राजा को एक खास सलाहकार की जरूरत थी। उसने अपने दरबारियों में से ही किसी को नियुक्त करने का निश्चय किया।
तदर्थ तरह-तरह के प्रश्न किए गए। उनमें गोनू झा सफल रहे, किंतु अन्य दरबारीयों ने आपत्ति करते हुए कहा, 'महाराज, अभी व्यावहारिक ज्ञान की परख नहीं हुई है।
राजा को बात जॅंची और उसने दस दरबारियों का चयन किया। सभी को एक भैंस और एक बिल्ली महीना-भर के लिए इस शर्त के साथ दी गईं कि भैंस का दूध पीकर जिसकी बिल्ली सर्वाधिक मोटी होगी, वही दरबारी इस पद का हकदार होगा।
उसी दिन से दरबारी गण तहेदिल से बिल्ली को दूध पिला-पिलाकर मस्त करने में जुट गए।
गोनू झा अधिकाधिक दूध के लिए भैंस को हरा चारा खिलाते और पूरा परिवार बिल्ली को दूध पिलाने में जुटा रहता।
दो-तीन दिनों के बाद ही उन्हें लगा कि यह मूर्खता नहीं तो और क्या है कि पूरा परिवार इतनी मेहनत कर दूध बिल्ली को पिला दे?
उन्होंने एक उपाय सोचा। दूध खौलाने स्वयं बैठ गए और जब औट गया, तब कटोरे में निकाला। फिर गरदन पकड़कर बिल्ली को उसमें सटा दिया। वह म्याऊँ-म्याऊँ करती भागी।
उस दिन से बिल्ली की नानी न मरे कि दूध के पास फटके! वह दूध क्या, उससे बना हर पदार्थ, यहाँ तक कि उजला द्रव देखकर भाग खड़ी होती।
मास बीतने पर सभी दरबारी खास बनने की प्रत्याशा में अपनी-अपनी विल्ली के साथ दरबार में पहुँचे। दूसरों की बिल्लियाँ मस्त थीं, किंतु गोनू झा की मरियल। वह उसे ही सिंदूर, टिकुली, इत्यादि से महिमा-मंडित कर लाए थे।
अन्य दरबारी उनकी बिल्ली को देखकर उपहास करने लगे, लेकिन उन्हें कोई परवाह नहीं। सभास्थल पर राजा उपस्थित हुआ और बिल्लियों को देखकर प्रसन्न हो गया कि वास्तव में दरबारीगण विश्वासपात्र हैं; बेचारों ने जी-जान से मेहनत कर दूध अपनी बिल्ली को पिलाया है।
वहीं फूल-माला आदि में एक पिलपिली बिल्ली को देखकर राजा विस्मित कि यह बिल्ली यहाँ कैसे पहुँची?
कुछ दरबारियों ने उपहास करते हुए कहा, 'महाराज, यह तो गोनू झा की 'शानदार' बिल्ली है। यह सुनकर सभी दरबारी ठठाकर हॅंसे।
राजा क्रुद्ध हो गया कि गोनू झा ने छल किया; इन्होंने दूध बिल्ली को नहीं पिलाया है। उनसे जवाब तलव किया गया। गोनू झा ने विश्वासपूर्वक कहा, 'महाराज, इसके दुबली-पतली रह जाने का मुझे भी दुःख है, पर है यह भागवंती; इसके आने से मेरे घर में खुशहाली लौटी। जहाँ तक दूध पिलाने का सवाल है, तो इसे दूध की महक लगती है और दूध क्या, कोई भी उजला तरल पदार्थ देखकर ही भाग जाती है। इसमें मैं क्या कर सकता हूँ?
कुछ दरबारियों ने एक स्वर से कहा, 'महाराज, यह सरासर असत्य है; ऎसा हो ही नहीं सकता।'
अन्य दरबारी खुश थे कि आज गोनू झा का झूठ पकड़ा गया; राजा ने अपनी प्यारी बिल्ली दी थी, लेकिन गोनू झा ने दूध के लोभ में उसे सुखा ही डाला।
राजा ने क्रोधित होते हुए कहा, 'ठीक है; इसकी जाँच अभी होनी चाहिए और अगर दूध पी लिया तो गोनू झा को एक महीने की कड़ी कैद मिलेगी।
परीक्षा शुरु हुई। कटोरा भर दूध बिल्ली को दिखाया गया। वह म्याऊँ-म्याऊँ करती और सिर पर पाँव रखकर भागी।
गोनू झा ने खीजते हुए कहा, 'महाराज, देखिए ऎसी बिल्ली को मैं क्या कर सकता था?
अन्य दरबारी हक्के-बक्के रह गए। राजा ने गोनू झा को ही खास सलाहकार नियुक्त करना पड़ा, क्योंकि उनकी बिल्ली ही अलग नस्ल की थी।