाँ कहा था कि भरपेट खिलाऊँगा! थोड़ा है तो क्या हुआ, अच्छा तो है।'
बिपता मन मसोसकर रह गया।
एक बार फिर उसे जोतने के लिए जाना पड़ा। इस बार उसने खेत का थोड़ा-सा टुकड़ा जोतने में ही दिनभर लगा दिया। गोनू झा खाना लेकर पहुँचे और खेत देखकर क्षुब्ध हो गए। उन्होंने झल्लाते हुए कहा, 'बिपता, तुमने तो हद कर दी; दिनभर में बस आधा धुर!'
बिपता ने विजयी मुस्कान में कहा, 'मालिक, कम है तो क्या हुआ, अच्छा तो जोता गया है न! मिट्टी तो देखिए, आटे के समान हो गई है।'
गोनू झा ने डपटते हुए कहा, 'इतनी ही जोताई से पूरे में खेती हो जाएगी?'
बिपता ने सहजता से कहा, 'थोड़े-से स्वादिष्ट हलवा से जब पेट भर सकता है, तब थोड़ी-सी अच्छी जुताई से पूरे में खेती क्यों नहीं हो सकती है?
गोनू झा दोनों हाथों से सिर पकड़कर बैठ गए। उन्हें स्मरण हो आया और बिपता से कहा, 'तुम सचमुच मुझसे उन्नीस न रहे; अब तुम्हें कोई ठग नहीं सकता।'