संकट में होशियारी

गोनू झा की ख्याति और संपत्ति में उत्तरोत्तर वृद्धि देखकर उनके पड़ोसी ईर्ष्या से जलने लगे। एक दिन तो उनके घर में ही आग लगा दी।

घर को धू-धू जलते देख गोनू झा ने बुझाने का भरपूर प्रयास किया किंतु विचलित नहीं हुए। आग बुझने के बाद राख को बोरों मे कसकर हाट विदा हो गए।

गोनू झा ने एक मालदार सेठ के बगल में अपने बोरों को रखा। उसकी रखवाली तन्मयता से करते देख उस सेठ को बड़ी उत्सुकता हुई। उसने आश्चर्य से पूछा, 'पंडितजी, इन बोरों में क्या है जो आप खाना-पीना भी भूल गए हैं?

गोनू झा ने गंभीर होते हुए कहा, 'सेठजी, इनमें बहुमूल्य भस्म है। इसका महत्त्व वैद्य और हकीम ही जानते हैं। उन्हें पता चलेगा तो फौरन मनमाफिक दाम देकर ले जाएँगे ।'

इतना सुनते ही सेठ को लोभ आ गया। वह बार-बार उनके बोरों को नजर पर चढाने लगा ।

इधर गोनू झा ने सिरदर्द का स्वाँग भर लिया। बगलगीर होने का दायित्व जताते हुए सेठ उन्हें अपने आदमियों से अस्पताल भिजवाने लगा और गोनू झा आनाकानी करने लगे । अंततः वह राजी हो गए।

सेठ ने उनका माल मूल्यवान समझकर बोरे बदल लिए । उसे उनकी तुलना में अपना सामान मामूली लगने लगा था, इसलिए पहले इनके ही सामानों को ठिकाने लगाया ।

तब तक गोनू झा लौट आए। उन्हें देख सेठ नौ दो ग्यारह हो गया। वह अपना सामान न पाकर उसका ही लेकर लौट आए और फिर उसे बेचकर सुंदर घर बनवाया।