पुराने समय की बात है ।
दो युवतियों के बीच गहरी दोस्ती थी। जब भी समय मिलता, वे दोनों समुद्र के किनारे जातीं और पानी के थपेड़े खा रही चट्टानों पर बैठ जातीं | चट्टानों पर बैठकर वे तरह-तरह के चित्र बनातीं और शाम को अँधेरा होने पर ही घर लौटतीं ।
एक दिन बनाए हुए कुछ चित्र उनके हाथ से खिसककर समुद्र में गिर गए ।
ओ.ह...जल्दी पानी में कूद जा और चित्रों को निकालकर ला । एक सहेली ने दूसरी से कहा ।
दूसरी तपाक् से समुद्र में कूद पड़ी और चित्रों को ढूँढ़ती हुई पानी में दूर तक निकल गई । अचानक का-कू-को नाम की एक विशाल मछली उसके सामने आ गई और उसको निगल गई ।
अपनी सहेली के. लौटने का इन्तजार करती दूसरी युवती समुद्र किनारे इधर-उधर घूम रहे केकड़ों को निहारती रही । काफी देर तक इन्तजार के बाद सहेली को ढूँढ़ने के लिए वह भी पानी में
कूद गई। बड़ी मछली का-कू-को ने उसे भी निगल लिया। दोनों सहेलियाँ अब 'उसके पेट में जा
मिलीं । कुछ देर बाद दोनों को जोर की भूख लग आई ।
मछली को भी लगा कि उसके पेट में गई दोनों युवतियाँ भूखी हैं।
“सुनो, मेरे दिल से एक टुकड़ा काटकर खा लो और अपनी भूख मिटा लो।'” उसने उन दोनों को बताया ।
दोनों ने वैसा ही किया ।
उनके ऐसा करते ही उस मछली ने उनसे कहा, आप दोनों मेरे भीतर रहकर मेरा ही दिल काटकर खा रही हैं, क्या यह अच्छी बात है ?
नहीं, बिल्कुल नहीं । दोनों ने कहा ।
दूसरा दिन आया और पहले दिन वाला हादसा पुन: दोहराया गया। कई दिनों तक यह क्रम चलता रहा ।
आखिर परेशान होकर एक दिन का-कू-को समुद्र के बीच खड़ी एक चट्टान के पास आई और दोनों सहेलियों को उस पर उगल कर भाग गई । दोनों सहेलियाँ पूरी तरह असहाय उस चट्टान पर पड़ी रहीं । उन्हें नहीं पता था कि वे किनारे तक कैसे पहुँचेंगी । तभी उन्हें एक शार्क अपनी ओर आती दिखाई दी । दोनों डर गईं ।
“मेरी पीठ पर बैठो । शार्क ने पास आकर उनसे कहा, “मैं तुम दोनों को किनारे पहुँचा दूँगी ।
मरता क्या न करता। कोई और चारा न देख वे दोनों शार्क की पीठ पर सवार हो गईं । कुछ ही समय में उसने उन्हें किनारे पर पहुँचा दिया। दोनों ने उसे धन्यवाद दिया ।
अंधेरा हो चला था। दोनों सहेलियाँ घर की ओर चल पड़ीं ।