गोनू झा हाट से एक बैल खरीदकर घर के लिए विदा हुए। रास्ते में कई परिचित-अपरिचित व्यक्ति मिले। राहगीरों ने बैल के बारे में भाँति-भाँति के प्रश्न किए, बैल कहाँ से ला रहे हैं? कितने में मिला? किस प्रजाति का है?' इत्यादि।
गोनू झा सभी के प्रश्नों का अलग-अलग उत्तर देते-देते ऊब चुके थे। अपने गाँव की सीमा पर पहुँचते ही बैल को पेड़ से बाँध दिया और पेड़ पर चढ गए, फिर चिल्ला- चिल्लाकार ग्रामवासियों से कहने लगे, 'ग्रामवासियों, जल्दी आओ! अजगुत देखो; दौड़ो-दौड़ो, जल्दी करो; चूको मत; फिर मैं बताने वाला नहीं।'
टॊला-पड़ोस के लोग धीरे-धीरे जुटने लगे और भाँति-भाँति के प्रश्न करने लगे, किंतु गोनू झा सभी को संकेत से शांत कर देते थे।
जब उन्हें लगा कि अब कोई आनेवाला नहीं है, तब गला साफ कर कहा, 'मैं इस बैल की कथा सुना रहा हूँ।
मैं आप ही का ग्रामीण गोनू झा अभी ही मेले से यह बैल हजार रुपए में खरीदकर ला रहा हूँ।
यह अच्छी प्रजाति का और अदंत है। पैसे के अभाव में एक ही खरीदा।
आपके मन में यह भी होगा कि पैसे का जुगाड़ कहाँ से हुआ?
इसका सीधा-सा उत्तर यह है कि मेरी माँ का मिट्टी में गाड़ा हुआ 'कोसलिया' मिल गया। हालाँकि यह मेरा निजी मामला है, पर जब तक आप जान नही लेते, तब तक आपकी नींद तो हराम होती ही, मुझे भी चैन से नहींं रहने देते; किसी-न-किसी स्रोत से पता लगाने की कोशिश करते ही।
कुछ और अगर आप लोग जानना चाहें तो अभी ही पूछ लें; फिर मैं बतानेवाला नहीं हूँ।
ग्रामवासी अवाक्। एक ने झुँझलाते हुए कहा, 'आप कहना क्या चाहते हैं?
उन्होंने सहजता से कहा, 'यही, जो मैं कह चुका हूँ।
कई ग्रामीण एक स्वर में बोल उठे, 'लेकिन इसके लिए सभी को हाँक लगाने की क्या जरूरत थी?
उन्होंने विनम्रतापूर्वक कहा, 'भाइयो, आप बुरा न मानें; हाट से यहाँ तक मैं लोगों के प्रश्नों का उत्तर देते-देते थेक चुका हूँ और आप लोगों की जिज्ञासु तथा खोजपरक प्रवृत्ति का मैं भी साक्षी हूँ, इसलिए आप लोग माननेवाले नहीं थे।
जब मुलाकात होगी, तरह-तरह के प्रश्न करते और सभी को अलग-अलग बताना अब मेरे बूते से बाहर है, इसलिए आप सभी को एक साथ ही कह देना उचित समझा।'
ग्रामवासी झुँझलाते-झल्लाते विदा हो गए।