प्रेम और रोटी

विश्व की क्लासिक कहानियाँ- लेखक : ऑगस्ट स्ट्रिन्डबर्ग

अस्तिस्टैण्ट काउंसिलर गस्टाफु फाकने लुई के पिता के सम्मुख जब लुई से अपनी शादी का शुभ प्रस्ताव रखा, तब वृद्ध पिता का पहला सवाल धा--तुम कितना पैदा कर लेते हो?”

“सौ क्रोनर से ज़्यादा तो नहीं कर पाता, लेकिन लुई... ।”

“लेकिन-वेकिन कुछ नहीं,” लुई के पिता ने बीच में टोक कर कहा-“ तुम्हारी आमदनी काफी नहीं है!”

“आह! लेकिन वह मुझे कितना प्यार करती है! मैं भी तो उसे प्राणों से ज्यादा चाहता हूं! हम दोनों एक दूसरे पर कितना विश्वास करते हैं!”

“हो सकता है। कुछ भी हो, लेकिन क्या 200 क्रोनर ही तुम्हारी सारी सालाना आमदनी है?”

“हमारी जान-पहिचान पहले पहल लिडिन्गो में हुई थी!”

“सरकारी तनख्वाह के अलावा भी तुम्हें कुछ ऊपरी आमदनी है क्या?” लुई के पिता ने जोर देकर पूछा।

“हां. .अच्छा...हमारे ख्याल से इतना ही हम दोनों के लिए काफी है। और फिर देखिए हमारा आपस में प्रेम... !”

“सो तो बिल्कुल ठीक है, लेकिन मुझे साफु-साफ कुछ हिसाब-किताब तो बताओ।” “ओह!” उत्सुक प्रेमी ने कहा-“मैं कुछ ऊपरी काम करके काफी पैदा कर सकता हूं!”

“क्या क्या? और कितने का?”

“मैं फ्रैंच पढ़ा सकता हूं, और अनुवाद भी कर सकता हूं। और फिर मैं प्रफ रीडिंग से भी तो कुछ पैदा कर सकता हूं।'

“कितना अनुवाद कर सकते हो?” पैंसिल हाथ में उठाकर वृद्ध ने पूछा! “यह तो ठीक ठीक नहीं बतला सकता, लेकिन फिलहाल मैं एक फ्रैंच की किताब का अनुवाद दस क्रोनर फी फुर्मे के हिसाब से कर रहा हूं।”

“कुल मिलाकर कितने फर्मे हैं सारी किताब में?”

“यही कुछ दर्जन कहना चाहिए ।”

“बहुत ठीक! यह कुल समझ लो 250 क्रोनर हुआ। इसके सिवा और कया है?”

“उफ्‌! मैं कह नहीं सकता। कुछ ठीक तय नहीं है।”

“क्या कुछ ठीक तय नहीं है?-और तुम शादी करना चाहते हो? अरे बच्चू!

मालूम होता है कि तुम जानते नहीं हो कि शादी होती क्‍या है!

समझे!

क्या तुम्हें मालूम है कि तुम्हारे बच्चे होंगे, उन्हें खिलाना पड़ेगा, पहनाना पड़ेगा, पढ़ाना पड़ेगा...और उनके लिए न जाने क्या-क्या और करना पड़ेगा?”

“लेकिन...लेकिन,”-फाकने विरोध करते हुए कहा-“बच्चे तो देर में भी हो सकते हैं-और...और हम लोग इतना प्यार करते हैं कि-कि...!”

“कि बच्चों का जल्दी पैदा होना बिलकुल निश्चित है, इसीलिए!” फिर कुछ रुक कर, लुई के पिता ने कहना शुरू किया-

“मेरे ख्याल से तुम दोनों के दोनों शादी करने पर तुले हुए हो-इसमें कोई शक नहीं और ठीक है-लेकिन यह तो बताओ कि तुम्हें एक दूसरे में कौन-सी बात अच्छी लगती है? क्‍योंकि मुझे लग रहा है कि मुझे तुम्हारे विवाह के लिए अब अनुमति देनी ही पड़ेगी, इसलिए अच्छा है कि जो समय तुम लुई के पास बैठकर बरबाद करते हो, उसमें काम करके कुछ पैदा ही करो ।”

वृद्ध की इस स्वीकृति से युवक फाक एकदम खिल उठा और उसने बड़े सम्मान और आदर के साथ उनके हाथ चूम लिए! भगवान ही जानता है वह उस वक्‍त कितना खुश था-और उसकी लुई-ओह वह भी तो फूली नहीं समाती थी।

शाम को जब वे साथ-साथ हाथ में हाथ डाल कर घूमने गए, तो कैसा सुंदर गर्व-सा अनुभव कर रहे थे और उनके मुखों पर एक विचित्र चमक सी खिल रही थी!

अब वह शाम को उससे मिलने आने लगा था।

साथ में वे छपे हुए कागज़ ले आया करता था, जिनका वह प्रूफ ठीक करता होता ।

इसका पापा के ऊपर बड़ा अच्छा असर पड़ा, और लुई ने भी सोचा कि मेरे लिए वह कितनी मेहनत करते हैं यही सोचकर वह उसे चूम लेती! लेकिन एक दिन शाम को जरा जी बहलाने की गरज से वे थियेटर चले गए; वहां से लौटे तो एक सिकरम में ।

इस सबमें पूरे दस क्रोनर खर्च हो गए। इसी तरह कई और दिन शाम को वह ट्यूशन पर न जाकर लुई के साथ घूमने निकल गया।

जैसे-जैसे शादी का दिन नज़दीक आता जाता था, अपना घर सजाने की फ़िक्र उन पर सवार होती जाती थी। इसलिए कुछ जरूरी चीजें भी खरीदनी थीं। उन्होंने एक बढ़िया सा पलंग ख़रीदा, जिसमें स्प्रिंगदार गढ्टे, बढ़िया चादर, तकिया और मच्छरदानी भी साथ में थे। लेकिन लुई को एक नीला रेशमी लिहाफु चाहिए. था, क्योंकि उसके बाल पीले सुनहरे रंग के थे। सो वह भी खरीदा गया। इसके सिवाय उन्होंने लाल शेडवाला एक लैंप खरीदा; वीनस* की एक चीनीकी प्रतिमा खुरीदी, और एक मेज ली, जिसमें चाकू, छुरी, कांटे और शीशे के बर्तनों का एक बढ़िया सैट भी शामिल था।

रसोई के लिए बर्तन ख़रीदने में लुई ने अपनी मा की सलाह और सहायता ली। तो इस तरह बेचारे असिस्टैण्ट काउंसिलर की नाक में दम था-इधर से उधर मकान ढूंढ़ने के लिए दौड़े-दौड़े फिरता; कारीगरों के काम की देख भाल करता; सब फर्नीचर आ गया या नहीं, यह खबर रखता; चेक लिखता-उफ्‌, क्या-क्या नहीं करना पड़ रहा था बेचारे को!

और इस बीच में स्वाभाविक ही है कि गस्टाफु कुछ पैदा नहीं कर सकता था। उसने सोचा-शादी हो जाने पर फिर सब ठीक हो जाएगा। खूब किफायतशारी करेंगे। सबसे पहले तो एक छोटा-सा ही मकान लेकर रहेंगे।

और फिर सच बात तो यह है कि बड़े मकान के मुकुबिले में छोटे मकान की सजावट अच्छी और आसानी से हो जाती है; तो इसलिए उन्होंने पहली मंजिल पर 600 क्रोनर पर एक मकान किराये पर लिया, जिसमें दो कमरे, एक रसोई और जिंस के लिए एक कोठरी थी। पहले लुई का ख़्याल धा कि खुली छतवाले तीन कमरे ठीक रहेंगे! फिर उसने सोचा-“ऊंह, जब हम एक दूसरे से इतना प्यार करते हैं, तब इन सब बातों से क्या होता है?”

आखिर कमरे सज-सजाकर ठीक हो ही गए। सोने के कमरे में दो पलंग इस तरह खड़े थे माना किसी रथ के पहिए हों और वह रथजीवन यात्रा पर चल दिया हो! नीले-नीले लिहाफू, दूध सी सफेद पलंग की चादेें, बेल-बूटों से कढ़े हुए तकिए के गिलाफु-सब तितर-बितर पड़े हुए बड़े खुशनुमा लग रहे थे। 200 क्रोनर का लुई का प्यानों था, जो दूसरे कमरे में रखा था। दूसरा कमरा बैठने, खाने और पढ़ने-लिखने के लिए भी था।

इसमें एक बड़ी और बढ़िया रायटिंग टेबिल और मेल खाती हुई कुर्सियों के साथ एक डाइनिंग टेबिल थी; एक बड़ा गिल्टके फ्रेंम का दर्पण, एक सोफा और एक किताबों का केस सारे के सारे कमरे की शोभा को बढ़ाकर जैसे उसमें बड़ा सुख और आराम-सा भरे देते थे।

विवाहोत्साह शनिवार की रात को संपन्‍न हुआ था और दूसरे दिन रविवार को काफी दिन चढ़े तक पति-पत्नी सोए हुए थे! गस्टाफु पहले उठ बैठा, हालांकि सूरज की तेज़ रोशनी किवाड़ों की संदों में होकर आ रही थी, फिर भी उसने किवाड़ों को खोला नहीं, प्रत्युत लाल शेड वाला लैंप जला दिया, जिसके अरुण प्रकाश में वीनस की चीनी की प्रतिमा एक रहस्यभरी आभा से ज्योतित हो कर खिल पड़ी। तृप्त और अलसाई बधू भी पास ही लेटी हुई थी। वह खूब मीठी नींद सोई थी, और क्योंकि इतवार का दिन था, इसलिये सड़क पर माल-असबाब के ठेले और खचड़ों का वह कोलाहल नहीं था, जो उसे रोज़ जगा देता था।

और जरा देर बाद ही गिरजे का मधुर घंटा टन! टन! बजने लगा,मानो पुरुष और नारी के मृदुल-मिलन से उत्पन्न सौंदर्य-सृष्टि के शुभावसर पर बाजे बजा कर बधाईयां दे रहा हो!

लुई ने करवट बदलीं। गस्टाफु पर्दे के पीछे कपड़े पहनने चला गया, जहां से फिर वह रसेई में खाने की तैयारी के लिए आदेश देने चला गया।

तांबे और टीन के नए-नए बर्तन, ओह कैसे जगमग-जगमग चमचमा रहे थे!-और यह सब उसी का तो था-और था उसकी प्यारी पत्नी का! उसने रसोईए से कहा “पास के ही रेस्तरों में जाओ और कह दो कि ठीक वक्‍त पर दो जनों के लिए खाना यहां भेज दिया जाए।”

रेस्तरां का मालिक गस्टाफ और लुई के इस विवाह के विषय में पहले से ही जानता था और उसे खाना तैयार करके रखने के लिए आदेश भी एक दिन पहले ही मिल चुका था। आज वह केवल सूचना पाने की प्रतीक्षा कर रहा था।

तत्पश्चातू दूल्हा महाशय फिर लौटकर शनयनगृह के द्वार पर पहुंचे और धीरे से किवाड़ों को खटका कर कहा-“क्या मैं अंदर आ सकता हूं!”

एक हल्की सी चीख़ सुनाई पड़ी और फिर-““हीं प्रियतम-ज़रा-बस ठहर जाओ!”

इस बीच में गस्टाफ मेज़ उठाकर रखता है; उस पर एक सफेद चिट्टा मेज-पोश डालकर शीशे और चीनी के बर्तन, छुरियां, चाकू और कांटे-सब कुछ सजाकर रख देता है।

जैसे ही लुई ने कमरे में पदार्पण किया, सूर्य की रजत रश्मियों ने उसके गालों और सुनहरी केशों को चूम कर उसका स्वागत किया। लेकिन वह अब भी थकी हुई थी; इसलिए गस्टाफ ने उसे अपनी भुजाओं में भरकर आराम कुर्सी पर बैठाल दिया और आराम कुर्सी को सरका कर (उसमें पहिए लगे हुए थे) टेबिल के पास ले गया। फिर थोड़ी-सी शराब लुई को चखाई जिससे वह चैतन्य हो गई।

“जरा सोचिए तो अगर उसकी माता को मालूम हो जाए कि मेरी बेटी शराब पीती है, तो! शादी हो जाने पर तो यह किया जा सकता है-शादी करने का एक यही तो फायदा है कि बहुत-सी न करने की बातें करने के लिए मिल जाती है। नया-नया पति अपनी नई-नई पत्नी की तनिक-तनिक-सी सुविधाओं का, ज़रा-जरा से आरामों का ध्यान रखता है। कितना आनंद आता है इसमें! यह तो ठीक है कि कुमारावस्था में भी मैंने बड़ी-बड़ी दावतें खाई थीं, लेकिन उनसे कया मुझे आनंद मिला था ?-कुछ भी तो नहीं !”-इस

प्रकार की बातें गस्टाफ बीयर के गिलास में ओंठ लगाए सोच रहा था |- “और यह कुंवारे लोग भी कैसे खोखले दिमाग के होते हैं-कूढ़ मगज! अरे शादी नहीं करना चाहते-यह भी कोई बात है भला। और कितने खुदगरज हैं यह लोग! इन लोगों पर तो मेरे ख्याल से टैक्स लगाना चाहिए टैक्स !-जैसे कुत्तों पर लगता है।”

किंतु लुई अपने विचारों में इतनी कट्टर नहीं है। वह बड़ी सहूलियत और मीठेपन से इस बात को जोर देकर कहती है कि वे विचारे जो शादी नहीं करते, रहम के काबिल हैं। अगर उनकी हैसियत शादी करने की हो, तो वे कुंवारे कभी नहीं रहे।

गस्टाफ के दिल में ज़रा सी कसक है-हां-लेकिन सुख कोई धन से ही तो नहीं मिलता। नहीं-नहीं, लेकिन-लेकिन-खैर, कोई बात नहीं, थोड़े दिन में ही बहुत सा काम मिल जाएगा और तब फिर सब काम ठीक से चलेगा! और इस समय तो वह बढ़िया-बढ़िया खाने खा ही रहा है।-मेवे-मिठाईयां और शराब!

लुई सशंकित हो उठती है और संकोच से पूछ बैठती है-“क्या हम हमेशा ही इस ढंग से रह सकेंगे?”

और उत्तर में गस्टाफ्‌ उसके गिलास में थोड़ी सी शराब और उड़ेल देता-“ओह तुम बड़ी पगली हो लुई! बेकार डरती हो! ऐसा दिन रोज रोज नहीं, आता मेरी लुई-जीवन बहुत सुंदर है-और यदि उसकी इस सुंदरता का उपभोग करने का अवसर मिले-तो उसे छोड़ना नहीं चाहिए!”

शम को छः बजते हैं और दो घोड़ोंवाली एक शानदार फिटन उनके दरवाज़े पर आकर खड़ी होती है। बात की बात में वे उसपर हवा खाते होते है! लुई और गस्टाफ्‌ बड़े आराम से सीट का सहारा लेकर बैठते हैं।

जब उनके जान-पहिचानवाले और मित्र उन्हें राह चलते मिल जाते हैं, और बड़े ताज्जुब और ईर्ष्या से उनका अभिवादन करते हैं, तब वे बड़ा सुख अनुभव करते हैं! “इस असिस्टेंट काउंसिलर के हाथ अच्छा माल लगा है, एक तो बीबी मिली और ऊपर से रुपए वाली'-साथ ही वे यह जरूर सोचते होंगे, “और हम गरीब लोगों को पैदल धूल फांकते चलना पड़ता है! घोड़ा-गाड़ी पर चढ़कर चलने में कितना मजा आता होगा, मख़मली गद्दोंदार सीटों पर बैठे-बैठे चले जाइए-बिना किसी जरा-सी भी तकलीफ के-बिना कोई मेहनत किए हुए!

सुखी विवाहित जीवन की प्रतीक है यह घोडा-गाडी !”

तो इस तरह उनका पहला महीना रास-रंग, नाच-तमाशों और दावतों में ही बीता; फिर भी जो समय वे घरपर व्यतीत करते थे,वह सबसे अधिक आनंदप्रद होता!

रात में लुई को अपने ससुर के घर से लाने में एक अजब तरह का आनंद गस्टा को आता। घर लौटकर वे जो चाहे सो करते । थोड़ा-सा कुछ खाना तैयार करते, फिर खा-पीकर काफी रात गए तक गृपशप लड़ाते, गस्टाफ्‌ हमेशा कम ख़ूर्च करने के पक्ष में रहता-कम से कम उसका ऐसा ख्याल ज़रूर था, हालांकि व्यवहार में इस पक्ष के विरुद्ध कार्य करने में उसे कृतई कोई मुसीबत नहीं मालूम पड़ती थी। एक दिन नई दुल्हिन और रसोइये ने मिलकर भुनी मछली में उबले हुए आलू मिलाकर तरकारी बनाई।

लेकिन वह गस्टाफ को पसंद नहीं आई। जब एक दिन फिर लुई ने वहीं तरकारी तैयार की, तब उसने बाज़ार जाकर डेढ़ क्रोनर की कुछ बढेरें ख़रीद लीं और सोचा कि मैंने बहुत सस्ता सौदा पटा लिया-लेकिन घर पहुंचा तो लुई ने उल्टी ही बात कही। उसने कहा-“तुम ठग आए”-और फिर शिकार खाना फ़िजूल खर्ची करना है। फिर लुई ने सोचा कि इतनी छोटी-छोटी सी बात के लिए पति से विरोध करने से काम कैसे चल सकता है? कुछ महीनों बाद लुई फाक की तबियत ख़राब हो गई।

लेकिन बात क्या थी, यह किसी की समझ में नहीं आता था।

क्या सर्दी लग गई?

क्‍या पीतल या तांबे के बर्तनों में खटाई की कोई चीज़ भूल से रखने की वजह से जहरीली हो गई होगी,और उसे लुई शायद खा गई हो। डॉक्टर को लुई को देखने के लिए बुलाया गया, उसने खूब अच्छी तरह परीक्षा करने के बाद कहा “कुछ भी तो बीमारी नहीं है!”-और ठट्टा मारकर हंस पड़ा। लेकिन लुई तो बहुत बीमार थी!

शायद दीवाल के कागज में संखिया रही हो और वह हवा में उड़कर उसकी सांसों द्वारा अंदर पेट में पहुंच गई हो, इसलिए गस्टाफु दीवार का कुछ कागज छुड़ाकर एक कैमिस्ट के यहां ले गया और उसने कहा कि इसका ठीक से बारीक विश्लेषण करो! और कैमिस्ट के वैज्ञानिक विश्लेषक ने घोषणा की कि इस काग़ज़ में किसी तरह की कोई भी जहरीली चीज नहीं है।

लुई की बीमारी कम नहीं हो रही थी।

किताबें पढ़ना शुरू की और उसे लुई की बीमारी बुक डँंद डॉक्टर लगी। बस उसने अपना इलाज करना शुरू कर दिया; उसके कमर सी धोए जाते थे और एक महीने के अंदर-अंदर उसकी दशा सुधरती हिया हुई-ओह यह सब कुछ तो अकस्मात ही हो न गया-इतनी जल्दी यह कुछ हो जाएगा-यह तो पापा और मामा ने भी नहीं सोचा होगा!

लॉग उन्हें क्या खुशी न होगी! और जो बच्चा होगा, वह लड़का तो जरूर ही होगा-इसमें भी भला कोई शक हो सकता है!

तो फिर उसका अभी से नाम भी सोच लेनी ज़रूरी है,-यह सब तो लुई ने सोचा और खुशी से फूल गई, लेकिन उसने यह भी सोचा कि ख़र्च का क्या प्रबंध होगा?

और पति से बोली-“देखो जी, तुमने अभी तक अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए कोई भी प्रयलल नहीं किया है, और जो कुछ फिलहाल कमा रहे हो, उससे तो कृतई अभी भी पूरा नहीं पड़ता। यह ठीक है कि अब तक हम लोग जुरा ठाट-बाट से रहते रहे हैं, लेकिन मैं सोचती हूं कि अब ज़रा खर्च कम करना होगा और तभी काम ठीक से चल सकता है।”

दूसरें ही दिन असिस्टैंट कांउसिलर साहब अपने एक बैरिस्टर दोस्त के पास प्रौमिज़री नोट पर रुपया उधार लेने पहुंचा, गस्टाफु ने अपने दोस्त को समझाया कि कितने ज़रूरी खर्चे उसके सिर पर आ पड़े हैं!

“हां,-“बैरिस्टर ने मानते हुए कहा, “यह तो ठीक है ही! शादी करना और कुटुंब बढ़ाना बड़ा महंगा व्यापार है! मैं तो कभी इस व्यापार में हाथ नहीं डाल सकाए यह सुनकर आगे और खुशामद करना गस्टाफ की हया ने पसंद नहीं किया। ख़ाली हाथ जब वह घर लौटकर पहुंचा, तो ख़बर मिली-“कोई दो अनजान आदमी तुम्हें पूछते थे?”

“नहीं नहीं; वे सैनिकों की तरह हडटेकट्टे जवान थोड़े ही थे, वे काफी प्रौढ़ व्यक्ति थे!”

“अरे तब मेरे उपसला के मिलनेवाले होंगे! मेरी शादी के बारे में सुनकर आए होंगे।''

“जहीं नहीं''-नौकर बीच में टोककर बोला-'“'वे उपसला वाले नहीं थे; बे यहीं के स्टाकहामी थे और लाठियां लिए हुए थे! हमारी समझ में तो कछ आया नहीं! लेकिन वे कह गए हैं कि हम अभी लौटकर आते हैं!!'

गस्टाफ्‌ फिर बाज़ार चला गया और इस बार रसभरी ख़रीद लाया। घर आकर उछलते हुए बोला-जरा सोचो तो सही लुई, सिर्फ डेढ़ क्रोनर में इतनी सारी रसभरी और तब, जब मौसम नहीं है इनका! कैसा बढ़िया सौदा रहा, है न?”

“सो तो ठीक है! टके सेर ऊंट बिकता है, तो भी मंहगा होता है, जब पैसा नहीं होता पास में; बतलाओ न हम कया इन फिजूल खर्चियों को बरदाश्त कर सकते हैं?”

“प्रिये! कोई परवाह नहीं है। मैंने कुछ और काम ढूंढ़ लिया है!”

“लेकिन हमारे ऊपर जो कर्जा है, सो?”

“कर्जा? तो क्‍या हुआ? मैं और कुछ रुपया लेकर उसे चुकाने का प्रबंध कर रहा हूं!

“हाय!” लुई ने करुणा प्रदर्शित करते हुए कहा-“'तो क्या वह एक और नया कर्ज़ा हमारे सर पर नहीं होगा?”

“अगर होता भी है, तो क्या हुआ! एक जगह से तो छुटकारा होगा। लेकिन तुम ख़ामख़ा यह परेशान करने वाली बातें क्‍यों छेड़ बैठती हो? कैसी बढ़िया रसभरी हैं और इनके ऊपर शैरी * का एक गिलास कितना मज़ा देगा!-जानती हो?”

और इतना कहते ही गस्टाफ ने नौकर को हुक्म दिया “जाकर फौरन शैरी की एक बोतल ले आओ-सबसे अच्छी वाली!”

उस दिन तीसरे पहर को जब लुई सोकर उठी, तो उसने फिर कर्ज का सवाल उठाया। उसका ख़्याल था कि वह जो कुछ कहने जा रही हैं,

उससे गस्टाफु नाराज़ नहीं होगा। नाराज तो वह हो ही नहीं सकता! तब क्या वह घर के लिए कुछ रुपया चाहती थी?

लुई ने समझा-“पंसारी का रुपया नहीं दिया गया है, गोश्तवाला धमकी देता था, और वह फिटनवाला सईस भी कहता है कि हिसाब तय कर लो!”

“बस !” असिस्टेंट काउंसिलर साहब ने फ्रमाया-” सिर्फ इतना ही! अरे, तो इनका तो कल ही पाई-पाई 'चुकता कर दूंगा! लेकिन हमें और बात भी तो सोचनी चाहिए। आज शाम को पार्क में घूमने चलोगी न?

लेकिन फिटन पर नहीं चलेंगे। ट्राम से ही काम चल सकता है!”

और शाम आई। वे पार्क गए और एल्हैम्ब्रा रेस्तारां में खाना खाया। वहां मज़ा तो बहुत आया गस्टाफ को, क्योंकि आसपास बैठे हुए अन्य लोग उन लोगों को नए अल्हड़ प्रेमी-प्रेमिका समझ रहे थे! लेकिन यह विचार लुई को अच्छा नहीं लगा, और ख़ासतौर से तब, जब उसने बिल देखा! “बाप रे! इतने में तो हम घर पर बढ़िया खाना खा सकते थे!”-वह धीरे से चिल्ला भी पड़ी।

तो एक के बाद एक करके आठ महीने समाप्त हो गए! नवां महीना आया-बच्चे के लिये कपड़े चाहिए थे-झूला चाहिए था, और भी न जाने कितनी चीज़ें चाहिए थीं!

खर्च का प्रबंध करने में गस्टाफ को बड़ी-बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। पंसारी और साईस ने उधार देना बंद कर दिया-क्योंकि उनके भी तो बीबी-बच्चे हैं, जिन्हे खिलाना-पिलाना-पहनाना भी उतना ही जरूरी है जितना गस्टाफु के लिए अपने कुटुंब की अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति करना ज़रूरी है। उफ कैसी लिप्सा है यह!

आख़िर वह शुभ दिन भी आ ही गया।

पैदा हुई लड़की ।

उसे पालने के लिये एक नर्स भी रखनी जरूरी थी और जब वह अपनी उस नवजात पुत्री को गोद में खिलाता होता, तो वैसे ही दौड़-दौड़कर किसी लेनदार की आवाज़ों और चिल्लाहट को खुशामद से गिड़गिड़ाकर शांत करने लग जाता!

नए-नए खर्चे रोज़ पैदा होते ही गए, और वह उनके दुर्वह भार के. नीचे बुरी तरह पिचा जा रहा था।

इसमें कोई संदेह नही कि कुछ अनुवाद करने का काम उसे मिल गया, लेकिन उस काम को वह सफलतापूर्वक करता भी तो कैसे ?

जब उसे कृदम-कृदम पर तरह-तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता था। इसी दुरावस्था में गस्टाफ्‌ अपने ससुर से सहायता मांगता है, लेकिन वह उसे बहुत रूखेपन से जवाब देता है-“मैं इस बार तो तुम्हारी मदद किए देता हूं, लेकिन आयंदा फिर कभी नहीं करूंगा! मेरे पास जो कुछ भी थोड़ा सा बचा है, वह मेरे ही लिए काफी नहीं है! और फिर तुम्हीं मेरे लिए अकेले नहीं हो।”

खैर, तो जैसे-तैसे काम चला ससुर की सहायता से । मां के लिए बढ़िया बढ़िया भोजन जरूरी थे ही,-चूज़े और बढ़िया शराब भी तो; और बच्ची के लिये रखी गई नर्स को भी वेतन देना ही पड़ता था।

खैर, सौभाग्यवश जैसे-तैसे लुई फिर बिल्कुल अच्छी हो गई। उसका पहला सौंदर्य और आकार लोट आएं तब एक दिन ससुर ने फिर दामाद से कहा-“अगर बरबाद नहीं होना चाहते, तो अब आयंदा और बच्चों के लिए कोशिश मत करना!”

फिर भी कुछ दिनों तक गस्टाफु फाक का छोटा सा काटुंब प्रेम और ऋण पर पलता रहा; लेकिन और कब तक पलता रहता! एक दिन दिवालिएपन ने आकर गला दबोच ही तो लिया!

घर के माल-असबाब की कुर्की पर चढ़ने की नौबत आ गई। तब एक दिन लुई के पिता आकर मां-बेटी दोनों को लेकर चलते बने ।

सिकरम में बैठते-बैठते वृद्ध यह कहने से न चूका- “मैंने अपनी पुत्री एक ऐसे शख्स को उधार दी थी, जिसने उसकी इज्जत उतारकर उसे साल भर बाद ही लौटा दिया!”

लुई खुशी से गस्टाफ के साथ रहती, लेकिन वहां तो पेट के लिए एक नाज का दाना तक भी तो नसीब नहीं था!

वह अकेला रह गया ।

एक दिन कुर्क॒ अमीन-वही लाठीवाले लोग-आए और उसके मकान से रसोई के बर्तन तक उठाकर ले गए! घर में न एक फूटी कौड़ी बची, न पानी पीने को एक गिलास, और न लेटने को टूटी चारपाई और न फटा बिस्तर ही! गस्टाफु का असली जीवन अब शुरू हुआ था।

उसने किसी तरह एक दैनिक समाचार पत्र में प्रूफरीडी की जगह पाली थी, जहां उसे रात को आठ-आठ दस-दस घण्टे तक काम करना पड़ता धा। सरकारी नौकरी उसकी अब भी बाकी थी, हालांकि तरक्की रुक गई - थी, क्योंकि वह दिवालिया घोषित नहीं किया गया था।

ससुर साहब ने उसके ऊपर इतनी दया ज़रूर की कि उसे इतवार को अपनी पत्नी और पुत्री से मिलने की अनुमति दे दी, लेकिन एक क्षण के लिए भी वह लुई को अकेले में गस्टाफ के पास नहीं रहने देता था!

जब शाम को वह अपने अख़बार के आफिस में जाने लगता था, तो वे लोग उसे दरवाज़े तक पहुंचाने आते थे और वह अपने कुचले हुए-मरे हुए आत्म-सम्मान को लेकर विदा हो जाता था।

अपने ऊपर से सारे बोझ को उतारने में संभव है गस्टाफ को बीस वर्ष लग जाएं और तब-हां, तब फिर?

तब क्‍या वह अपनी पली और पुत्री का भरण पोषण कर सकेगा? शायद नहीं और अगर दुर्भाग्य से इसी बीच में उसके वृद्ध ससुर साहब ढुरक जाएं, तब तो वे सबके सब बिना घर-बार के हो जाएंगे! इसलिए उस क्रूर हृदयवाले अपने वृद्ध श्वसुर के प्रति भी उसे क़ृतज्ञ होना चीहिए जिसने इतनी निर्ममता से उसके सारे मानवीय सुख को उससे जबरदस्ती छीन लिया!

हां-और मानव जीवन स्वयं भी तो आज इतना कठोर और कुरूप हो उठा है।

खेत में हल चलाने वाले जानवरों का गुज़ारा तो आसानी से हो जाता है, लेकिन सारी सृष्टि में मनुष्य ही ऐसा प्राणी है, जिसे अपना पेट भरने के लिये मेहनत मजदूरी करने की जरूरत पड़ती है! कितने शर्म की बात है!

और यह शर्म चीख-चीख़ कर पूछ रही है कि इस जीवन में हरेक इंसान को क्‍यों मेवे-मिठाई खाने को नहीं मिलते ?-अरे क्‍यों रोटी भी नहीं मिलती ?