गोनू झा अपने भानजे रामकिशुन को साथ लेकर हाट-बाजार करने जा रहे थे। रास्ते में मिठाई की एक अच्छी दुकान दिखी। उसमें छन-छन जलेबियाँ छनते और पाक में डुबो-डुबोकर परात में निकलते देख रामकिशुन की जीभ से पानी टपकने लगा। ग्राहक मक्खियों की भाँति आस-पास मॅंडरा रहे थे; पैसे वाले गरमा-गरम जलेबियाँ टपाटप मारे जा रहे थे।
रामकिशुन ललचाई दृष्टि से कभी जलेबियाँ तो कभी ग्राहकों को देखते हुए सोच रहा था कि मामा खाने के लिए क्यों नहीं पूछ रहे हैं? तब तक गोनू झा पान की दुकान के पास खड़ॆ थे।
अंततः भानजे को रुलाई आने लगी। मामा ने चौंकते हुए पूछा, 'रामकिशुन, क्या हुआ? रो क्यों रहे हो?
उसने दुखी स्वर में कहा, मामा, भूख लगी है। गोनू झा ने सहजता से पूछा, जलेबी खाओगे?
जो रोगी को भाए, सो वैदा फरमाए। उसने दोनों हाथों से आँखे मलते हुए झटपट हामी भर दी।
गोनू झा ने उसे एकांत में ले जाकर कहा, 'रामकिशुन, उस दुकान में तुम इच्छा-भर मिठाइयाँ खा लेना और रुपए माँगने पर कहना कि पहले ही दे चुका हूँ। अगर झंझट करे तो मुझसे गवाही दिला देना, लेकिन हाँ, ध्यान रहे कि मुझसे अपरिचित जैसा व्यवहार करना।
इच्छा भर मिठाई खाने के बाद जब रामकिशुन दुकान से विदा होने लगा तो दुकानदार ने रुपए माँगे। वह झट से बोला, 'पहले ही दे चुका हूँ।
बात बढने लगी। दोनों में तू-तू, मैं-मैं होने लगा। तब तक राजा का सिपाही वहाँ पहुँच गया। सिपाही ने शांत करते हुए कहा, 'बोलो, पैसे देते किसी ने देखा है?
रामकिशुन सिपाही को देखकर डर गया था, उसने गोनू झा की ओर इशारा कर दिया।
गोनू झा ने पास जाकर सिपाही से कहा, सिपाहीजी, इस बेचारे को पैसे देते मैंने देखा है, पर कितने दिए, यह नहीं जान सका हूँ।
सिपाही ने दुकानदार को डाँटते हुए रामकिशुन को भगा दिया। अब गोनू झा ने सिपाही से कहा, 'सिपाहीजी, मेरा क्या होगा?
सिपाही ने चौंकते हुए पूछा, 'आपको क्या हुआ है?
गोनू झा ने घबड़ाए हुए कहा, 'उसे पैसे देते तो मैंने देखा था, पर मैंने जो दिए, वह तो किसी ने नहीं देखा है, इसलिए डर हो रहा है कि यह बेईमान दुकानदार मेरे साथ भी कहीं वैसा ही न करे! दुकानदार पहले अवाक और फिर गुस्साते हुए बोला, 'आपने कब पैसे दिए?
गोनू झा ने सिपाही की ओर मुखातिब होते हुए कहा, लिजिए, जिसका भय था, वही हुआ।
सिपाही ने दुकानदार को भला-बुरा कहते गोनू झा को भी दुकान से निकाल दिया। हलवाई माथा पिटता रह गया।
आगे जाने पर भानजे ने मामा से पूछा, मामा, हमने उसके साथ चालबाजी क्यों की है?
गोनू झा ने गंभीर होते हुए कहा, 'रामकिशुन, हमने कुछ भी अनुचित-अनैतिक नहीं किया है। मैंने डेढ वर्ष पूर्व उसके यहाँ एक लोटा बंधक रखा था और साल-भर बाद पहुँचा तो वह साफ मुकर गया।
उस समय तो मैं मन मसोसकर रह गया, लेकिन आज उसी का बदला लिया है।