एक आदमी को काम के सिलसिले में अपने गाँव से शहर जाना था।
चूँकि वह बेरोजगार था और गाँव में उसे कोई काम उपलब्ध नहीं था, इसलिए उसने शहर जाकर काम ढूंढने का निश्चय किया।
गावं से शहर की यात्रा करने के लिए कोई साधन करने लायक पैसे भी उसके पास नहीं थे, इसलिए वह पैदल ही निकल पड़ा।
मार्ग में घना जंगल था।
उसे जंगली जानवरों से भय लगा किन्तु कोई चारा न देख वह जंगल में प्रवेश कर गया।
कुछ आगे जाने पर अचानक एक पेड़ से एक बड़ा-सा बंदर उसके सामने कूदा।
आदमी भय के मारे जहाँ का तहाँ खड़ा रह गया।
बंदर ने आदमी से उसके विषय में पूछा। इस पर आदमी ने अपनी पूरा व्यथा बंदर को सुनाई।
तब बंदर ने उसकी हर प्रकार से मदद करने का आश्वासन दिया, किन्तु यह शर्त रखी कि तुम मुझे एक क्षण भी बिना काम के मत रखना अन्यथा मैं तुम्हें मार डालूंगा।
आदमी ने उसकी शर्त मान ली।
बंदर उस दिन से आदमी के सारे काम करने लगा।
जब कोई काम नहीं होता तो आदमी उसे सीढ़ी लाने को कहता और उसे पर ऊपर नीचे चढ़ने-उतरने का आदेश देता।
इस प्रकार बंदर आदमी का गुलाम बन गया।
उपर्युक्त कत्था में बंदर मानव-मस्तिष्क का प्रतीक है। यदि हम अपने मस्तिष्क को सदैव विभिन्न कार्यों में लगाए रखेंगे, तो यह सदैव रचनात्मक ऊर्जा से भरा रहकर सकारात्मक परिणाम देगा।
किन्तु उसे निष्क्रिय रखते हुए कोई काम नहीं करेंगे, तो वह ध्वंसात्मक प्रकृति का हो जाएगा।
इसलिए कहा गया है कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है।