दरबार में पड़ोसी राज का पुरोहित पहुँचा। उसने परिचय दिया और आने का उद्देश्य बताते हुए कहा, 'महाराज, मैं तीर्थाटन से लौट रहा हूँ। आपका यश दिग्- दिगंत में फैला हुआ है, इसलिए सोचा कि क्यों न आपके दरबार के दर्शन कर लूँ।
फिर उसने झोले में हाथ डालकर बताशे निकालते हुए कहा, 'महाराज, ये चार बताशे चारों धाम के प्रसाद हैं। इन्हें आप उपस्थित दरबारियों में समान रूप से वितरण करवा दें।
राजा चिंतित हो गया, किंतु उसने चार ईमानदार दरबारियों को बुलाकर प्रसाद वितरण का भार सौंपा। चार ही बताशे में समान रूप से वितरण दुष्कर था, इसलिए वे एक-दूसरे को देखने लगे।
तभी एक का ध्यान गोनू झा पर गया। उसने राहत की साँस लेते हुए कहा, 'महाराज, यह काम गोनू झा के हाथों अत्यंत शुभ होगा।
राजा ने प्रसन्नतापूर्वक कहा, 'शुभस्य शीघ्रम।' और गोनू झा को इसका दायित्व मिल गया। गोनू झा ने भी स्थिति की नजाकत भाँपकर चुनौती सहर्ष स्वीकार कर ली और राजा से कहा, 'महाराज, मुझे सर्वप्रथम पौन बाल्टी के करीब पवित्र जल, चार लोटे चीनी, एक बोतल केवड़ा जल और एक चम्मच चाहिए। तब तक चुक्कड़ की भी व्यवस्था करवा दें।'
सभी सामान तुरंत उपलब्ध हो गए। गोनू झा ने सुगंधित शरबत बनाया और ऊपर से चारों बताशे चूरकर डालने लगे।
एक दरबारी ने चौंकते हुए कहा, 'अरे, रे, रे! गोनू झा, यह क्या कर रहे हैं? और तुरंत महाराज की ओर मुखातिब होकर गोनू झा को इंगित करते हुए कहा, 'महाराज, इन्होंने तो बताशे का सर्वनाश ही कर दिया।
गोनू झा ने इत्मीनान से कहा, 'भजार, आप घबड़ाऍं नहीं; मुझे अपनी जिम्मेवारी भलीभाँति याद है। मैं महाराज की इच्छा के अनुरूप ही कार्य कर रहा हूँ।
पुरोहित ने सहमति जताते हुए कहा, 'महाराज, प्रसाद का एक धर्म प्रसन्नता प्रदान करना है। यह कम रहे अथवा अधिक, ठोस हो या तरल अर्थात जितना और जिस रूप में भी रहे, कोई फर्क नहीं पड़ता। दूसरी बात कि गोनू झा ने जो विधि अपनाई है, इससे तृप्ति भी मिलेगी। इतनी ही नहीं, इसकी तासीर भी ठंडी होगी और सरलतापूर्वक समान रूप से वितरण के लिए इससे बेहतर ढंग और हो ही क्या सकता है? इसके अलावा आपकी समदर्शिता भी सिद्ध होगी। मैंने भी आज आपके दरबार का लोहा मान लिया।'
गोनू झा ने सभी को अपने-अपने चुक्कड़ के साथ कतार में लगवाकर समान रूप से प्रसाद का वितरण करवा दिया।