अंडमान व निकोबार द्वीप समूह की आदिम जनजातियों में से एक ' ओंगी' है ।
नीग्रो -मूल के होने के कारण वे गहरे-काले रंग के होते हैं । उनका कद छोटा होता है। आँखें लाली लिए हुए तथा बाल घुंघराले होते हैं ।
प्रारम्भ में, ये आदिवासी चिड़िया टापू के पास कालापहाड़ पर रहते थे । बाद में, कुछ दूसरी जनजातियों ने उन्हें कालापहाड़ से दूर खदेड़ दिया । आज ओंगियों को भी नहीं पता कि उन्हें वहाँ से खदेड़ भगाने वाले लोग कौन थे । उनका विश्वास है कि किसी दैवी-शक्ति ने उन्हें कालापहाड छोड़कर भाग जाने को विवश किया होगा ।
महीनों तक जंगलों, पहाड़ों से गुजरते और समुद्र-यात्रा करते वे लोग 'टाम्बेग्वे' नामक स्थान पर पहुँचे । लेकिन वह जगह उन्हें पसन्द नहीं आई। इसलिए वे आगे सुदूर दक्षिण कीं ओर “टोको-बुली' नामक स्थान की ओर बढ़ गए जिसे आज “डुगोंग क्रीक ' के नाम से जाना जाता है । उन्होंने टोको-बुली को अपना स्थाई निवास बनाया। वहाँ उन्होंने अपनी झोंपड़ियाँ बनाईं और वहीं बस गए ।
उन्होंने जंगली सुअरों और जंगली मुर्गियों का शिकार किया। समुद्री मछलियों और केकड़ों को पकड़ा। जंगल से शहद इकट्टा किया। इस तरह उन्होंने अपने भोजन की व्यवस्था कर ली ।
एक बार उनके मन में अपने प्राचीन निवास-स्थान कालापहाड़ को देखने की इच्छा जागी । उन्होंने कुछ बड़े पेड़ों को काटा और उनसे नावें बनाना शुरू कर दिया । इस काम में उन्हें वर्षों लग गए । अंततः कुछ मर्द, औरतें और बच्चे हर्ष व उल्लास के साथ नावों में बैठे और कालापहाड़ की ओर चल पड़े ।
विश्वास था कि इस भयंकर दुर्घटना के पीछे 'तोमेल' की दुष्ट आत्मा का हाथ था । वह उन्हें नष्ट कर देना चाहती थी । ओंगी 'तोमेल' के श्राप और क्रोध से बहुत डरते थे ।
ऐसे में सभी ओंगियों ने तोइया-बोग-लांको की पूजा की । उसे वे महान दैवी-शक्ति का स्वामी मानते थे । तब कहीं जाकर तूफान थमा। समुद्र शांत हो गया । ओंगियों को विश्वास हो गया कि देवता उन पर प्रसन्न है ।
उनका विश्वास है कि महाशक्ति का स्वामी ऊपर आसमान में कहीं रहता है । उसंकी कृपा से ही उन्हें भोजन और पानी मिलता है । उसी की कृपा से वे भले-चंगे रह पाते हैं । इसलिए मुसीबत के समय में वे महाशक्ति के स्थामी तोइया-बोग-लांको की पूजा करते हैं ।