निकोबार में 'कुन-येन-से ' त्यौहार के मौके पर ढेरों फलों की जरूरत पड़ती थी ।
गाँव वाले जंगल के अपने बागों से फल एकत्र करते थे ।
वर्षों पहले की बात है। एक बार जंगल से फल एकत्र करके गाँव को वापसी के समय रास्ते में उन्हें प्यास लगी। तब, उनमें से एक आदमी नारियल के एक पेड़ पर चढ़ गया ।
उसने नीचे खड़े अपने साथियों को ओर ढेर सारे हरे नारियल गिरा दिए ।
डाब पीकर नीचे खड़े लोगों ने अपनी प्यास बुझाई और उससे घर चलने के लिए नीचे उतर आने का आग्रह किया । लेकिन वह आदमी बोला, मुझे घर लौटने में दो या तीन दिन लग जाएँगे ।
मैं नारियल के फूल खाकर ताकतवर बनना चाहता हूँ । मैं आने वाले कुन- येन-से त्यौहार में अपनी ताकत का प्रदर्शन करना चाहता हूँ । तुम लोग जाओ।
उसकी बात मानकर सभी लोग फलों के साथ गाँव को लौट आए ।
दो दिनों तक वह आदमी नारियल के फूल खाता रहा ।
तीसरे दिन उसने महसूस किया कि उसके शरीर के निचले हिस्से में मांस इकट्ठा हो गया है और वह काफी भारी हो गया है ।
अभी वह कुछ सोच ही रहा था कि इतने में ही वह एक अजगर के रूप में बदल गया ।
अजगर बन जाने पर वह नारियल के पेड़ से नीचे उतरा और जंगल को पार करके अपने घर जा पहुँचा ।
वहाँ उसने देखा कि उसकी पत्नी सहित कुछ औरतें मुरब्बा बनाने के लिए फल छील रही थीं ।
अजगर को घर में आया देखकर वे डर गईं ।
चीख-पुकार करती हुई वे सब-की-सब इधर-उधर भाग उठीं उसकी पत्नी और साथ ही काम कर रही एक औरत इस भगदड़ में ठोकर खाकर अजगर के सामने गिर पड़ीं वह उन्हें निगल गया ।
अजगर के पेट में जाकर दोनों औरतों को ऐसा लगा जैसे कि वे एक बड़े कमरे में आ गई हैं ।
परन्तु बाहर निकलने का कोई भी रास्ता उन्हें न मिला ।
उनके हाथों में फल छीलने वाले चाकू थे ।
उन्होंने अजगर के पेट को उन चाकुओं से चीरकर बाहर निकलने की योजना बनाई ।
दोनों ने वैसा ही किया और अजगर के पेट से निकलकर बाकी औरतों के. पास आ गईं ।
सभी ने उन दोनों के साहस की भूरि-भूरि प्रशंसा की ।
निकोबार में माना जाता है कि उन दिनों अजगर सूरज और चाँद को भी निगल सकता था। आज भी, उसी की वजह से सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण होते हैं ।