बहुत समय पहले की बात है ।
उन दिनों समूचे निकोबार द्वीप समूह का मालिक तोकिलाया हुआ करता था ।
वह इतना शक्तिशाली था कि पूरे द्वीप समूह में एक पत्ता भी उसके आदेश के बिना नहीं हिल सकता था ।
एक बार उसके मन में विश्व-भ्रमण की इच्छा जागी। उसने गाँवों के मुखियाओं और बुजुर्गों के सामने अपनी यह इच्छा रखी। हर एक ने उसकी इच्छा का स्वागत किया और उसके जाने की तैयारियाँ शुरू हो गईं। रास्ते के लिए हर आदमी ने उसे अलग तरह का उपहार दिया ।
तोकिलाया ने यात्रा शुरू की ।
वर्षों बीत गए लेकिन द्वीपों का मालिक तोकिलाया वापस नहीं लौटा । गाँव वालों की बेचैनी बढ़ गई । उन्होंने मान लिया कि तोकिलाया मर चुका है और अब कभी भी वापस नहीं लौटेगा ।
छ: महीने तक उन्होंने उपवास रखा ।
उसके बाद रिवाज्ञ के अनुसार उन्होंने नए कपड़े पहने और मातम मनाने लगे। उन्होंने खूब खाया-पीया और नाचना-गाना किया। अन्त में, उन्होंने नारियल का एक पौधा सागर के किनारे लगाया और शपथ ली कि मालिक के आने से पहले वे फल नहीं खाएँगे ।
आखिर एक दिन, मालिक लौट आया। शुरू-शुरू में तो किसी को इस पर विश्वास ही नहीं हुआ। लेकिन बाद में उनको विश्वास हो गया कि वह उनका खोया हुआ मालिक तोकिलाया ही था। वे घंटों आपस में बातें करते रहे और बीते दिनों की कहानियाँ सुनते- सुनाते रहे ।
सागर-किनारे लगाए गए पेड़ के नारियल खाकर लोगों ने अपनी शपथ को पूरा किया और एक बड़ा जश्न मनाया ।
आज भी उस जश्न को “द ग्रेट फेस्टीवल' के रूप में हर साल मनाया जाता है ।