धूर्त चमगादड़

अंडमान निकोबार की लोक कथाएँ

एक बार पशुओं और पक्षियों के बीच लड़ाई छिड़ गई ।

इस लड़ाई में कभी पशुओं की जीत होती तो कभी पक्षी जीत जाते । लेकिन लड़ाई थी कि रुकने का नाम ही नहीं लेती थी ।

उस लड़ाई में पशुओं और पक्षियों के बीच सबसे अधिक धूर्त प्राणी चमगादड़ था ।

जब पक्षियों की जीत होती तो वह उड़कर उनकी ओर पहुँच जाता और कहता, मैं भी पक्षी हूँ ।

देखो, ये मेरे पंख हैं। मैं उड़ भी सकता हूँ। हम सब भाई-भाई हैं ।

इस तरह वह पक्षियों के साथ रहना शुरू कर देता ।

और जब पशु जीत जाते तो वह उनके खेमे में चला जाता। कहता, देखो, मेरे पंख जरूर हैं लेकिन मैं पक्षी नहीं हूँ । उनसे तो मुझे बहुत घृणा है । भाई, मैं तो;पशु ही हूँ, आप जैसा ।

ये देखो, मेरी नाक और कान एकदम आप जैसे हैं। मैं पक्षियों की तरह अंडे नहीं देता, आपकी तरह बच्चों को जन्म देता हूँ। मैं उनकी चोंच में चुग्गा नहीं देता, आपकी तरह स्तनपान कराता हूँ। हम परस्पर भाई-भाई हैं। यह कहकर वह पशुओं के साथ रहना शुरू कर देता ।

कुछ समय बाद पशुओं और पक्षियों के बीच लड़ाई का दौर समाप्त हो गया । दुनिया में किसी भी किस्म का पशु और किसी भी किस्म का पक्षी ऐसा नहीं था जिसने इस लड़ाई में भाग न लिया है । समय-समय पर चमगादड़ भी इधर या उधर शामिल होता आया था ।

लेकिन लड़ाई का दौर समाप्त होने पर उसका चालाकी भरा सारा खेल समाप्त हो गया । द्वोनों पक्षों को उसकी धूर्तता का पता चल गया । अब, वह बेचारा न पशुओं के बीच बैठ सका और न पक्षियों के बीच ।

उन्होंने मिलकर उसको शाप दिया कि हे चमगादड़ ! तू पक्षियों की तरह न घोंसले में रह पाएगा और न पशुओं की तरह घरों में । तू पेड़ की शाखों पर उलटा लटकेगा। साथ ही, रात की बजाय तू दिन में सोया करेगा और दिन की बजाय रात में जागा करेगा ।

अपनी धूर्तता के परिणामस्वरूप तभी से, चमगादड़ शाखों पर उलटा लटका रहता है, दिन में सोता है। और रात में जागता है ।