जगद्गुरु शंकराचार्य ज्ञान की जटिल व सूक्ष्म बातों को जितनी सरलता से समझाते थे, उतनी ही आसानी से वे व्यावहारिक जीवन में काम आने वाले सूत्रों की व्याख्या भी कर देते थे।
लोग उनके पास दूर-दूर से आते और वे लोगों को अनमोल ज्ञान की ऐसी पूंजी देते, जो लोगों के लिए संपूर्ण जीवन का आधार हो जाती।
एक बार एक धनवान व्यापारी श्रद्धालु शंकराचार्य के पास आया और कहने लगा - प्रभु मेरे पास कई कामों के लिए समय ही नहीं रहता।
मैं सोचता ही रह जाता हूँ की फलां सद्कार्य करूं , अमुक अच्छा कार्य भी करना है, किन्तु समय न होने से नहीं कर पाता।
मुझे अपने व्यापार के कामों से ही फुर्सत नहीं मिलती।
आप ही बताइए की समयाभाव के कारण कोई व्यक्ति सद्कार्य न कर पाए तो वह क्या करे ?
शंकराचार्य ने मुस्कुराते हुए कहा - वत्स!
मेरा परिचय तो आज तक उस व्यक्ति से नहीं हो पाया है, जिसको विधाता के बनाए समय में से एक क्षण भी कम मिला हो।
वस्तुतः जिसे तुम समयाभाव कह रहे हो, वह अव्यवस्थित जीवन जीने का ढंग है।
जो लोग व्यवस्थित जीवन नहीं जीते, वे अपने अमूल्य जीवन को भारस्वरूप ढोते हैं।
जीवन यह नहीं कितने वर्ष जीया।
जीवन वह है कि व्यक्ति ने समय का कितना सदुपयोग किया।
सार यह है कि कार्यों का समयानुसार विभाजन कर प्रत्येक कार्य को उसके तय समय पर किया जाए तो समयाभाव जैसी स्थिति कभी निर्मित नहीं होगी और विकास के स्तर पर भी इसके अच्छे परिणाम आएँगे।
” समय मुफ्त में मिलता है, परंतु यह अनमोल है। आप इसे अपना नही सकते, लेकिन आप इसका उपयोग कर सकते हैं। आप इसे रख नही सकते, पर आप इसे खर्च कर सकते हैं। एक बार आपने इसे खो दिया, तो वापस कभी इसे पा नही पाएंगे।” - हार्वे मैके