गोनू झा का अनुज भोनू झा था । अग्रज दरबार मे जाते और अनुज घर-गृहस्थी सँभालता ।
गोनू झा की ख्याति और संपति मे दिन-रात वृद्धि होते देख पड़ोसी ईर्ष्या से जलने लगे । वे उन्हे तरह-तरह से नीचा दिखाने कि कोशीशों मे लगे रहते, किंतु गोनू झा उन्हे मात कर देते । कोई षडयंत्र सफल न होते देख अंततः पड़ोसियों ने सोचा कि 'घर का भेदिया लंका ढाए' अर्थात क्यों न सहोदर के माध्यम से ही पटकनी दी जाए ?
वे लोग भोनू झा को सीधा समझकर गोनू झा के विरुद्ध कान भरने लगे, 'तुम मैले-कुचैले कपड़े पहने दिन-भर घर के कामो मे व्यस्त रहते हो और गोनू झा बन-ठन कर फुटानी छाटते रहते हैं; दरबार आदि से मिले इनाम-बख्शीश का मामूली अंश भी घर को नही देते हैं, इसलिए तुम भी क्यों नहीं दरबार जाते हो ?'
भोनू दुष्ट पड़ोसियों के बहकावे मे आ गया और दरबार जाने का निश्चय कर लिया । इसकी सूचना बड़े भाई को दी । गोनू झा ने सहर्ष सहमति जता दी ।
दूसरे दिन भोनू झा पाग-दुपट्टा मे दरबार पहुँचा । राजा ने सोचा कि शायद गोनू झा बिमार पड़ गए हैं, इसलिए भोनू झा को ही भेजा है ।
राजा ने पूछा , 'भोनू इतनी देर क्यों हुई ?'
उसने विस्मय से छाती तक एक हाथ लाते हुए कहा, 'महाराज, मार्ग मे इतने बड़े-बड़े दो खरहे दिखे हैं ।'
राजा को गुस्सा आ गया कि यह मुझे चिढा रहा है ; उसे लगा कि कहीं इतने बड़े-बड़े भी खरहे हुए हैं ? इसलिए भोनू को कैद करवा दिया ।
उस दिन भोनू को न लौटा पाकर गोनू झा को चिंता होने लगी । फिर सोचा कि सीधापन ही न कोई कारण बना हो ।
सुबह गोनू झा दरबार पहुंँचे । राजा ने सारा वृत्तान्त सुनाया । गोनू झा ने भोनू का ही पक्ष लेते हुए कहा, 'महाराज, उसने गलत नहीं कहा होगा; आपके समझने मे ही भूल हुई है ।'
राजा ने चौंकते हुए पूछा, 'यह कैसे कह सकते हो ?'
गोनू झा ने बायें हाथ को उसी प्रकार छाती तक ले जाकर और दायें हाथ को डेढ़ बित्ता नीचे लगाते हुए कहा, 'महाराज, आपने उसके उपर के हाथ को देखा होगा लेकिन नीचे इस तरह जो हाथ लगाया होगा , उस पर ध्यान नही दे पाए होंगे ; हृष्ट-पुष्ट खरहे तो इतने बड़े-बड़े होते ही हैं ।'
राजा को अपनी चुक का अहसास होने लगा और तुरन्त ही भोनू को मुक्त करवा दिया ।
दोनो सहोदर घर विदा हुए । भोनू लज्जित था । गोनू झा ने मुस्कुराते हुए पूछा, 'भोनू, कल दरबार जाने की किसकी बारी है ?'
भोनू ने अपने दोनो कान पकड़ते हुए कह, 'भैया, 'बाप रे ! फिर मियाँ बकरी चरैहें ? ' अब मैं किसी दुष्ट के उकसावे मे आनेवाला नहीं हूँ ।'
उस दिन से कभी भोनू झा ने दरबार जाने का नाम नहीं लिया ।