एक आदमी अपनी पत्नी व पुत्र के साथ सुखी जीवन व्यतीत कर रहा था।
अचानक एक दिन उसकी पत्नी बीमार हो गई और बहुत इलाज कराने के बाद भी स्वस्थ नहीं हुई।
लेकिन दुर्भाग्यवश थोड़े दिनों बाद पुत्र को भी रोग ने आ घेरा और उसे भी लाख उपचार क्ले पश्चात बचाया नहीं जा सका।
अब तो आदमी पर वज्रपात ही हो गया। वह दिन-रात रोटा रहता। संसार से सर्वथा विरक्त होकर वह एकांतवासी बन गया।
न किसी से कुछ बात करता और न ही मिलता-जुलता। एक दिन अपने पुत्र का स्मरण कर वह देर रात तक रोता रहा, फिर उसकी आँख लग गई।
स्वप्न में वह देवलोक जा पहुंचा। वहां उसने देखा कि छोटे बच्चों का जुलूस निकल रहा है।
उन सभी के हाथों में जलती हुई मोमबत्तियां हैं। उस जुलूस में उसका पुत्र भी चल रहा था, किन्तु उसके हाथ की मोमबत्ती बुझी हुई थी।
आदमी पहले तो अपने पुत्र से लिपटकर खूब रोया, फिर मोमबत्ती बुझने का कारण पूछा, तो पुत्र बोला - पिता जी ! आप मुझे याद करके बार-बार रोते हैं इसलिए आपके आंसुओं से मेरी मोमबत्ती बुझ जाती है।
यह सुनते ही आदमी की नींद खुल गई और उस दिन उसने बच्चे के लिए रोना बंद कर दिया उसकी स्मृति में अनाथ बच्चों की मदद करना शुरू कर दिया।
सार यह है कि रिश्तों से मोह स्वाभाविक है, किन्तु मृत्यु के रूप में उनकी समाप्ति पर शोक में डूबने के स्थान पर उनकी स्मृति में रचनात्मक कर्म करने चाहिए ताकि कुछ बेहतर करने के उल्लास से वे अधिक याद आएं।