स्वामी दयानन्द सरस्वती के प्रवचनों में अमीरचंद नामक व्यक्ति भजन गता था।
उसका गला अत्यंत सुरीला था।
वह जब भी गाता, बड़ी तन्मयता के साथ गाता था।
उसे सुनकर श्रोता मुग्ध हो जाते।
अमीरचंद के भावपूर्ण गीतों ने स्वामी जी को भी उसका मुरीद बना दिया था और वे सदैव उसे प्रोत्साहन देते रहते थे।
एक बार उनके प्रवचन के उपरांत जब अमीरचंद भजन गाकर चला गया तो कुछ प्रतिष्ठित लोगों ने उनसे अमीरचंद के खराब आचरण के विषय में शिकायत की।
स्वामी जी हैरान हुए, किन्तु जब उन्होंने इन आरोपों की जाँच की तो उन्हें सत्य पाया।
उन्हें पता चला कि अमीरचंद रिश्वत लेता है, नशा करता है और पत्नी को भी त्याग चुका है। अगले दिन अमीरचंद ने भजन समाप्त करने के बाद जब स्वामी जी से जाने की अनुमति मांगी तो वे बोले - तुम्हारा गला तो कोयल जैसा है किन्तु आचरण कौए के समान है।
अमीरचंद को बात की गहराई समझ में आई। उसने अच्छा बनने के बाद ही स्वामी जी से मिलने का संकल्प व्यक्त किया।
सबसे पहले तो उसने रिश्वत लेना छोड़ा। फिर नशे से मुक्ति ली।
तत्पश्चात पत्नी को स्वयं जाकर आदरपूर्वक लाया और सदैव उसके प्रति निष्ठावान रहने का संकल्प लिया।
फिर वह स्वामी जी से मिला, तो उन्होंने उसके इस कायाकल्प पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए आशीर्वाद दिया। कथा का सार यह है कि यदि वाणी में सरस्वती बसती हो और आचरण रावण के समान हो तो यह प्रतिकूलता अपयश का भागी ही बनाती है।
वस्तुतः मीठी वाणी और सदाचरण का मेल व्यक्ति को लोकप्रिय बनाता है।