ऋणमुक्ति

एक महाजन बड़ा ही क्रूर था। उसका सूदखोरी का धंधा खूब चलता था। खूबी यह थी कि कर्ज देने मे आनाकानी नहीं करता था, किंतु सूद की दर तो ऊँची थी ही और मजबूरी का भरपूर अनुचित लाभ उठाने से भी वह बाज नहीं आता था। कर्ज वसूली में वह दया-माया नाम की हर चीज को भूल जाता।

मरता क्या न करता! लोगों की विपत्ति में वही एक आशा की किरण दिखता था।

एक बार गोनू झा को दो सौ रुपए की सख्त जरूरत पड़ी। उन्हें भी अंततः उसी से कर्जा लेना पड़ा।

गोनू झा बीच-बीच में सूद चुकाते जाते थे, फिर भी मूलधन सहित सूद हजार रुपए से अधिक हो गया; महाजन के बार-बार तगादे पर भी मूल नहीं चुका पा रहे थे।

इसी बीच महाजन के बेटे का विवाह ठीक हो गया। वह दो सप्ताह के अंदर सारे रुपए सधा देने की धमकी देकर चला गया।

गोनू झा को रुपए का जुगाड़ नहीं हो पाया, इसलिए नहीं दे सके। वह गायों को लेकर चरागाह में थे। महाजन खोजते-खोजते वहाँ भी पहुँच गया। उसने रुपए देने के लिए तरह-तरह से धमकाना शुरू किया।

थोड़ी देर तो गोनू झा उसकी बात सुनते रहे। उसका तेवर कमने का नाम ही नहीं ले रहा था। अंत में वह उनकी गायों को यह कहकर हाँकते विदा हो गया, 'गोनू झा, आप जब तक रुपए चुकता नहीं करेंगे, गाऍं वापस नहीं मिलेंगी।'

गोनू झा आनन-फानन में अँगोछा सॅंभालते पेड़ पर चढ गए और चिल्ला-चिल्लाकर कहने लगे, 'महाजन, मैं आत्महत्या कर रहा हूँ और आप बहाना भी नहीं बना सकते। मैंने राजा को पहले लिख दिया है कि महाजन के तगादे से ऊबकर मैं फाँसी लगा लूँगा। महाजन डर गया और हाथ जोड़कर कहने लगा, 'गोनू बाबू, उतर आइए ; फाँसी मत लगाइए। मैं सौ रुपए माफ कर देता हूँ।

गोनू झा ने असमर्थता प्रकट करते हुए कहा, 'नहीं महाजन, मैं शेष रुपए कहाँ से दे पाऊँगा?

उसने झुँझलाते हुए कहा, 'जाइए, मैंने आधे रुपए माफ कर दिए।' फिर भी गोनू झा पेड़ से उतरने का नाम ही नहीं ले रहे थे। वहीं से वे बोले, 'महाजन, मैं आधे रुपए भी कहाँ से दे पाऊँगा? मुझे तो मरना ही होगा।'

और कूदकर फाँसी का फंदा तैयार करते जा रहे थे। महाजन ने घबराते हुए कहा, 'कल ही मेरे सुपुत्र की शादी है; मैं सूद माफ कर देता हूँ। कम-से-कम मूल ही देकर मेरा उपकार कीजिए।

गोनू झा उतर गए और गाँव के चौराहे पर जाकर जोर-जोर से ग्रामवासियों को बुलाने लगे, गाँववालो, मैं महाजन के चलते फाँसी चढने जा रहा हूँ जा रहा हूँ; आप सब साक्षी रहेंगे।'

लोग जुटने लगे। अंततः महाजन को रुपए माफ कर जान बचाते भागना पड़ा।