चार सौ बीस ठोप

राज में भयंकर सुखाड़ पड़ा। प्रजा पानी के लिए त्राहि-त्राहि करने लगी। राजा ने बहुत यज्ञ-जाप करवाए, पर वर्षा होने का नाम ही न ले रही थी। अंततः राजा ने पुरे इलाके में डुगडुगी पिटवा दी कि जो इसका समाधान निकालेगा, उसे राजकीय सम्मान प्रदान किया जाएगा और वैसे व्यक्ति को लानेवाला भी पुरस्कृत होगा।

पुरस्कार की लालसा में लोग इधर-उधर भटकने लगे।

दो-तीन दिनों के अंदर ही दरबार में एक भारी-भरकम साधु बाबा पहुँचे।

उनके ललाट पर बीस ठोप सुशोभित थे। उन्होंने सगर्व कहा, 'महाराज, मेरा नाम 'बीस ठोप बाबा' है। मैं हिमालय की कंदरा में तीन सौ बीस वर्षॊं से तपस्यारत हूँ और आपके राज में भीषण सुखाड़ सुनकर वहीं से आया हूँ। मुझमें यज्ञ द्वारा वर्षा कराने की अदभुत क्षमता है।

राजा खुश हो गया और बाबा के बताए स्थान पर दूसरे ही दिन यज्ञ करवाने का आदेश निर्गत किया।

शाम तक सभी सामग्रियाँ बाबा के हलावे कर दी गईं, धन-धान्य का ढेर लग गया ताकि यज्ञ में कोई चूक न हो।

यह बात संपूर्ण राज में जंगल की आग की भाँति फैल गई। प्रजा की खुशी का ठिकाना न रहा। गाँव-गाँव से लोग 'बीस ठोप बाबा' के दर्शन और सेवा के लिए पहुँचने लगे।

उसी शाम गोनू झा कहीं से पहुनाई कर लौटे थे। पत्नी ने बाबा का बखान अत्यंत बढा-चढाकर किया। चर्चा-प्रशंसा सुनकर गोनू झा को घर में चैन कहाँ! वह बाबा के दर्शनार्थ आतुर हो रहे थे। पत्नी ने मना करते हुए कहा, 'आप तो स्वयं बहुत दूर से आए हैं; अतिशय थके-मांदे होंगे और शाम भी हो गई है, इसलिए सुबह में ही दर्शन कर आइएगा।'

किंतु गोनू झा को तो जैसे मधुमक्खियों ने काट लिया हो, नहा-धोकर झोला में इधर-उधर का सामान रख विदा हो गए।

रात में ही शोर मच गया कि पूरे तामझाम से एक बाबा पधारे हैं। वह भी राजा कि अनावृष्टि से उबारने के लिए हिमालय से ही पधारे हैं। उनके पूरे चेहरे पर 'चार सौ बीस ठोप' चकमका रहे हैं।

ग्रामवासी इन्हें बीस ठोप बाबा से मिलाने ले गए। अपने से बहुत अधिक ठोप लगाए देख उन्होंने ईष्या से कहा, 'मेरा नाम श्री श्री 108 बीस ठोप बाबा है। मैं जहाँ चाहूँ, यज्ञ से वर्षा करवा दूँ।' फिर उन्हॊने क्रोध से डपटते हुए कहा, 'तुम कौन हो?'

चार सौ बीस ठोप बाबा ने सहज भाव से कहा, 'मुझे लोग 'चार सौ बीस ठोप बाबा, कहते हैं। हूँ तो मैं वज्रमूर्ख, पर पूज्यवाद पिताजी मुझे एक ऎसा बाँस दे गए हैं, जिससे इच्छित स्थान में वर्षा करा लेता हूँ।

बीस ठोप बाबा ने चकित होते हुए पूछा, 'इतना लंबा बाँस रखते कहाँ हो?

चार सौ बीस ठोप बाबा ने उसकी आँखों में आँखें डालते और पोल खोलने के लहजे में कहा, 'आप जैसे साधुओं के मुँह में।'

इतना सुनते ही बीस ठोप बाबा सहम गए और झटपट शौच जाने के लिए उठे। चार सौ बीस ठोप बाबा भी उनके पीछे-पीछे विदा हो गए।

आगे जाने पर चार सौ बीस ठोप बाबा को लोगों ने घेर लिया और बीस ठोप बाबा शौच के लिए आगे बढ गए।

चार सौ बीस ठोप बाबा ने भीड़ को समझाते-बुझाते बीस ठोप बाबा के पीछे दौड़े और ललकारा देते हुए कहा, 'अपना कमंडल और खड़ाऊँ तो लेते जाइए।'

बीस ठोप बाबा ने अनसुना करते हुए और नकली जटाजूट नोंचकर फेंकते भागा। ग्रामवासियों ने 'ढोंगी' 'ढोंगी' कहकर पीछा किया, किंतु वह अँधेरे का लाभ उठाते हुए नौ दो ग्यारह हो गया।

ग्रामीणॊं ने तब चार सौ बीस ठोप बाबा को घेर लिया। भीड़ बढते देख उन्होंने चोंगा बदला। कृतिम दाढी-मूँछ हटते ही ग्रामवासियों ने गोनू झा को पहचान लिया।

गोनू झा ने संबोधित करते हुए कहा, भाइयो, मैं जहाँ गया था, वहाँ भी इसी प्रकार की घटना हो चुकी है, इसलिए आते ही इसके बारे में सुनकर कान खड़े हो गए; माथा ठनका कि कहीं हमारे राजा भी न झाँसे में आ जाऍं, इसलिए एक क्षण भी गॅंवाए बिना असलियत जानने कूद पड़ा। नतीजा आप लोगों के सामने है।

राजा ने ढोंगी साधु से राज की रक्षा हेतु गोनू झा को तहेदिल से सम्मान-पुरस्कार दिया।