तीन बेटियों की माँ

मैं एक मामूली औरत हूँ। इतनी मामूली हूँ कि आपकी नज़र भी मुझ पर नहीं पड़ी लेकिन मैं आपको देख रही हूँ।

आप अपनी बीवी के साथ डाक्टर के यहाँ जा रहे हैं। उसकी कोख में लड़की या लड़का, यह जानने के लिए।

असल में आप अपनी लड़की की हत्या करना चाहते हैं, कोख में ही।

आपको यह ख़याल भी नहीं आ सकता कि जिस सड़क से आप जा रहे हैं उसे मैंने बनाया है।

मैंने यहाँ रोड़ियाँ बिछाईं और फिर उन्हें दुर्मुट से कूटा था।

मेरी छोटी बेटी तब यहाँ किनारे पर उगी झाड़ियों में ऊँघती रहती थी।

मेरी तीन बेटियाँ हैं।

मेरा आदमी कहता था कि अगर बेटा नहीं हुआ तो मुझे छोड़ देगा। उसने कहने के लिए मुझे छोड़ भी दिया पर अब भी पका-पकाया खाने के लिए जब-तब आ जाता है।

चिकनी-चुपड़ी बातें भी करता है। मैं सब समझती हूँ। फिर सोचती हूँ चलो मेरी बेटियों का बाप है । कमाल है जिन बेटियों से वह छुट्टी चाहता था, उन्हीं बेटियों के नाम की थाली में उसे परोस देती हूँ। वह समझता है बेटियाँ बोझ हैं।

मेरी तीनों बेटियाँ साँवली हैं । उनकी काली आँखे हैं बड़ी- बड़ी पके जामुनों जैसी और हाथ बड़े फुर्तीले हैं, ख़ूब काम करती हैं । मेरी ही तरह वे तरह-तरह के धंधे पीटेंगी। पर फिर भी उनके होने से मुझे बड़ी तसल्ली है। मैं अकेली तो नहीं हूँ न।

तुम समझते हो लड़कियाँ बेकार होती हैं।

औरतों के कामों को आप जानते ही नहीं। अरे देखो मैंने सड़क बनाईं, धान की रोपाई की, कपास चुना, कपड़े की फैक्ट्री में रीलिंग की, आलू खोदे, तीन-तीन बेटियों को जनम दिया, पाला-पोसा, क्‍या मैं बेकार हूँ? ये जो तुम चाय पीते हो, इसकी पत्तियाँ भी लड़कियाँ ही चुनती हैं।

और क्या-क्या नहीं करतीं ! इतने धंधे औरतें करती हैं कि गिनवाने मुश्किल और तुम्हारा ये सूटर कोई एक पौंड का होगा। एक पौंड ऊन इतनी होती है कि दिन-रात लगकर तीन दिन में उसका सूटर बनता है जिसके मुझे बारह रुपये मिलते थे।

तब बच्चियाँ छोटी थीं तो सोचती थी घर में उनके पास बैठे- बैठे बुनाई कर सकती हूँ।

लेकिन धंधा बड़े नुकसान का था। फिर ठेकेदार ने मीन-मेख निकालनी शुरू की और मुझ पर गलत नज़र डालने लगा तौ मैंने ये धंधा छोड़ दिया। फिर आटे की फैक्ट्री में काम किया। बड़े काम छोड़े और पकड़े। दो चार मुर्गियाँ और बकरियाँ तो ख़ैर पालती ही हूँ। इसी तरह रूखा-सूखा चलता है।

ये जो तुम्हारी बीवी ने रेशमी साड़ी पहन रखी है, इसके धागे भी औरतें तैयार करती हैं।

कीड़े पालती हैं। मुश्किल काम है। जाँघ में घाव हो जाते हैं। धान की रोपनी में भी पैरों में खारवे हो जाते हैं और कमर झुके-झुके टूट जाती है।

मुझ पर पैसे होते तो अपनी लड़कियों को पढ़ाती-लिखाती उन्हें मास्टरनी बनाती या डाक्टरनी, तुम खुद पढ़े-लिखे हो। पैसे वाले भी दीखते हो, तुम लड़की का गर्भ क्‍यों गिरवाना चाहते हो। तुम समझते हो तुम्हारी लड़की कोई काम नहीं कर सकती। अरे आदमी कोई फालतू चीज़ नहीं। सौ काम हैं उसके करने को।

फिर इस तरह सोच समझकर लड़कियों को मारना तो कुदरत से खिलवाड़ है।

अगर मान लो तुम्हारे घर लड़का हो गया तो तुम क्या सोचते हो वो तुम्हें लड़की से ज़्यादा प्यार करेगा। फिर लड़के बिगड़ते भी बहुत हैं ।

आजकल उनका ध्यान शरातर, ताश और मार-पीट में ज़्यादा हो गया है। मान लो लड़की ही पैदा हो जाये तो क्या ?

तुम उसे पढ़ाना-लिखाना। वो तुम्हें खूब प्यार करेगी। लड़कियाँ माँ- जाप को खूब प्यार करती हैं। तुम्हारे घर में रौनक होगी सो अलग से। तुम सोचते हो दहेज देना पड़ेगा। तो तुम उसे खाने-कमाने लायक कर देना। दहेज माँगने वाले से शादी मत करना। हो सकता है आप ही ऐसा लड़का मिल जाये जो बिना दहेज के शादी कर ले।

अगर न मिले तो क्‍या ? वो कमायेगी- खायेगी और तुम्हारा सहारा बनेगी। हो सकता है वह तुम्हारा नाम रौशन कर दे।

तुम्हारे लिए क्‍या पैसा ही सब कुछ हो गया या दुनिया का डर अपनी बेटी से भी बड़ा हो गया ?

आखिर तुम अपनी बेटी को प्यार तो कर ही सकते हो और बेटी भी तुम्हें प्यार कर सकती है। माँ-बाप और बच्चे का इतना रिश्ता बहुत हुआ। इसके लिए तो आदमी जीता है, पैसे को चाहे जितना मानो पर मोह-ममता फिर भी बड़ी चीज़ है, इसे बनाये रखने में ही खैर है। नहीं दुनिया उजड़ी समझो।

कुदरत के साथ इतनी मनमानी अच्छी नहीं। लड़कियों को तुम ऐसे ही गिरवाते रहे तो औरतें कितनी कम हो जाएँगी। फिर तुम उनके लिए कुत्तों की तरह लड़ोगे। दहेज के डर से आज उन्हें मरवा सकते हो तो कल फिर पैसे के लालच में बेचोगे भी। इस तरह क्या दुनिया बड़ी अच्छी हो जायेगी या तुम्हारे घर-परिवारों में खुशियाँ छा जायेंगी।

तुम जो रेशमी साड़ी पहन कर इसके साथ चली आई हो, इससे इतना डरती क्यों हो ? सोचती हो यह तुम्हें छोड़ देगा ?

ये मिचमिची आँखों वाला अगर तुम्हें छोड़ भी दे तो क्या तुम मर जाओगी ? मैं तो पढ़ी-लिखी भी नहीं थी। मैं तो तानों से नहीं डरी। आदमी ने छोड़ने की धमकी दी तो कह दिया ले छोड़ दे। अब भी मेहनत कर के खाती हूँ, तब भी मेहनत कर लूँगी। पर वो क्या मुझे छोड़ पाया। हम औरतें बड़े काम की हैं। हमें ये ऐसे ही थोड़े छोड़ सकते हैं । परिवार की ज़रूरत तो इन्हें भी है। नहीं तो हाँफते-हाँफते मर जायेंगे। कोई पानी देने वाला भी नहीं मिलेगा।

मैं तो कहती हूँ बेटी भी पैदा करो, दहेज भी मत दो और डरो भी मत। देखना दुनिया ऐसी ही चलेगी, इससे अच्छी चलेगी। दाब- धौंस कुछ कम ही होगी।

मेरी बेटी ने कढ़ाई-सिलाई सीखी है, वो न होती तो फिर क्या था! मैं तो दुनिया में धंधा पीटती मर जाती । अब भी मेहनत करती हूँ पर मन में खुशी भी है। मेरी तीन लड़कियाँ खूब हुनर वाली हैं । कोयल जैसी आवाज है उनकी।

सुने से थकान मिट जाती है।

न करे कोई शादी अपनी जिन्दगी भाड़ बनायेगा और जो शादी करेगा सो भागवान होगा।

चलती हूँ ये ठेकेदार आता दीखता है।

आँखों से कम सूझने लगा है।

ये जो लिबर्टी सिनेमा है न इसे गिराना है। मालिक यहाँ पूरी बाजार भर दुकानें बनवाना चाहता है।

यहीं मलबा ढोने का काम करूँगी।

काम तो ठीक है।

मैंने बहुत किया है पर इसके सामने ये डाक्टर की दुकान है।

यहाँ लड़का-लड़की टैस्ट होता है बस।

इसे देख-देखके मन में बेचैनी बनी रहती है। घड़ी-घड़ी तुम्हारे जैसों की सूरत देखनी पड़ेगी।

हत्यारों की।

बस कहीं और काम मिला तो ये जगह छोड़ दूँगी। देखूँ तब तक तो यहीं काम करना पड़ेगा ।

मैं पढ़ी-लिखी होती तो ये ही सब बातें लिख देती।

फिर तो तुम भी मेरी बात किताब में पढ़ लेते।

पढ़कर तुम भी कहते कर्तारी देवी बात तो पते की कहती है।