बख्शीश

राजा का देहांत हो गया था। राजकुमार गद्दी पर बैठा। वह महाकंजूस था।

प्रजा नए राजा को पिता की मृत्यु के लिए संवेदना प्रकट करने पहुँची। राजा ने सभी को यह कहते डाँटकर भगा दिया, 'मैं राजा बना हूँ और ये लोग शोक प्रकट करने पहुँचे हैं।

कुछ लोग बख्शीश की लालसा में राजा बनने की बधाई देने पहुँचे। उसने उन्हें यह कहते निकलवा दिया, 'बेशर्म, मेरे पिताजी का निधन हुआ है और आप लोग खुशी प्रकट करने आए हैं!

प्रजा को कुछ करते बन नहीं रहा था। उसे उपहार का लोभ सताए जा रहा था। अंततः प्रजा ने गोनू झा से संपर्क किया और कहा, 'गोनू बाबू, अभी तक तो हम लोगों को सुख और दुखः दोनों में राजा की ओर से कुछ-न-कुछ इनाम मिलता था, लेकिन यह मक्खीचूस राजा तो नाक पर मक्खी ही नहीं बैठने दे रहा है।'

गोनू झा ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा, 'भाइयो, कोई बात नहीं; इसका समाधान तो मैं कल ही कर दूँगा; शर्त यह है कि आप लोग मेरे साथ चलकर, जो मैं कहूँ, सो करें।'

सभी ने शर्त सहर्ष स्वीकार कर ली और गोनू झा के नेतृत्व में दरबार पहुँचे। वहाँ वे राजा के समक्ष आकाश की ओर मुँह करके खड़े हो गए।

राजा को बड़ा अचंभा हुआ। उसने विस्मय से पूछा, 'आप लोग ऎसा क्यों कर रहे हैं?

लोगों ने इशारे से ही कहा, 'हम लोग परमपिता से प्रार्थना कर रहे हैं।

राजा गंभीर होकर बोला, 'इसका मतलब है, आप लोग खुशी मना रहे हैं!

लोगों ने सहजता से कहा, 'महाराज, आप जो समझें।'

अब राजा को अपनी भूल का अहसास हो गया; उसने सभी को यथोचित भेंट देकर विदा किया।