राजा को तोता बहुत प्रिय था। वह कहीं आने-जाने पर सर्वप्रथम तोते की खोज-खबर लेता।
एक दिन राजा शिकार के लिए निकला और दिन भर जंगल में ही रहा। शाम को लौटा तो तोता नहीं दिखा। उसने सभी से पूछा, किंतु किसी को जवाब देने का साहस नहीं हुआ। आखिर राजा ने क्रोधित होते हुए कहा, 'अगर कुछ देर में मुझे तोता नहीं मिला तो एक-एक को जेल भिजवा दूँगा।'
तब तक कुछ दरबारी गोलबंद होकर गोनू झा से खुसुर-फुसुर करने लेग। अंततः गोनू झा ही राजा के सामने सिर झुकाए उपस्थित हुए।
राजा ने कड़ककर पूछा, 'गोनू झा, कहाँ है मेरा तोता? उन्होंने विनम्रतापूर्वक कहा, 'महाराज, तोता तो पाँच उठाए चित लेटा हुआ है।'
राजा ने उद्वेलित होते हुए पूछा, 'क्या मर गया? गोनू झा ने सिर झुकाए हुए ही धीरे से कहा, 'महाराज, यह अशुभ बात मैं कैसे कह सकता हूँ?'
राजा तुरंत तोते के पास पहुँचा और देखकर उदास हो गया। तोते के प्राण-पखेरू उड़ चुके थे। राजा ने क्रोध में दरबारियों से पूछा, यह कैसे हुआ?
पता चला की साँप काटने के कारण तोते की मौत हुई है। राजा को समझने में देर न लगी कि अप्रिय सत्य को प्रिय बनाकर कहने की बेजोड़ कला गोनू झा के अलावा अन्य किसी दरबारी में नही है, इसलिए सब चुप थे।
राजा ने क्रोध वापस लिया और अपने इष्टदेव से शोक सहन करने की शक्ति माँगी।