शेर का दूध

एक बार मिथिला नरेश को ईर्ष्य़ालु दरवारियों ने सुझाव देते हुए कहा, 'महाराज, शेर का दूध पिने से आप हृष्ट-पुष्ट हो जाएँगे।'

समस्या यह थी की दूध आएगा कहाँ से ? दुष्ट दरवारियों ने राजा को सलाह देते हुए कहा, 'महाराज, यह व्यवस्था गोनू झा अपने हितैषियों के लिए करते हैं ।'

गोनू झा को फौरन बुलाया गया। उनके आने पर राजा बोले, 'गोनू झा, जो काम आपनों के लिए करते हैं, उसे मेरे लिए भी करना होगा ।'

गोनू झा चौंके और बोले, 'महाराज, ऎसा कौन काम है?

राजा ने काम बताया। उन्होंने स्थिति की गंभीरता भाँपकर सहर्ष स्वीकार लिया और कहा, 'महाराज, दरबारियों ने ठीक ही कहा है; यह काम मैं कर दूँगा।'

घर आकर उन्होंने पत्नी को अपनी चिंता से अवगत कराया। दंपति ने समस्या के समाधान की योजना बनाई।

मध्य रात्रि के करीब राजमहल के पास जोर-जोर से कपड़े धोने की आवाज आने लगी। सभी की नींद उचट गई। राजा ने धोबी को पकड़कर लाने के लिए आदमी दौड़ाया ।

वह गोनू झा की पत्नी थीं। राजा ने आधी रात में कपड़े धोने का कारण जानना चाहा।

ओझाइन ने सकुचाते हुए कहा, 'महाराज, उन्हें शाम से ही प्रसव-पीड़ा हो रही थी और अभी उन्होंने एक शिशु को जन्म दिया है। इसी कारण इस समय कपड़ा धोना पड़ रहा है।'

राजा ने विस्मय से कहा, बिलकुल असंभव! पुरुष ने कहीं बच्चा जना है?

ओझाइन ने क्षमा-याचना करते हुए कहा, महाराज, जब शेर को दूध हो सकता है, तब पुरुष क्यों नहीं शिशु जन सकता है?

महाराज को कटो तो खून नहीं। उसे अपनी अज्ञानता का बोध हो गया और सुबह गोनू झा के सामने उन दरबारियों को डाँट पिलाई।