गोनू झा सोए हुए थे।
उन्हें मध्य रात्रि के करीब उसी घर में चोरों की भनक लगी।
पत्नी को चिकोटी काटकर उठाया। उन्होनें झुँझलाते हुए कहा, 'आप भी रतचर ही हैं; खुद नहीं सो पाते तो दूसरों को भी नहीं सोने देते!
यह कहते पत्नी ने करवट बदल ली। गोनू झा मानने वाले कहाँ थे! उन्होंने फिर चिकोटी काटी। वह झुँझलाती हुई बैठ गईं और कहा, 'कहिए, क्या कहना है?
गोनू झा ने खामोशी से कहा, 'धीरे बोलिए, समय-साल खराब है; चोर-डकैत कब-कहाँ पहुँच जाऍंगे, कहा नही जा सकता है।
पत्नी ने चिढते हुए कहा, 'धन्य हैं प्रभु, इसके लिए भी आपको यही समय सूझा? एक बात क्या, सुबह में हजार ऎसी बातें कहते।'
उन्होंने बात को रहस्यात्मक बनाते हुए कहा, 'अरी भाग्यवती, यह ऎसी-वैसी बात नहीं, खास बात है, इसलिए तो असमय उठाया है। फिर थोड़ा आहिस्ते से कहा, 'नींद तोड़ो तो कुछ रहस्य की बात कहूँ; वरना रात में दीवारों के भी कान होते हैं।
यह सुनते ही पत्नी कौतुहलवश गोनू झा के समीप आ गईं। गोनू झा ने कुछ आहिस्ते से कहा, 'मानिनी, पिताजी ने मृत्यु से कुछ दिन पूर्व कहा था कि जीवन-भर की कमाई घर से कुछ दूर बथान के पिछवाड़े के बंजर में गाड़ दी है और जब बहुत जरूरत हो, तभी निकालना।'
पत्नी ने उलाहना देते हुए कहा, 'अरे, अभी तक आपने कहा क्यों नहीं था? पैसे की एक-से-एक जरूरत हुई और आप चुप रहे। अब मैं हाथ पर हाथ रखे बैठी नहीं रहूँगी; मुझे भतीजे के जनेऊ में ले-देकर मायके जाना है, इसलिए सुबह ही दो-चार हट्टे-कट्टे मजदूरों को लगा दीजिए; वरना मैं चुप नहीं बैठूँगी।'
गोनू झा चादर तानकर सो गए और पत्नी रातभर भुनभुनाती रहीं।
उधर चोरों के कान खड़े हो गए और मौका मिलते ही वे बथान की ओर चल पड़े। वे जल्दी-जल्दी में कुदालों से जमीन खोदने लगे।
इधर गोनू झा के पत्नी को नींद नहीं आ रही थी, इसलिए तड़के ही गोनू झा को लेकर उस परती भूमि के पास पहुँचीं। यह देखकर वह चौंक गईं कि खजाने की तलाश में पहले से ही कुछ लोग लगे हुए हैं, इसलिए हाथ खींचते हुए जल्दी पहुँचना चाहती थी।
पत्नी भूमि देख सन्न रह गई और 'हे भगवान! कहते दोनों हाथों से माथा पकड़कर बैठ गईं, किंतु गोनू झा बेफिक्र ही नहीं बल्कि भूमि खुदी देखकर मुदित भी हो रहे थे क्योंकि वह पूरी बारी भली भाँति खोदी जा चुकी थी। उन्होंने आहट पाकर छुप रहे चोरों को व्यंग्यात्मक लहजे में आवाज लगाई, 'चोर भाइयो, आप लोगों ने आधी रात से ही मेहनत की है। अब पौ फटने ही वाली है, इसलिए पनपियाई [जलपान ] करके ही जाना।'
इतना सुनते ही चोरों का ध्यान टूटा और सिर पर पाँव रखकर वे नौ दो ग्यारह हो गए। उन्हॊंने पत्नी को मनाते हुए कहा, 'आप रात्रि-जागरण का मेहनताना लेंगी या इस बंजर की जोताई का?'
पत्नी झेंप गईं और लगा कि रात फिर पति को पहचानने में चूक हो गई।