'निकोबारी जनजाति का जन्म कैसे हुआ ?
इस बारे में तरह-तरह की कहानियाँ प्रचलित हैं। हर कहानी एक-दूसरे से भिन्न है। प्रमुख रूप से प्रचलित चार कहानियाँ यहाँ प्रस्तुत हैं-
॥ पहली कहानी ॥
कई सौ साल पहले निकोबार द्वीप घने जंगलों से घिरा था ।
इसके चारों ओर आज की ही तरह गहरा नीला समुद्र दूर-दूर तक फैला था ।
द्वीप पर कहीं भी आदमी का कोई नामोनिशान नहीं था ।
हर जगह सन्नाटा था । निकोबार ट्वीपसमूह में चावरा नामक एक द्वीप था । निकोबारी जनजाति के लोगों का विश्वास है कि उनके पूर्वज इस चावरा द्वीप से ही यहाँ आए थे ।
उनका मानना है कि किसी समय में, बहुत वर्ष पहले, पूरब दिशा से सात आदमी अपनी सात पत्नियों के साथ चावरा में आए। वे सात लोग कौन थे और पूरब दिशा के किस देश से आए थे ? कोई नहीं जानता । वे सात पुरुष अपनी पत्लियों के साथ चावरा में रहने लगे ।
कुछ समय बाद, उन लोगों ने तय किया कि उन्हें आसपास के द्वीपों की ओर बढ़ना चाहिए । यह निश्चय करके उनमें से छः जोड़े छ: अलग-अलग द्वीपों पर चले गए और वहीं बस गए । एक जोड़ा चावरा में ही रह गया । आने वाले समय में उनके बेटे, पोते, पड़पोते हुए। उनके इन वंशजों ने स्वयं को निकाबारी कहना शुरू किया ।
वे लोग किसी भी द्वीप में क्यों न फैल गए हों, अपने मूल द्वीप चावरा के प्रति उनका प्यार सदा बना रहा, जहाँ से वे चले थे । जब भी उन्हें कोई मौका मिलता, वे अपनी डोंगी सागर में डालते और बना रहा, जहाँ से वे चले थे ।
जब भी उन्हें कोई मौका मिलता, वे अपनी डोंगी सागर में डालते और चावरा की ओर चल देते ।
इन यात्राओं के दौरान बहुत से मौके ऐसे भी आए जब वे रास्ता भटक गए और चावरा की बजाय मलाया, सिंगापुर या रंगून पहुँच गए ।
कभी-कभी यह भी हुआ कि भटककर वे जापान की ओर चले गए । कितने ही लोगों की डोंगियाँ समुद्री तूफान और झंझावात के कारण उलट गईं, और वे मर गए ।
परन्तु, इन सारी कठिनाइयों के बावजूद भी चावरा द्वीप से उनके लगाव और प्यार में कोई कमी नहीं आई । वे अब भी चावरा को ही अपना मूल द्वीप मानते हैं ।
॥ दूसरी कहानी॥
निकोबार द्वीप में एक बार भारी वर्षा हुई । इतनी भारी कि पूरा द्वीप पानी में डूब गया। हर जगह पानी ही पानी नजर आता था, और कुछ नहीं। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, स्त्री-पुरुष-बच्चा, सिवा एक आदमी के कहीं कुछ नहीं बचा ।
उस आदमी के अलावा पीपल का एक पेड़ भी बचा जो गहरे पानी के ऊपर अपनी चोटी हिला रहा था । उस पीपल की उस सबसे ऊँची शाखा पर बैठकर उस आदमी ने किसी तरह अपने प्राण बचाए थे ।
कितने ही दिन और कितनी ही रातें गुजर गईं । वह धेर्यपूर्वक वहीं बैठा रहा। फिर, एक दिन बाढ़ का पानी धीरे-धीरे उतरना शुरू हुआ ।
जब नीचे जमीन नजर आने लगी तो आदमी उस पीपल के पेड़ से उतरकर नीचे आया । ऊँचे पेड़ों को छोड़कर बाकी सब कुछ नष्ट हो चुका था । आदमी नाम की कोई चीज धरती के उस हिस्से पर नहीं बची थी । पशु और पक्षी सब जहाँ-तहाँ मरे पड़े थे । आदमी भोजन की तलाश में यहाँ-वहाँ भटकता रहा ।
एकाएक उसे किसी के जोर-जोर से पुकारने की आवाज सुनाई दी। ऐसे समय में, जबकि उसके सिवा एक भी मनुष्य जीवित न बचा हो, मानव-स्वर ने उसे अचरज में डाल दिया । उसने तेजी से साथ आवाज की दिशा में बढ़ना शुरू किया। उसने देखा कि दूर एक घनी झाड़ी में, एक औरत उलझी पड़ी है और पीड़ा से कराह रही है ।
आदमी ने वहाँ पहुँचकर उसे झाड़ी से निकाला और दोनों साथ-साथ रहने लगे ।
निकोबारी आदिवासी मानते हैं कि वे स्त्री-पुरुष के उसी जोड़े की सन्तान हैं ।
॥ तीसरी कहानी॥
पुराने समय में निकाबार द्वीप पूरी तरह घने जंगल से घिरा था ।
आदमी नाम की कोई चीज वहाँ नहीं थी ।
कहा जाता है कि पूरब दिशा के किसी देश की एक राजकुमारी अपने एक दास से प्यार करती थी । उस दास से राजकुमारी को गर्भ ठहर गया ।
यह खबर जब राजा के कानों में पड़ी तो वह विचलित हो उठा ।
उसके क्रोध का ठिकाना न रहा । उसने उस दास को मृत्युदंड सुनाकर मर॒वा दिया । गर्भवती होने के कारण राजकुमारी को उसने मृत्युदंड तो नहीं दिया परन्तु एक बड़े बक्से में उसे जीवित बन्द करके समुद्र में फिकवा दिया। वह बक्सा कई माह तक समुद्र की लहरों के थपेड़े खा- खाकर पानी में भटकता रहा ।
सौभाग्य से एक सुबह, अध्दमृत हो चुकी राजकुमारी वाला वह बड़ा बक्सा एक द्वीप के किनारे पर आ टिका। यह कोई और नहीं, कार-निकोबार द्वीप था। निश्चित समय पर राजकुमारी ने एक बेटे को जन्म दिया । बड़ा होकर वह एक सुन्दर और ताकतवर नौजवान बना । आज की निकोबारी जनजाति उस नौजवान की ही संतति है ।
॥ चौथी कहानी॥
पुराने समय में पानी का एक जहाज निकोबार द्वीप के पास से होकर गुजर रहा था ।
अचानक बड़ा भयानक समुद्री तूफान उठ आया । तूफानी लहरों ने उस जलयान को हल्के पत्ते की तरह किनारे की एक चट्टान पर दे मारा ।
जलयान चकनाचूर हो गया और डूब गया। उसमें सवार स्त्री-पुरुष पानी में इधर-उधर बिखर गए ।
उनमें से कुछ तैरकर और कुछ लहरों द्वारा फेंक दिए जाने के कारण किनारे पर आ लगे । द्वीप से बाहर जाने का कोई साधन उन बचे हुए लोगों के पास नहीं बचा था ।
उन्होंने अपने आप को भाग्य के हवाले कर दिया और पूरी तरह वहीं पर निवास करने लगे ।
कहा जाता है कि वर्तमान निकोबारी आदिम जनजाति के पूर्वज यही लोग थे।