सुराही में कुम्हड़ा

गोनू झा और पलटू पाठक राजा के प्रिय पात्र थे। इनमें गोनू झा अपनी प्रत्युत्पन्न बुद्धि से राजा को प्रभावित करने में अकसर सफल हो जाते थे।

एक दिन पलटू ने राजा के समक्ष कटाक्ष करते हुए गोनू झा से कहा, 'गोनू बाबू तो बड़े बुद्धिमान हैं। अगर ये सुराही में दस किलो का एक कुम्हड़ा रखकर दिखा दें तो मैं भी इनका लोहा मान लूँ।

राजा ने गोनू झा की ओर मुखाबित होते हुए सशंकित भाव से कहा, 'गोनू बाबू, यह क्या कह रहे हैं?

गोनू झा ने सहजता से कहा, 'महाराज, यह काम कठिन तो नहीं है, फिर भी तीन महीने का समय तो चाहिए ही।'

समय अपनी गति से बीतता रहा। एक दिन पलटू पाठक ने दरबार में तिरछी नजरों से गोनू झा को देखकर महाराज से कहा, 'गोनू झा अपना वादा भूल गए; आज ठीक तीन महीने हो रहे हैं। महाराज, कैलेंडर के निशान पर गौर किया जाए। सुराही में संपूर्ण कुम्हड़ा लाने का इनका वादा आज पूरा हो रहा है और इन्होंने वादाखिलाफी की है, इस कारण इन्हें दंडित किया जाए।

अन्य दरबारी भी हाँ में हाँ मिलाते उछलने लगे और चिल्लाए, 'इन्हें तो दरबार से बरखास्त कर देना चाहिए; इससे तो महाराज की हॅंसी ही होगी।'

महाराज ने आँखे तरेरते हुए गोनू झा की ओर देखा। गोनू झा ने सहजता से कहा, 'महाराज, आप क्रोधित न हों। मैंने अपना वादा भुलाया नहीं है; मेरा आदमी सुराही लाता ही होगा।'

तभी एक आदमी सिर पर बड़ी सुराही लेकर दरबार में उपस्थित हुआ। गोनू झा ने विजयी मुस्कान के साथ पलटू पाठक की ओर देखकर कहा, 'आपने स्मरण किया और कुम्हड़ा हाजिर।

दरबारियों को सहसा विश्वास ही नहीं हो रहा था। सुराही को उलट-पलटकर परखा गया कि कहीं से जोड़-जाड़ तो नहीं, किंतु कोई चालबाजी नहीं लग रही थी। अंततः सुराही फोड़ी गई। कुम्हड़ा सुराही के आकार का और दस किलो से भी अधिक वजन का निकला।

अन्य दरबारियों के साथ पलटू भी चकित था। राजा ने विस्मय से पूछा, 'यह कैसे संभव हुआ?'

गोनू झा ने सच्ची बात बताई, महाराज, मैंने उसी दिन अपने छप्पर पर कुम्हड़ा की एक बतिया सुराही में भलीभाँति घुसा दिया था और लता की सेवा करता रहा, ताकि कुम्हड़ा बड़ा निकले। फल सभी के सामने है। अब अच्छी तरह पक भी गया है।

राजा उनकी बुद्धि और धैर्य से बहुत प्रभावित हुआ। उसने उन्हें बहुमूल्य इनाम दिया। पलटू पाठक ने भी उस दिन से गोनू झा का लोहा मान लिया।