तहसीलदार बड़ा अत्याचारी था; वह मालगुजारी वसूलते समय क्रूरतापूर्वक बहुत नोंच-खसोट करता था, इसलिए उसका नाम सुनते ही प्रजा दहशत में पड़ जाती थी।
गोनू झा को उसके अपने गाँव आने की सूचना मिली। ग्रामवासी डरे-सहमे हुए थे। उन लोगों ने तहसीलदार के प्रति नफरत और गुस्से का इजहार गोनू झा से किया।
गोनू झा ने ग्रामीणॊं की बातें गौर से सुनकर उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा, 'भाइयो, आप लोग व्यर्थ ही चिंतित न हो; कल हम लोग इकट्ठे उससे बात करेंगे।'
तहसीलदार गाँव पहुँचा। वहाँ गोनू झा अनमने भाव से चुपचाप बैठ गए। ग्रामवासियों ने विनती करते हुए कहा, 'तहसीलदार साहब, इस बार वर्षा नहीं होने के कारण अकाल पड़ गया है, इसलिए अभी हम लोग मालगुजारी देने में असमर्थ हैं; अगले वर्ष इस साल का भी चुका देंगे।'
तहसीलदार ने अकड़कर कहा, 'मुझे तुम लोगों की मजबूरी से कुछ लेना-देना नहीं है; मालगुजारी नहीं दोगे तो देह की चमड़ी उधेड़ कर ले लूँगा।
गोनू झा ने जोर से साँस छोड़ते हुए कहा, 'हाँ तहसीलदार साहब, आपका कहना दुरुस्त है; जो सीधी भाषा नहीं समझता, उसे ऎसे ही समझाया जाता है।'
ग्रामीण अचंभित कि गोनू झा तो पलट गए, यह तो उसी के आदमी निकले!
गोनू झा तहसीलदार के पास चले गए और एक युवक को डाँटते हुए कहा, 'मुँह क्या देख रहे हो? अभी तक तहसीलदार साहब के मुँह-हाथ धोने के लिए एक लोटा जल नहीं ला सके हो?
लोटा में जल लाया गया। गोनू झा ने कहा, 'सरदार, इस ताजा जल से मुँह-हाथ धो लिजिए, तब उन जाहिलों से निबटिएगा।' तहसीलदार ने मुँह-हाथ धो लिया। गोनू झा ने झट अपना अँगोछा उतारकर तहसीलदार की ओर बढाते हुए कहा, 'सरकार, इससे पोंछ लीजिए।'
तहसीलदार की दाढी लंबी थी। पोंछने के क्रम में एक बाल अँगोछा में सटा रह गया। उस बाल को देखकर गोनू झा की आँखों में चमक आ गई; उत्साह और श्रद्धापूर्वक झट माथे से लगाकर बड़े प्यार से उसे धोती में बाँधने लगे।
ग्रामवासियों ने अचरज से पूछा, 'गोनू बाबू, आप तो उस बाल को इस तरह सॅंभाल रहे हैं मानो कोई अलभ्य चीज मिल गई हो!
गोनू झा ने छूटते ही कहा, 'तुम गॅंवार क्या जानो! इस शुभ घड़ी में जिसे तहसीलदार साहब की दाढी का बाल मिल गया, उसके लिए वैकुंठ का रास्ता साफ समझो।'
फिर क्या था! लोग तहसीलदार से दाढी के बाल माँगने लगे। उसने प्रसन्नतापूर्वक दाढी में हाथ घुमाया और जो निकले, उन्हें किसी-किसी को दे दिया। बाकी लोग ललचाई दृष्टि से देख रहे थे।
तब तक गोनू झा ने उत्साहित करते हुए कहा, 'बेवकूफो, देख क्या रहे हो? यह शुभ घड़ी हाथ से निकल जाएगी; झटपट बाल लेते जाओ, अन्यथा हाथ मलते ही रह जाओगे।'
अब तहसीलदार की परवाह किए बगैर ग्रामवासी उसकी दाढी के बाल नोंचने लगे। गाँव में शोर हो गया। तहसीलदार की दाढी के बाल लेने के लिए अफरा-तफरी मच गई। वह चिल्लाता रहा, लेकिन शुभ घड़ी बीत न जाए, इसलिए कौन सुनता है!
दाढी लहूलुहान हो गई। तहसीलदार ने भागना शुरू किया तो लोग पीछा करने लगे। अंततः तहसीलदार सिर पर पाँव रखकर ऎसे भागा कि फिर कभी उसने गोनू झा के गाँव में पाँव रखने का नाम नहीं लिया।