बनैला आदमी

अंडमान निकोबार की लोक कथाएँ

सुदूर दक्षिणी द्वीप ग्रेट निकोबार के जंगल में रहने वाले 'शोम्पेन' आदिवासी प्राचीन मंगोलियाई जनजाति के लोग हैं ।

सैकड़ों वर्ष पहले शोम्पेन-बस्ती में एक झोंपड़ी थी ।

उसके एक ओर घना जंगल था और दूसरी ओर दूर-दूर तक फैला नीला, गहरा सागर । एक शाम, भय से काँपता सात- आठ साल का एक नंग-धड़ंग लड़का अपनी झोंपड़ी से बाहर निकला। आकाश पर चमकते तारों ने रात के गहराने का आभास दे डाला था ।

लड़के ने उत्सुक नजरों से चारों ओर देखा। दरअसल, वह समुद्र से मछलियाँ पकड़ने को गए अपने माता-पिता की प्रतीक्षा कर रहा था । उसे उनकी चिता हो रही थी ।

अचानक उसकी नजरें सामने जंगल की ओर उठ गईं। उसने दो भयंकर आँखों को अपनी ओर घूरता पाया। उसने तुरन्त अपनी निगाहें उधर से हटा लीं और समुद्र की ओर देखने लगा। लेकिन माता-पिता का उधर कुछ अता-पता न था ।

वह दोबारा जंगल की ओर देखना नहीं चाहता था । लेकिन उसकी निगाहें पुनः उधर चली गईं । उसने कल्पना की कि वे उसका पीछा कर रहे किसी जंगली जानवर की आँखें थीं! उसके लम्बे बाल कंधों पर झूल रहे थे । बड़ा-सा पेट था, और मुँह में दो नुकीले दाँत थे ।

लड़का बुरी तरह डर गया था । लेकिन हिम्मत करके उसने डर पर काबू पाया ।

तभी उसकी नजर समुद्र की ओर गई । उसे एक नाव किनारे की ओर आती दिखाई दी । उसने सोचा कि उसके माता-पिता वापस लौट रहे हैं । वह महसूस कर रहा था कि डरावनी आँखें अभी भी उसे घूर रही हैं । उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्‍या करे ?

लेकिन जैसे ही उसने देखा कि नाव से उसके माता-पिता ही उतर रहे हैं, वह तेजी से किनारे की ओर दौड़ गया ।

वह बेचारा जिंदगी भर नहीं जान पाया कि उस शाम उसकी ओर घूरने वाली वे डरावनी आँखें किस जानवर की थीं और वह क्यों उसका पीछा कर रहा था ।