राजा के दरबार में दिल्ली का एक प्रख्यात पहलवान पहुँचा। उसने भरे दरबार में ताल ठोंककर अपनी शक्ति का बखान करते हुए कहा, 'महाराज, मैंने आज तक अखाड़े में किसी को टिकने नहीं दिया है; मैं अपने प्रतिद्वंद्वी को पल-भर मे धराशायी कर देता हूँ। अगर आपके राज में किसी को पहलवानी का गर्व हो तो उसे खुली चुनौती देता हूँ।
दरबार में सन्नाटा छा गया। राजा की नजर उसकी टक्कर के पहलवान को खोजने लगी, लेकिन सभी सिर झुकाए चुनौती अस्वीकार करने की मुद्रा में दिख रहे थे।
तभी दुबले-पतले गोनू झा आगे आए और ताल ठोंकते हुए कहा, 'महाराज, मुझे चुनौती सहर्ष स्वीकार है।
सभासद स्तब्ध। राजा विस्मित कि कहाँ वह मोटा-तगड़ा आदमी और कहाँ यह सीकिंया पहलवान! यह क्या उससे भिड़ेगे? फिर भी राजा ने तत्काल संतोष की साँस ली कि आखिर किसी ने तो चुनौती स्वीकार की!
तत्क्षण ही घोषणा हुई कि दूसरे दिन अमुक स्थान पर मल्लयुद्ध होगा। रात में गोनू झा उस पहलवान के पास पहुँचे और विश्वासपूर्वक बोले, 'बंधु, आप कुश्ती के स्वर, ताल और लय से परिचित हैं न?
वह पहले तो कुछ असमंजस में पड़ गया कि कुश्ती में स्वर, ताल आदि की क्या जरूरत है, फिर भी नामवर पहलवान होकर अपने को अनभिज्ञ कैसे कहता? अतः उसे तत्काल हामी भरनी पड़ी।
गोनू झा ने दृढता से कहा, 'तो ठीक है; कल की कुश्ती पंचम स्वर, झप ताल और द्रुत लय में होगी। उसके चेहरे का रंग फीका पड़ता जा रहा था, फिर भी स्वीकारोक्ति में सिर हिलाना पड़ा।
अखाड़ा ठसाठस भरा था। गोनू झा पहलवान की तड़क-भड़क में ठीक समय पर पहुँच गए।
उन्हें देखकर लोग हैरान! अब सबकी नजरें उस पहलवान को बेसब्री से ढूँढ रही थीं। समय बीतता जा रहा था, लेकिन उसका कोई अता-पता नहीं। निर्धारित समय तक नहीं पहुँचने पर कुछ लोगों को उसके ठिकाने तक दौड़ाया गया।
दूत संदेश लाए कि तड़के एक हट्टे-कट्टे व्यक्ति को लकड़हारे के वेश में जाते देखा गया है।
लोगों ने गौर करने पर पाया कि वह कोई और नहीं बल्कि वही पहलवान था।