दृष्टि-संपन्न

राजा ने गोनू झा से पूछा, 'गोनू झा, आपकी नजर में संसार में कितने प्रतिशत लोग दृष्टि-संपन्न होंगे?

गोनू झा ने अनमने भाव से कहा, 'महाराज, मेरे हिसाब से तो अपवादस्वरूप ही लोग दृष्टि-संपन्न होंगे।'

राजा ने चौंकते हुए पूछा, 'मैं क्या हूँ?

उन्होंने सहमते हुए कहा, 'महाराज, अगर दो-चार दिनों की मोहलत मिले तो सही उत्तर दे सकूँ।

दूसरे ही दिन राजा शिकार के लिए निकल रहा था। खबर मिलते ही गोनू झा उस मार्ग में रस्सी बाँटने बैठ गए। उन्हें यह करते देख राहगीर पूछते, क्या कर रहे हैं?

गोनू झा उत्तर देकर कुछ नोट करते जाते। राजा ने भी पूछा। वह राजा को भी जवाब देकर कुछ नोट करने लगे। राजा ने फिर प्रश्न किया, 'अब क्या कर रहे हैं?

उन्होंने सहजता से कहा, 'महाराज, दृष्टि-संपन्न और दृष्टिहीनों की सूची बना रहा हूँ।

राजा ने पूछा, मैं किस सूची में हूँ?

उन्होंने विनम्र भाव से कहा, 'महाराज, मुझे खेद है कि अभी तक दृष्टि-संपन्न की सूची में एक भी नाम दर्ज नहीं हुआ है।

राजा ने विस्मय से पूछा, 'क्या मैं भी आपको दृष्टिहीन ही दिखता हूँ?

गोनू झा ने विश्वासपूर्वक कहा,' महाराज, सर्वप्रथम धृष्टता के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ। अगर आप दृष्टि-संपन्न होते तो यह नहीं पूछते कि मैं क्या कर रहा हूँ।

राजा को अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया।